Advertisement

Melting Tibetan Glaciers: तिब्बत में 22 हजार फीट पर 33 वायरस मिले, 28 के बारे में कुछ पता नहीं... इनके संक्रमण का इलाज नहीं

तिब्बत के पिघलते ग्लेशियर में 15 हजार साल पुराना वायरस मिला है. यह इंसानियत के लिए खतरनाक हो सकता है. ये किसी हॉरर फिल्म का सीन नहीं सच्चाई है. बढ़ती गर्मी की वजह से बाहर आ रहे इन जीवों से इंसानों, जीव-जंतुओं और पूरी धरती को खतरा है. ये हजारों-लाखों सालों की नींद के बाद बाहर आकर तबाही मचाएंगे.

तिब्बत के जिस ग्लेशियर में ये वायरस मिले हैं, उनसे भारत, चीन, म्यांमार को बड़ा खतरा हो सकता है. (फोटोः वी यांग) तिब्बत के जिस ग्लेशियर में ये वायरस मिले हैं, उनसे भारत, चीन, म्यांमार को बड़ा खतरा हो सकता है. (फोटोः वी यांग)
आजतक साइंस डेस्क
  • ओहायो/बीजिंग,
  • 06 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 1:21 PM IST

तिब्बत (Tibet) में कई ऐसे ग्लेशियर हैं, जो तेजी से पिघल रहे हैं. वहां पर 15 हजार साल पुराना वायरस मिला है. ये वायरस भारत, चीन और म्यांमार जैसे देशों के लिए खतरा हो सकता है. इस प्राचीन वायरस के संक्रमण का कोई इलाज नहीं है. पूरी दुनिया में पर्माफ्रॉस्ट पिघल रहे हैं. प्राचीन जीव, वायरस, बैक्टीरिया जैसी चीजें निकल रही हैं. 

Advertisement

ये किसी हॉरर फिल्म का सीन नहीं सच्चाई है. ग्लेशियरों और पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने वूली राइनो (Woolly Rhino) से लेकर 40 हजार साल पुराने विशालकाय भेड़िये और 7.50 लाख साल पुराने बैक्टीरिया के निकलने का पता चला है. इनमें से मरे हुए नहीं है. सदियों पुराने मॉस में वैज्ञानिकों ने लैब में वापस जीवन डाल दिया. ये बेहद छोटे 42 हजार साल पुराना राउडवॉर्म हैं. 

हाल ही में वैज्ञानिकों ने तिब्बत के पठारों पर मौजूद गुलिया आइस कैप (Guliya Ice Cap) के पास से 15 हजार साल पुराना वायरस खोजा है. वो भी एक प्रजाति के नहीं बल्कि कई प्रजातियों के. दर्जनों की संख्या में. ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी के माइक्रोबायोलॉजिस्ट झी-पिंग झॉन्ग ने कहा कि ये इंसानों के लिए किसी भी समय खतरा पैदा कर सकते हैं. 

ये है ग्लेशियर के नीचे से मिले वायरसों में से एक की माइक्रोस्कोपिक तस्वीर. 

22 हजार फीट की ऊंचाई 33 वायरस, 28 के बारे में कुछ पता नहीं

Advertisement

ये वायरस समुद्री सतह से 22 हजार फीट की ऊंचाई पर चीन में तिब्बत के पिघलते ग्लेशियर के नीचे से मिले हैं. वैज्ञानिकों 33 वायरस खोजे. जिसमें से 28 के बारे में पूरी दुनिया को कुछ नहीं पता. ये इससे पहले कभी देखे नहीं गए. यानी इनके संक्रमण का कोई इलाज नहीं हो सकता. ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी के दूसरे साइंटिस्ट मैथ्यू सुलिवन ने कहा कि इन वायरसों ने चरम स्थितियों में अपनी जिंदगी बिताई है. ये अब किसी भी तरह के तापमान या मौसम को झेल सकते हैं. 

हर मौसम झेल चुके ये वायरस, इन पर किसी चीज का असर नहीं 

मैथ्यू ने कहा कि इनके जीन्स का अध्ययन करके पता चलता है कि इनके लिए किसी भी तरह का एक्स्ट्रीम मौसम सामान्य है. इससे पहले तिब्बत के ग्लेशियर में बैक्टीरिया के मिलने का पता चला था. ये इतनी तेजी से हो रहा है कि इंसानों के सामने कठिन भविष्य का संकट खड़ा है. खाली मौसम ही नहीं बल्कि ऐसे खतरों से भी जूझना पड़ेगा. 

ग्लेशियरों से निकलती हैं नदियां, वहीं से आएंगे पुराने बैक्टीरिया-वायरस

पिछले साल तिब्बत के ग्लेशियरों में बैक्टीरिया की 1000 नई प्रजातियां मिली हैं. इनमें से सैकड़ों के बारे में वैज्ञानिकों को कुछ भी नहीं पता. जलवायु परिवर्तन की वजह से ये ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. ये पिघले तो इनका पानी बैक्टीरिया के साथ चीन और भारत की नदियों में मिलेगा. जिसे पीकर लोग नई बीमारियों से संक्रमित हो सकते हैं. 

Advertisement

बिना पानी जीवन मुश्किल, वहीं से आएगा मौत का प्राचीन सामान

यूनिवर्सिटी ऑफ चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंस के वैज्ञानिकों ने तिब्बती पठारों पर मौजूद 21 ग्लेशियरों के सैंपल जमा किए थे. ये सैंपल 2016 से 2020 के बीच जुटाए गए थे. इनमें 968 प्रजातियों के बैक्टीरिया मिले. जिसमें ने 82% बैक्टीरिया एकदम नए हैं. जिनके बारे में दुनियाभर के वैज्ञानिकों को कोई जानकारी नहीं है.

गंगा, ब्रह्मपुत्र नदियों से नीचे की तरफ आएंगे बैक्टीरिया-वायरस 

ग्लेशियर और बर्फीली चादरें धरती के 10% सतह को कवर करते हैं. पृथ्वी पर सबसे ज्यादा साफ पानी का स्रोत इन्ही के पास है. दिक्कत ये हैं कि हजारों साल से जमा इन ग्लेशियरों के नीचे क्या है. कैसा वातावरण है? कैसे जीव या सूक्ष्मजीव रहते हैं. ये किसी को पता नहीं होता. तिब्बत को 'वाटर टॉवर ऑफ एशिया' भी कहते हैं. यहां से एशिया की कुछ बेहद बड़ी और ताकतवर नदियां निकलती हैं. 

इन नदियों के आसपास घनी आबादी में लोग रहते हैं. जैसे- यांग्त्जे नदी, यलो रिवर, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी. अगर बैक्टीरिया इन नदियों के सहारे चीन और भारत की आबादी वाले इलाके तक पहुंच गया तो स्थिति बेहद बुरी हो सकती है. इसका नुकसान भारत और चीन को तो होगा ही. इसके अलावा इन नदियों का पानी उपयोग करने वाले अन्य एशियाई देशों को भी होगा. 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement