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80 साल से विश्वयुद्ध 2 का जंगी जहाज बदल रहा है समुद्र की माइक्रोबायोलॉजी

जहाजों के जिस मलबे को लोग खज़ाना कहते हैं, वह समुद्र के लिए कितना खतरनाक हो सकता है आप सोच भी नहीं सकते. पुराने जंग खाए हुए जंगी जहाज और इसमें रखा हुआ पुराना ईंधन और विस्फोटक, असल में समुद्र की microbiology और geochemistry को प्रभावित कर रहा है.

प्राचीन युद्धपोत समुद्री जीवन के लिए बन रहे हैं खतरा  (Photo: Flanders Marine Institute) प्राचीन युद्धपोत समुद्री जीवन के लिए बन रहे हैं खतरा (Photo: Flanders Marine Institute)
aajtak.in
  • ब्रसेल्स,
  • 20 अक्टूबर 2022,
  • अपडेटेड 10:50 AM IST

जहाजों का मलबा हमेशा से ही लोगों में रोमांच और रहस्य पैदा करता आया है. लोग इसे खजाना कहते हैं. लेकिन प्राचीन काल के जंग खाया हुआ जहाजों का ये मलबा, असल में पुराने ईंधन, गढ़े हुए बमों और जहरीले कचरे का ढेर होता है. 

उत्तरी सागर के बेल्जियम भाग में द्वितीय विश्व युद्ध के जहाज़ वी-1302 जॉन महन (V-1302 John Mahn) पर हो रहे शोध में पाया गया है कि जहाज के समुद्र में डूबने के करीब 80 साल बाद भी, पुराने मलबे से निकलने वाले पदार्थ अभी भी आसपास के सूक्ष्म जीव विज्ञान (Microbiology) और भू-रसायन विज्ञान (Geochemistry) को प्रभावित कर रहे हैं.

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समुद्री जीवन के लिए खतरनाक हैं डूबे हुए जहाज (Photo: Flanders Marine Institute)

माना जा रहा है कि अकेले उत्तरी सागर में ही ऐसे हजारों मलबे हैं, जिसने समुद्री जीवन को बहुत ज्यादा प्रभावित किया है. इन युद्धपोतों में अक्सर पुराना ईंधन और खतरनाक सामान स्टोर होता है. 

फ्रंटियर्स इन मरीन साइंस (Frontiers in Marine Science) में प्रकाशित शोध के मुताबिक, बेल्जियम में गेन्ट यूनिवर्सिटी के माइक्रोबियल इकोलॉजिस्ट जोसेफियन वैन लैंडुयट (Josefien Van Landuyt) का कहना है कि हम यह देखना चाहते थे कि क्या समुद्र में पुराने जहाज के मलबे, अब भी स्थानीय माइक्रोबियल समुदायों पर प्रभाव डाल रहे हैं और आसपास के तलछट को प्रभावित कर रहे हैं. 

युद्ध के दौरान गश्त करने वाला जहाज़ बनने से पहले V-1302 John Mahn, जर्मन मछली पकड़ने वाले ट्रॉलर के तौर पर शुरू हुआ था. चैनल डैश ऑपरेशन में, ब्रिटिश रॉयल एयर फ़ोर्स ने 1942 में इसे बेल्जियम के तट के पास डुबो दिया था.

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जहाज के करीब प्रदूषकों की सांद्रता सबसे ज्यादा (Photo: Flanders Marine Institute)

शोधकर्ताओं ने करीब बारह अलग-अलग जगहों पर मलबे से स्टील के पतवार और तलछट के नमूने लिए, ताकि ये पता लगाया जा सके कि कोई भी संभावित संदूषण (Contamination) कितनी दूर तक फैल सकता है.

जहाज के चारों ओर जहरीले प्रदूषित पदार्थों की सांद्रता (Concentration) दूरी के हिसाब से अलग-अलग होती है. इसमें भारी धातुओं (जैसे निकल और तांबा), आर्सेनिक, विस्फोटक और पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन या पीएएच (कोयला, कच्चे तेल और गैसोलीन में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले रसायन) भी पाए गए.

इन प्रदूषकों की सांद्रता जहाज के पास जाने पर बढ़ती गई. शोधकर्ताओं ने पाया कि ये सांद्रता आसपास के माइक्रोबियल जीवन को प्रभावित करती है. उच्च सांद्रता वाले प्रदूषकों के नमूनों में, पीएएच को डीग्रेड करने वाले माइक्रोब्स जैसे, रोडोबैक्टीरिया (Rhodobacteraceae) और क्रोमैटियासी (Chromatiaceae,) पाए गए. पतवार पर सल्फेट को कम करने वाले बैक्टीरिया पाए गए.

 

शोधकर्ताओं का कहना है कि ये पुराने जहाज भले ही हमें नहीं दिखते, फिर भी वे हमारे समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को प्रदूषित कर सकते हैं. जैसे-जैसे वे पुराने हो रहे हैं और उनमें जंग लग रही है, ये पर्यावरण के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं. शोधकर्ताओं का कहना कि अगर पानी के नीचे के पारिस्थितिक तंत्र पर जहाजों द्वारा पड़ने वाले प्रभावों को खोजना है, तो अभी वहां बहुत कुछ है. 

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वैन लैंडुयट कहते हैं कि लोग अक्सर अपने ऐतिहासिक मूल्यों की वजह से जहाजों के मलबे में काफी दिलचस्पी लेते हैं, लेकिन मलबे के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों को अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है. उनका कहना है कि हमने एक स्थान पर, एक गहराई पर, केवल एक जहाज की जांच की है. उत्तरी सागर पर जहाजों के मलबे के कुल प्रभाव का बेहतर तरीके से जानने के लिए अलग-अलग जगहों से बड़ी संख्या में जहाज़ के मलबे के नमूने लेने होंगे. 


 

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