
वैज्ञानिकों ने हाल ही में दो प्राचीन हड्डियों की जांच की. ये हड्डियां निएंडरथल मानवों की थीं. स्टडी में पता चला कि इन हड्डियों में आधुनिक इंसानों में पाया जाने वाले तीन वायरस मिले. जबकि हड्डियां करीब 50 हजार साल पुरानी हैं. वायरस नए इंसानों से जरूर मिले उन्हें लेकिन ये वायरस हैं बेहद पुराने.
निएंडरथल की हड्डियों से करीब 20 हजार साल पुराने. यानी वैज्ञानिकों को अब सबसे पुराने इंसानी वायरस मिल गए हैं. इसके पहले साइबेरिया में एक बच्चे का दांत मिला था, जिसमें 31 हजार साल पुराना वायरस मिला था. जिन हड्डियों की जांच की गई वो रूस के अल्ताई माउंटेंस के पास Chagyrskaya गुफा में मिले थे.
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वैज्ञानिकों ने देखा कि वायरस एक डीएनए से दूसरे डीएनए में शिफ्ट होते चले गए. सिक्वेंसिंग करते चले गए. इनमें से कुछ वायरस ऐसे हैं, जो आधुनिक इंसानों को भी बीमार करते हैं. उनसे जीवनभर की दिक्कत भी हो सकती है. लेकिन वो वायरस आज के जमाने के नहीं हैं. उस समय के हैं जब होमो सैपियंस की शुरूआत हुई थी.
ये तीन वायरस जो आज भी कर रहे हैं परेशान
इस स्टडी से यह पता चला कि होमो सैपियंस के करीब रिश्तेदार या यूं कहें कि पूर्वज यानी निएंडरथल मानव तीन तरह के वायरस से संक्रमित हुए थे. ये तीनों हैं- एडिनोवायरस, हर्पिस वायरस और पैपिलोमावायरस. ये तीनों वायरस आज के इंसानों को भी संक्रमित करते हैं. लेकिन इन तीनों के वंशज वायरस.
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इन वायरसों से होती हैं इतने तरह की बीमारियां
आज के दौर में एडिनोवायरस कई तरह की बीमारियां पैदा करते हैं. जैसे- फ्लू, जुकाम, गले में खराश और आंखों का लाल होना. पैपिलोमावायरस की वजह से सेक्सुअल बीमारियां फैलती हैं. जैसे- जेनिटल वार्टस और कुछ प्रकार के कैंसर. हर्पिसवायरस से कोल्ड सोरेस, चिकनपॉक्स या मोनो जैसी बीमारियां.
हो सकता है इन वायरसों ने खत्म किया हो निएंडरथल मानवों को
निएंडरथल मानवों में जो हर्पिसवायरस मिला है उसे देख कर लगता है कि उन्हें कोल्ड सोरेस हुआ होगा. वैज्ञानिकों का यह मानना है कि इन वायरसों की वजह से ही निएंडरथल मानवों का खात्मा हुआ होगा. क्योंकि उस समय इनका कोई इलाज नहीं था. निएंडरथल मानव आज से करीब 40 हजार साल पहले खत्म हुए थे. यह स्टडी हाल ही में bioRxiv में प्रकाशित हुई है. जिसका पीयर रिव्यू नहीं हुआ है.