अंटार्कटिका से दुनिया का सबसे बड़ा आइसबर्ग यानी हिमखंड टूटकर अलग हुआ है. इस हिमखंड का आकार दिल्ली के क्षेत्रफल से तीन गुना ज्यादा है. यह 4320 वर्ग किलोमीटर में फैला है, जबकि दिल्ली का क्षेत्रफल 1483 वर्ग किलोमीटर है. अंटार्कटिका से टूटकर अलग हुए इस आइसबर्ग को यूरोपियन स्पेस एजेंसी के सैटेलाइट ने देखा. इस हिमखंड का नाम A-76 है. वैज्ञानिकों का मानना है कि यह इंसानों द्वारा की जा रही गतिविधियों से बदल रहे क्लाइमेट चेंज का नतीजा है. (फोटोःESA)
A-76 हिमखंड अंटार्कटिका के वेडेल सागर (Weddell Sea) में स्थित रॉन आइससेल्फ (Ronne Iceshelf) से अलग हुआ है. यूरोपियन स्पेस एजेंसी के वैज्ञानिकों के मुताबिक इस इलाके में समुद्री जल का तापमान लगातार बढ़ रहा है. जिसकी वजह से अंटार्कटिका का पश्चिमी इलाका बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है. इसका सबसे बड़ा खतरा ये है कि अंटार्कटिका से बड़े ग्लेशियर टूटकर समुद्र में गिर सकते हैं. जैसे की थ्वाइट्स ग्लेशियर (Thwaites Glacier). (फोटोःगेटी)
ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे के ग्लेशियोलॉजिस्ट एलेक्स ब्रिसबॉर्न ने कहा कि यह कोई इकलौता इलाका नहीं जो वैश्विक गर्मी की वजह से प्रभावित है. मुद्दा ये है कि क्या इतने बड़े हिमखंड का टूटना कोई प्राकृतिक प्रक्रिया का सामान्य हिस्सा है. नहीं...यह ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज की वजह से हो रहा है. एलेक्स ने बताया कि A-76 ट्यूब के आकार का लंबा हिमखंड है. उसके ऊपर दिख रही हॉरिजोंटल लाइन्स उस पर पड़े दबाव को दिखा रही हैं. इसी दबाव के चलते यह हिमखंड रॉन आइस सेल्फ से अलग हुआ है. (फोटोःगेटी)
अभी A-76 हिमखंड समुद्र में तैर रहा है, इसकी वजह से समुद्री जलस्तर के बढ़ने की कोई आशंका फिलहाल नहीं है. यूरोपियन स्पेस एजेंसी के साइंटिस्ट मार्क ड्रिंकवाटर के अनुसार जरूर ये इंसानी गतिविधियों की वजह से हुआ है. लेकिन इसके पीछे हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि रॉन आइससेल्फ का अपना एक इवोल्यूशन है. उसकी भी जांच होनी चाहिए कि क्या उसने इस हिमखंड को खुद अलग किया है. क्या आइससेल्फ के नीचे सब सही है. या वहां पर भी किसी तरह की गतिविधि हो रही है. (फोटोःगेटी)
मार्क ड्रिंकवाटर ने कहा कि रॉन आइससेल्फ इस समय सामान्य हालत में है. ऐसे आइसबर्ग का टूटकर निकलना यानी आइससेल्फ फैल रहा है. इससे पहले इतना बड़ा आइसबर्ग 1986 में टूटा था. वह करीब 11 हजार वर्ग किलोमीटर के हिमखंड अलग हुआ था. इसके बाद इसी आइससेल्फ से 1998, 2000 और 2015 में हिमखंड टूटकर अलग हुए. नए हिमखंड के बनने का मतलब है कि उसकी अपनी एक दिशा और दशा होगी. वो तैरते हुए कहीं न कहीं पहुंचेगा. नुकसान पहुंचाएगा या नहीं यह उसकी समुद्री यात्रा पर निर्भर करता है. (फोटोःगेटी)
पिछले साल यानी 2020 में A-68a हिमखंड अपनी समुद्री यात्रा के दौरान साउथ जॉर्जिया द्वीप के वन्यजीवों के लिए खतरा बन गया था. ऐसा लग रहा था कि ये जाकर द्वीप से टकरा जाएगा. इससे वहां मौजूद लाखों पेंग्विंस और सील जैसे समुद्री जीवों के खाने-पीने की दिक्कत हो जाएगी. एलेक्स ब्रिसबॉर्न ने कहा कि यह A-70 हिमखंड इतना बड़ा है कि यह जरूर समुद्र में असर डालेगा. लेकिन निर्भर करता है कि इसकी समुद्री यात्रा की दिशा क्या होगी. हो सकता है यह टूटते-टूटते आगे बढ़े. या फिर इसी हालत में किसी द्वीप या जहाज के लिए खतरा बना सकता है. (फोटोःगेटी)
A-70 हिमखंड 170 किलोमीटर लंबा और 25 किलोमीटर चौड़ा है. यह पिछले कुछ दशकों में अंटार्कटिका से अलग हुए हिमखंडों में से सबसे बड़ा है. गौरतलब है कि अंटार्कटिका में ग्लेशियर, हिमखंड, आइससेल्फ आदि सब तेजी से टूट रहे हैं या पिघल रहे हैं. यह प्रक्रिया सबसे ज्यादा वेडेल सागर के पास देखने को मिल रही है. जिसका मतलब ये है कि इस सागर का तापमान तेजी से बढ़ रहा है. (फोटोःगेटी)
साल 1880 से लेकर अब तक समुद्री जलस्तर में 9 इंच की बढ़ोतरी हुई है. इसमें से एक चौथाई बढ़ोतरी हिमखंडों के टूटने और पिघलने से हुई है. समुद्री जलस्तर बढ़ने के पीछे बड़ी वजह ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका में टूटने और पिघलने वाले हिमखंड और ग्लेशियर हैं. इस बारे में एक स्टडी हाल ही में नेचर मैगजीन में प्रकाशित हुई है. (फोटोःगेटी)
नेचर में प्रकाशित स्टडी के मुताबिक 15 देशों के 84 वैज्ञानिकों ने पता लगाया कि राष्ट्रीय स्तर पर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी अगर नहीं लाई गई तो क्लाइमेट चेंज और बुरा हो जाएगा. इसकी वजह से समुद्र का जलस्तर तेजी से बढ़ेगा. अगर पेरिस समझौते के तहत दुनिया भर के देश प्रदूषण को लेकर अपने शपथ को पूरा नहीं करते हैं तो जलस्तर दोगुना तेजी से बढ़ सकता है. (फोटोःगेटी)