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5000 साल से पुराने बैक्टीरिया ने 14वीं सदी में फैलाया था 'ब्लैक डेथ' प्लेग, मिला सबूत

aajtak.in
  • बर्लिन,
  • 30 जून 2021,
  • अपडेटेड 12:33 PM IST
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14वीं सदी में फैली महामारी 'काली मौत' यानी ब्लैक डेथ जिस बैक्टीरिया की वजह से फैला था, वह बैक्टीरिया 5000 साल से ज्यादा पुराना है. वैज्ञानिकों को इस बात के सबूत मिले हैं. एक प्राचीन शिकारी की खोपड़ी से वैज्ञानिकों ने उस बैक्टीरिया को खोजा है, जो पांच हजार साल पहले भी लोगों को ऐसी मौत दे चुका था. इस बैक्टीरिया का नाम है यर्सिनिया पेस्टिस (Yersinia Pestis). (फोटोःगेटी)

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सेल रिपोर्ट्स में प्रकाशित स्टडी के मुताबिक अभी तक यर्सिनिया पेस्टिस (Yersinia Pestis) करीब एक हजार साल पुराना था. लेकिन जब यह शिकारी की खोपड़ी मिली तो नया खुलासा हो गया. इससे पता चला है कि इस बैक्टीरिया की वंशवृक्ष 7000 साल पुराना है. जबकि, कुछ स्टडी कहती हैं कि यह पांच हजार साल पुराना है. जर्मनी की यूनिवर्सिटी ऑफ कील के aDNA लेबोरेटरी के प्रमुख बेन क्रॉस-कियोरा ने कहा कि हम इस बैक्टीरिया की मौजूदगी पहले की स्टडी से ज्यादा पीछे पाते हैं. कुछ ने इसे 5000 साल बताया है, जबकि हमारी स्टडी में उससे ज्यादा करीब 7000 साल का डेटा आ रहा है. (फोटोःगेटी)

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बेन क्रॉस कियोर ने कहा कि हम इस बैक्टीरिया के बारे में और खोजबीन कर रहे हैं. हम उसके काफी करीब हैं. हमें जिस शिकारी की खोपड़ी मिली है, वह 20 से 30 साल का युवा था. हमने उसे RV2039 नाम दिया है. यह लाटविया के रिन्नूकाल्न्स नामक इलाके में 5000 साल पहले दफनाया गया था. इस युवा शिकारी की हड्डियां 19वीं सदी में मिली थी. इसके साथ कंकाल का बाकी हिस्सा भी था. इसके बारे में साल 2011 तक किसी को बहुत जानकारी नहीं थी. लेकिन ऐसी ही दो खोपड़िया एक और साइट से मिलीं. उसके बाद रिडस्कवरी शुरु हुई. (फोटोःडॉमिनिक गोल्डनर)

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ऐसी चार खोपड़ियां और कंकाल अब तक मिले हैं. जब उनकी स्टडी की गई तो पता चला कि इनके अंदर बैक्टीरिया और वायरस का अच्छा जमावड़ा था. हमें यहीं पर यर्सिनिया पेस्टिस (Yersinia Pestis) के सबूत मिले. यह बैक्टीरिया यर्सिनिया स्यूडोट्यूबरक्यूलोसिस (Yersinia pseudotuberculosis) का वंशज था. अभी तक यह नहीं पता चल पाया है कि इन खोपड़ियों में यानी उस समय के इंसानों को इस बैक्टीरिया ने संक्रमित कैसे किया. (फोटोःडॉमिनिक गोल्डनर)

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ये जानकारी जरूर है कि इसके मौत के समय इसके खून में इस बैक्टीरिया की मात्रा बहुत ज्यादा थी. साथ ही यह भी पता चला कि इसके पूर्वज बैक्टीरिया इतने घातक और जानलेवा नहीं थे. लेकिन यर्सिनिया पेस्टिस ने यूरेसिया और उत्तरी अफ्रीका में 14वीं सदी में ब्लैक डेथ बनकर कहर बरपाया था. इस बैक्टीरिया की जेनेटिक विश्लेषण से पता चला है कि ये अपने जीन को छोटी मक्खियों के जरिए चूहों में और चूहों के काटने से इंसानों में संक्रमण फैलता था. अब चूहे सबकों तो काटते नहीं, इसलिए 5000 साल पहले ये इतना नहीं फैला था. (फोटोःगेटी)

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यर्सिनिया पेस्टिस (Yersinia Pestis) से संबंधित इस नई खोज की वजह से अब इस घातक और जानलेवा बीमारी का इतिहास फिर से लिखा जाएगा. इतिहासकारों का मानना है कि प्लेग और अन्य कुख्यात संक्रामक बीमारियां इंसानों में काले सागर (Black Sea) के आसपास बसे प्राचीन कस्बों से फैलना शुरु हुई थीं. क्योंकि वहां पर इंसानी बस्तियों का घनत्व ज्यादा था. मवेशियों का पालन-पोषण अधिक होता था, साथ ही इनकी बदौलात इंसान खेती वगैरह करते थे. (फोटोःगेटी)

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जबकि प्राचीन शहरों में जानवरों से संबंधित बीमारियां यानी जूनोटिक डिजीसेस की उत्पत्ति हुई थी. ये बीमारियां जानवरों से इंसानों में फैली थीं. लेकिन इस युवा शिकारी की खोपड़ी से मिले यर्सिनिया पेस्टिस (Yersinia Pestis) के सबूतों से यह बात पुख्ता होती है कि जो इंसान जंगलों में जाकर शिकार करते थे, उन्हें भी जंगली जानवरों से बीमार होने का खतरा रहता था. इसमें थोड़ा अंतर तब आया जब लोग मध्य यूरोप में जाकर खेती के लिए बसने लगे. (फोटोःगेटी)

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यर्सिनिया पेस्टिस (Yersinia Pestis) की स्टडी से यह बात स्पष्ट हो गई है कि इसके पूर्वज बैक्टीरिया उतने संक्रामक और जानलेवा नहीं थे, जितना कि ये था. नियोलिथिक काल (Neolithic Age) में पश्चिमी यूरोप से ऐसे बैक्टीरिया की वजह से आबादी में भारी कमी आई थी. (फोटोःगेटी)

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बेन क्रॉस कियोरा ने कहा कि अलग-अलग स्थानों से फैलने वाली जूनोटिक डिजीसेस का अध्ययन करने से हमें बीमारियों के पर्यावरणीय फैलाव का पता चलेगा.  साथ ही यह भी पता चलेगा कि इंसानों की किस सामाजिक और भौगोलिक स्थितियों में यह प्राचीन और खतरनाक बीमारियां फैलीं. या फिर इन बीमारियों के वंशज आज भी हैं या नहीं. (फोटोःगेटी)

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बेन ने बताया कि ये 5000 साल पुराने शिकारी सामाजिक ताने-बाने से कटे हुए थे. ये मछली पकड़ते थे. जंगलों में शिकार करते थे. अपने समुदाय के साथ खेती-बाड़ी करते थे. ये बाकी दुनिया की इंसानी सभ्यता से अलग थे तो फिर क्या इनकी वजह से बाकी इंसानों में यह बीमारी फैली, यह कहना गलत हो सकता है. फिलहाल में हम इस बैक्टीरिया का और अध्ययन कर रहे हैं, ताकि वर्तमान समय के अनुसार इसके खतरों को आंक सकें. (फोटोःगेटी)

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