Advertisement

मिली ऐसी मकड़ी जो चमकती थी, इसी वजह से 2.3 करोड़ साल सलामत रहा जीवाश्म

चमकने वाले कई जीवों के बारे में आप जानते होंगे. हाल ही में वैज्ञानिकों को चमकने वाली एक मकड़ी के जीवाश्म मिले हैं. लेकिन आश्चर्य है कि इतने लंबे समय तक एक छोटी सी मकड़ी के जीवाश्म सही सलामत रहे. जानिए कैसे-

चमकने वाली मकड़ी (फोटो- फ्लिकर) चमकने वाली मकड़ी (फोटो- फ्लिकर)
aajtak.in
  • पैरिस,
  • 23 अप्रैल 2022,
  • अपडेटेड 5:15 PM IST
  • रसायनों के प्रभाव से बचा रहा जीवाश्म
  • विभिन्न स्कैनिंग टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल

जानवरों का यूवी लाइट (Ultraviolet Light) में चमकना आम है. कुछ जानवारों की चोंच यूवी लाइट में चमकती है, तो उल्लू के पंख भी इस रौशनी में चमकते हैं. इसे बायोफ्लोरेसेंस (Biofluorescence) कहते हैं. हाल ही में वैज्ञानिकों को चमकने वाली एक मकड़ी के बारे में पता चला है. 

वैज्ञानिकों को फ्रांस में एक मकड़ी के जीवाश्म (Fossil) मिले हैं, जो अल्ट्रा वॉयलेट रैशनी में चमकती थी. कहा जा रहा है कि एक छोटी सी मकड़ी के जीवाश्म का 2.30 करोड़ साल तक सही सलामत रहने की वजह इसका चमकना ही था.

Advertisement

कम्यूनिकेशन अर्थ एंड एनवायरमेंट (Communications Earth & Environment) में पब्लिश हुई स्टडी के मुताबिक, जब शोधकर्ताओं ने इस जीवाश्म को एक फ्लोरोसेंट माइक्रोस्कोप के नीचे रखा, तो उन्हें अरचिन्ड (Arachnids) की एक पतली सी आउटलाइन दिखाई दी. 

यूवी रौशनी में चमकती मकड़ी (फोटो- फ्लिकर)

कैनसस यूनिवर्सिटी (University of Kansas) के जीयोलॉजिस्ट एलिसन ओल्कोट (Alison Olcott) का कहना है कि जब वह जीवाश्म चमके, तो हम इसकी कैमेस्ट्री जानने के लिए बहुत उत्सुक थे. तरह-तरह की स्कैनिंग टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से किए गए विश्लेषण से पता चला कि जीवाश्म का ज़्यादातर हिस्सा जिस खनिज से बना उसमें सिलिकॉन पाया गया है. जीवाश्मों पर गहरे रंग के धब्बे भी पाए गए जो कार्बन और सल्फर की बड़ी मात्रा को दर्शाते हैं. 

यह मकड़ी के जीवाश्म की इलेक्ट्रॉन फोटो है, बॉक्स में सल्फर (पीला) और सिलिका (गुलाबी) दिखाई दे रही है (फोटो- (Olcott et al., Communications Earth and Environment, 2022)

करीब से देखने पर पाया गया कि ये मकड़ियां अकेली नहीं थीं. इनके साथ में मिले जीवाश्म का जो समूह मिला था, उन्हें फ्रांस में ऐक्स-एन-प्रोवेंस (Aix-en-Provence) जीवाश्म वाली जगह पहले कभी नहीं देखा गया. वैज्ञानिकों के मुताबिक, मकड़ी के जीवाश्मों के चारों ओर हजारों माइक्रोएल्गी (Microalgae) मिले हैं.  

Advertisement

सदियों से वैज्ञानिक फ्रांस के इस इलाके में पाए जाने वाले कीड़ों और मछलियों के जीवाश्मों का अध्ययन कर रहे हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि अब हम समझने लगे हैं कि ये छोटे जीव इतने लंबे समय तक कैसे संरक्षित रहे.

यूवी रौशनी में चमकता मकड़ी का जीवाश्म (फोटो- (Olcott et al., Communications Earth and Environment, 2022))

शरीर का खोल, दांत और हड्डियों को छोड़ दें, तो टिशू के जीवाश्म शायद ही कभी बनते हैं. लेकिन ऐसा सिर्फ खास परिस्थितियों में ही संभव है. पहले वैज्ञानिकों ने तर्क दिया था कि अगर टिशू, एक सेल वाले एल्गी या शैवाल के साथ दफन होते हैं, तो यह इन्हें ऑक्सीजन के खराब होने वाले प्रभावों से बचा सकता है. लेकिन यह नई खोज बताती है कि इसमें ऑक्सीजन के अलावा भी कुछ और था.

अगर डायटम अपने मैट में चिपचिपा पदार्थ उत्पन्न करते हैं, तो यह अन्य जीवों के टिशू में पाए जाने वाले ऑर्गैनिक पॉलीमर के साथ रिएक्ट कर सकता है. इससे सल्फराइजेशन (Sulfurization) हो सकता है, जो मकड़ी के एक्सोस्कैलेटन से कार्बन यूनिट लेता है. इसे शैवाल मैट से सल्फर के साथ क्रॉस-लिंक करता है. नतीजा ये होता है कि कार्बन स्थिर हो जाता है. इसे जल्दी खराब होने से बचाता है.

Advertisement

अक्सर जब इस तरह के जीवाश्मों का अध्ययन किया जाता है, तो उनकी जांच सिर्फ मैक्रोस्कोपिक स्केल पर की जाती है, माइक्रोस्कोपिक स्केल पर नहीं. लेकिन इस नए शोध के नतीजों कुछ और बताते हैं. 

 

Ancient Spider Reveals a Secret Glow That Sustained It For Eternity https://t.co/OJuNftO0me

— ScienceAlert (@ScienceAlert) April 21, 2022

जब वैश्विक महामारी की वजह से लैब का काम ठप हो गया था, तो शोधकर्ताओं ने जीवाश्मों की जांच माइक्रोस्कोपिक स्केल पर की. ऐसा करने पर उन्हें कुछ ऐसा दिखाई दिया जिसे अभी तक किसी ने रिपोर्ट नहीं किया था. जबकि ऐक्स-एन-प्रोवेंस से मिले जीवाश्मों पर सदियों से काम हो रहा था.

एलिसन ओल्कोट कहते हैं, 'हमारा अगला कदम होगा बाकी जीवाश्मों पर भी इन्हीं तकनीकों का इस्तेमाल करना, ताकि यह देखा जा सके कि संरक्षण डायटम मैट से जुड़ा हुआ है या नहीं.'


 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement