
पूरी दुनिया में तापमान बढ़ रहा है. ग्लेशियर पिघल रहे हैं. सिर्फ कुछ ही सालों में अमेरिका की 6.50 लाख इमारतें समुद्र में चली जाएंगी. इसके अलावा 44 लाख एकड़ जमीन भी लहरों के नीचे होगा. यह डरावनी स्थिति आज के प्रदूषण स्तर, जलवायु परिवर्तन की दर और बढ़ते ग्लोबल वॉर्मिंग के आधार पर आएगी. सिर्फ 28 साल में. यानी साल 2050 तक अमेरिका का इतना बड़ा इलाका पानी में होगा. तो सोचिए दुनिया में और कौन-कौन से इलाके पानी में डूब जाएंगे?
सिर्फ जमीन और इमारतें नहीं जाएंगी पानी में. बल्कि लाखों करोड़ रुपयों (अमेरिकी डॉलर) का नुकसान भी होगा. क्योंकि इंसान जलवायु परिवर्तन के बुरे प्रभावों को समझ नहीं रहा है. यह स्टडी की है एक गैर सरकारी संस्था क्लाइमेट सेंट्रल (Climate Central) ने. जिसके रिसर्च के मुताबिक साल 2050 तक अमेरिका तटीय इलाकों की हालत बहुत बुरी हो जाएगी. कई शहर डूब जाएंगे. साथ ही उनका किया गया पूरा विकास भी डूब जाएगा.
क्लाइमेट सेंट्रल के सीनियर एडवाइजर डॉन बैन ने कहा कि हमारे समुद्रों का जलस्तर तेजी से बढ़ रहा है. लहरों की ऊंचाई भी बढ़ती जा रही है. कुछ ही साल तो हैं. आप 28 साल को बहुत ज्यादा नहीं कह सकते. इतने सालों में समुद्र आएगा और आपके शहरों को लील लेगा. आपके घर में रखे सारे सामान लेता जाएगा. घर भी डुबा देगा. सबसे ज्यादा खतरा लुईसियाना (Louisiana) को है.
क्लाइमेट सेंट्रल के मुताबिक लुईसियाना में 25 हजार से ज्यादा इमारतें 2050 तक समुद्र के अंदर होंगी. इसके दक्षिण में स्थित Isle de Jean Charles तो पहले से ही 98 फीसदी पानी के अंदर पहुंच चुका है. यानी साल 2050 तक अमेरिका को 108 बिलियन डॉलर्स यानी 8.88 लाख करोड़ रुपये की संपत्ति का नुकसान होगा. इसके बाद इससे जुड़ी कई और समस्याएं आएंगी जो और कई तरह की तबाही मचा सकती है. उनका आकलन तो हुआ ही नहीं है. क्योंकि इसके बाद इंश्योरेंस सर्विसेस को जो भरपाई देनी होगी, उससे और ज्यादा नुकसान होगा.
रिसर्चर्स का कहना है कि उम्मीद अभी खत्म नहीं हुई है. हम चाहे तो इस चीज से अमेरिका ही नहीं पूरी दुनिया को बचा सकते हैं. इंसानों को ग्लोबल वॉर्मिंग कम करनी होगी. बढ़ते समुद्री जलस्तर वाले इलाकों से दूर जाना होगा. प्रदूषण कम करना होगा. तभी जाकर इस समस्या से निजात मिल सकती है.