
इस साल फिजिक्स का नोबेल पुरस्कार अमेरिका के पियरे अगोस्तिनी, जर्मनी के फेरेंस क्रॉज और स्वीडन की एनी एल हुइलर को दिया गया है. इन तीनों ने ऐसे टूल्स विकसित किए जिससे एट्टोसेकेंड (Attosecond) के समय में इलेक्ट्रॉन्स की दुनिया देखी जा सके. एट्टोसेकेंड का मतलब होता है 1/1,000,000,000,000,000,000 हिस्सा. इसी इतने एट्टोसेकेंड में एक सेकेंड पूरा होता है. इतने ही सेकेंड में ब्रह्मांड की उम्र का पता चलता है.
एनी एल. हुइलर ने 1987 में यह देखा कि जब किसी नोबल गैस के अंदर से इंफ्रारेड लेजर लाइट को डाला जाता है, तब प्रकाश के कई ओवरटोन दिखते हैं. हर ओवरटोन का अलग साइकिल है. ऐसा इसलिए होता है, जब गैस के एटम से रोशनी टकराती है. इससे एटम के इलेक्ट्रॉन्स को अधिक ऊर्जा मिलती है. इसके बाद वह रोशन हो जाता है. एनी एल. हुइलर स्वीडन की लुंड यूनिवर्सिटी में फिजिक्स की प्रोफेसर हैं.
पियरे अगोस्तिनी ने 2001 में एक एक्सपेरिमेंट किया. उन्होंने लगातार प्रकाश के पल्सेस चलाए. हर पल्स 250 एट्टोसेकेंड्स तक रुकी रही. ठीक उसी समय फेरेंस क्रॉज रोशनी की अकेली पल्स को 650 एट्टोसेकेंड्स तक टिकाने में कामयाब हुए थे. इन तीनों के एक्सपेरिमेंट की वजह से इलेक्ट्रॉन्स की दुनिया को समझना आसान हो गया. इससे पहले किसी भी वैज्ञानिक ने इस तरह का प्रयोग नहीं किया था.
क्या इस्तेमाल है इनके एक्सपेरिमेंट्स का?
इलेक्ट्रॉन्स की दुनिया को समझना. उनके चलने-फिरने, चमकने, खिंचाव आदि को समझना आसान नहीं होता. इनकी समझ विकसित होने पर भविष्य में कई तरह के अत्याधुनिक इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट्स बन सकते हैं. यह समझा जा सकता है कि इलेक्ट्रॉन्स को कैसे नियंत्रित किया जाए. एट्टोसेकेंड पल्सेस का इस्तेमाल किसी मॉलीक्यूल की पहचान करने में किया जा सकता है. जैसे मेडिकल डायग्नोसिस में होता है.
अब तक मिले फिजिक्स के रोचक नोबेल
1901 से अब तक फिजिक्स में 116 नोबेल प्राइज दिए गए हैं. इनमें चार महिलाएं रही हैं. 1903 में मैरी क्यूरी, 1963 में मारिया गोपेर्ट मेयर, 2018 में डोना स्ट्रिकलैंड और 2020 में आंद्रिया घेज को मिला था. जॉन बार्डीन इकलौते साइंटिस्ट हैं, जिन्हें फिजिक्स में दो बार नोबेल पुरस्कार मिला. सबसे कम उम्र का नोबेल 1915 में लॉरेंस ब्रैग को मिला था. वो 25 साल की उम्र के थे. उन्हें उनके पिता के साथ नोबेल दिया गया था. आर्थर अश्किन सबसे बुजुर्ग नोबेल पुरस्कार विजेता थे. उन्हें 96 वर्ष की उम्र में अवॉर्ड मिला था.