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Aditya L1 Mission: सूरज तक नहीं जाएगा Aditya-L1, 14.85 करोड़ किलोमीटर दूर से करेगा Face reading

ISRO का आदित्य-L1 मिशन सूरज तक नहीं जा रहा है. भारत का यह यान सूरज 14.85 करोड़ किलोमीटर दूर से उसकी फेस रीडिंग करेगा. यानी इतनी दूर से सूरज की स्टडी करेगा. आदित्य की आज सुबह 11:50 बजे श्रीहरिकोटा से लॉन्चिंग है. इसे PSLV-XL रॉकेट से धरती की निचली कक्षा में भेजा जाएगा.

Aditya-L1 आज सुबह 11:50 बजे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च किया जाएगा. (सभी फोटोः ISRO) Aditya-L1 आज सुबह 11:50 बजे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च किया जाएगा. (सभी फोटोः ISRO)
ऋचीक मिश्रा
  • नई दिल्ली,
  • 02 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 11:02 AM IST

सबसे बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि क्या ISRO का Aditya-L1 मिशन सूरज पर जाएगा? जवाब है नहीं. धरती से सूरज की दूरी करीब 15 करोड़ किलोमीटर है. आदित्य-एल1 स्पेसक्राफ्ट धरती से 15 लाख किलोमीटर दूर L1 यानी लैरेंज प्वाइंट वन पर जाएगा. वह सूरज से 14.85 करोड़ किलोमीटर दूर से सूर्य की स्टडी करेगा. 

कहां दिखेगा Live Launch? 

आदित्य-L1 की लाइव लॉन्चिंग आप नीचे दिए गए इन लिंक्स पर देख सकते हैं. लाइव लॉन्चिंग 11:20 से शुरू होगी.

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इसरो की वेबसाइट... isro.gov.in
फेसबुक... facebook.com/ISRO
यूट्यूब... youtube.com/watch?v=_IcgGYZTXQw

या फिर डीडी नेशनल टीवी चैनल पर

क्या है L1 यानी लैरेंज प्वाइंट वन? 

अब सवाल ये उठता है कि लैरेंज प्वाइंट क्या है? यह अंतरिक्ष में मौजूद ऐसी जगह है जो धरती और सूरज के बीच सीधी रेखा में पड़ती है. धरती से इसकी दूरी 15 लाख किलोमीटर है. सूरज की अपनी ग्रैविटी है. यानी गुरुत्वाकर्षण शक्ति. धरती की अपनी ग्रैविटी है. अंतरिक्ष में जहां पर इन दोनों की ग्रैविटी आपस में टकराती है. या यूं कहें जहां पर धरती की ग्रैविटी का असर खत्म होता है. वहां से सूरज की ग्रैविटी का असर शुरू होता है. 

इसी बीच के प्वाइंट को लैरेंज प्वाइंट (Lagrange Point). धरती और सूरज के बीच ऐसे पांच लैंरेंज प्वाइंट चिन्हित किए गए हैं. भारत का सूर्ययान लैरेंज प्वाइंट वन यानी L1 पर तैनात होगा. दोनों की ग्रैविटी की जो सीमा है वहां कोई छोटी वस्तु लंबे समय तक रह सकती है. वह दोनों की ग्रैविटी के बीच फंसी रहेगी. 

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इससे स्पेसक्राफ्ट का ईंधन कम इस्तेमाल होता है. वह ज्यादा दिन काम करता है. जहां तक L1 की बात रही तो यह सूरज और धरती की सीधी रेखा के बच स्थित है. यह सूरज और धरती की कुल दूरी का एक फीसदी हिस्सा है. यानी 15 लाख किलोमीटर. जबकि, सूरज से धरती की दूरी 15 करोड़ किलोमीटर है 

क्या स्टडी करेगा आदित्य-L1?

सूरज की सतह से थोड़ा ऊपर यानी फोटोस्फेयर का तापमान करीब 5500 डिग्री सेल्सियस रहता है. उसके केंद्र का तापमान अधिकतम 1.50 करोड़ डिग्री सेल्सियस रहता है. ऐसे में किसी यान या स्पेसक्राफ्ट का वहां जाना संभव नहीं है. धरती पर इंसानों द्वारा बनाई गई कोई ऐसी वस्तु नहीं है, जो सूरज की गर्मी बर्दाश्त कर सके. 

इसलिए स्पेसक्राफ्ट्स को सूरज से उचित दूरी पर रखा जाता है. या फिर उसके आसपास से गुजारा जाता है. ISRO 2 सितंबर 2023 की सुबह 11.50 बजे आदित्य-एल1 मिशन लॉन्च करने जा रहा है. यह भारत की पहली अंतरिक्ष आधारित ऑब्जरवेटरी (Space Based Observatory) है. आदित्य-एल1 सूरज से इतनी दूर तैनात होगा कि उसे गर्मी लगे तो लेकिन वह मारा न जाए. खराब न हो. उसे इसी हिसाब से बनाया गया है. 

लॉन्चिंग श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से की जाएगी. इस यात्रा के दौरान आदित्य-एल1 15 लाख किलोमीटर की यात्रा करेगा. यह चांद की दूरी से करीब चार गुना ज्यादा है. लॉन्चिंग के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है PSLV-XL रॉकेट. जिसका नंबर है PSLV-C57. 

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किस काम के लिए भेजा जा रहा है आदित्य-L1? 

- सौर तूफानों के आने की वजह, सौर लहरों और उनका धरती के वायुमंडल पर क्या असर होता है.
- आदित्य सूरज के कोरोना से निकलने वाली गर्मी और गर्म हवाओं की स्टडी करेगा. 
- सौर हवाओं के विभाजन और तापमान की स्टडी करेगा. 
- सौर वायुमंडल को समझने का प्रयास करेगा. 

कौन-कौन से पेलोड्स जा रहे हैं आदित्य के साथ? 

PAPA यानी प्लाज्मा एनालाइजर पैकेज फॉर आदित्य ... यह सूरज की गर्म हवाओं में मौजूद इलेक्ट्रॉन्स और भारी आयन की दिशाओं और उनकी स्टडी करेगा. कितनी गर्मी है इन हवाओं में इसका पता करेगा. साथ ही चार्ज्ड कणों यानी आयंस के वजन का भी पता करेगा. 

VELC यानी  विजिबल लाइन एमिसन कोरोनाग्राफ... इसे इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स ने बनाया है. सूर्ययान में लगा VELC सूरज की HD फोटो लेगा. इस स्पेसक्राफ्ट को PSLV रॉकेट से लॉन्च किया जाएगा. इस पेलोड में लगा कैमरा सूरज के हाई रेजोल्यूशन तस्वीरे लेगा. साथ ही स्पेक्ट्रोस्कोपी और पोलैरीमेट्री भी करेगा.  

SUIT यानी सोलर अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलिस्कोप... यह एक अल्ट्रावायलेट टेलिस्कोप है. यह सूरज की अल्ट्रावायलेट वेवलेंथ की तस्वीरे लेगा. साथ ही सूरज के फोटोस्फेयर और क्रोमोस्फेयर की तस्वीरें लेगा. यानी नैरो और ब्रॉडबैंड इमेजिंग होगी. 

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SoLEXS यानी सोलर लो एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर... सूरज से निकलने वाले एक्स-रे और उसमें आने वाले बदलावों की स्टडी करेगा. साथ ही सूरज से निकलने वाली सौर लहरों का भी अध्ययन करेगा. 

HEL10S यानी हाई एनर्जी L1 ऑर्बिटिंग एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (HEL1OS)... यह एक हार्ड एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर है. यह हार्ड एक्स-रे किरणों की स्टडी करेगा. यानी सौर लहरों से निकलने वाले हाई-एनर्जी एक्स-रे का अध्ययन करेगा. 

ASPEX यानी आदित्य सोलर विंड पार्टिकल एक्सपेरिमेंट... इसमें दो सब-पेलोड्स हैं. पहला SWIS यानी सोलर विंड आयन स्पेक्ट्रोमीटर जो कम ऊर्जा वाला स्पेक्ट्रोमीटर है. यह सूरज की हवाओं में आने वाले प्रोटोन्स और अल्फा पार्टिकल्स की स्टडी करेगा. दूसरा STEPS यानी सुपरथर्म एंड एनर्जेटिक पार्टिकल स्पेक्ट्रोमीटर. यह सौर हवाओं में आने वाले ज्यादा ऊर्जा वाले आयंस की स्टडी करेगा.  

MAG यानी एडवांस्ड ट्राई-एक्सियल हाई रेजोल्यूशन डिजिटल मैग्नेटोमीटर्स... यह सूरज के चारों तरफ मैग्नेटिक फील्ड की स्टडी करेगा. साथ ही धरती और सूरज के बीच मौजूद कम तीव्रता वाली मैग्नेटिक फील्ड की भी स्टडी करेगा. इसमें दो मैग्नेटिक सेंसर्स को दो सेट हैं. ये सूर्ययान के मुख्य शरीर से तीन मीटर आगे निकले रहेंगे. 

कैसी होगी आदित्य की यात्रा?  

आदित्य-L1 अपनी यात्रा की शुरुआत लोअर अर्थ ऑर्बिट (LEO) से करेगा. यानी PSLV-XL रॉकेट उसे तय LEO में छोड़ देगा. इसके बाद तीन या चार ऑर्बिट मैन्यूवर करके सीधे धरती की गुरुत्वाकर्षण वाले क्षेत्र यानी स्फेयर ऑफ इंफ्लूएंस (SOI) से बाहर जाएगा. फिर शुरू होगी क्रूज फेज. यह थोड़ी लंबी चलेगी. 

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इसके बाद आदित्य-L1 को हैलो ऑर्बिट (Halo Orbit) में डाला जाएगा. जहां पर L1 प्वाइंट होता है. यह प्वाइंट सूरज और धरती के बीच में स्थित होता है. लेकिन सूरज से धरती की दूरी की तुलना में मात्र 1 फीसदी है. इस यात्रा में इसे 127 दिन लगने वाला है. इसे कठिन इसलिए माना जा रहा है क्योंकि इसे दो बड़े ऑर्बिट में जाना है. 

पहली कठिन ऑर्बिट है धरती के SOI से बाहर जाना. क्योंकि पृथ्वी अपने गुरुत्वाकर्षण शक्ति से उसके आसपास हर चीज को खींचती है. इसके बाद है क्रूज फेज और हैलो ऑर्बिट में L1 पोजिशन को कैप्चर करना. अगर यहां उसकी गति को नियंत्रित नहीं किया गया तो वह सीधे सूरज की तरफ चलता चला जाएगा. और जलकर खत्म हो जाएगा. 

क्यों भेजा जा रहा है यान? 

सूरज हमारा तारा है. उससे ही हमारे सौर मंडल को ऊर्जा यानी एनर्जी मिलती है. इसकी उम्र करीब 450 करोड़ साल मानी जाती है. बिना सौर ऊर्जा के धरती पर जीवन संभव नहीं है. सूरज की ग्रैविटी की वजह से ही इस सौर मंडल में सभी ग्रह टिके हैं. नहीं तो वो कब का सुदूर गहरे अंतरिक्ष में तैर रहे होते. सूरज का केंद्र यानी कोर में न्यूक्लियर फ्यूजन होता है. इसलिए सूरज चारों तरफ आग उगलता हुआ दिखता है. सूरज की स्टडी इसलिए ताकि उसकी बदौलत सौर मंडल के बाकी ग्रहों की समझ भी बढ़ सके. 
  
अंतरिक्ष का मौसम जानना भी जरूरी

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सूरज की वजह से लगातार धरती पर रेडिएशन, गर्मी, मैग्नेटिक फील्ड और चार्ज्ड पार्टिकल्स का बहाव आता है. इसी बहाव को सौर हवा या सोलर विंड कहते हैं. ये उच्च ऊर्जा वाली प्रोटोन्स से बने होते हैं. सोलर मैग्नेटिक फील्ड का पता चलता है. जो कि बेहद विस्फोटक होता है. यहीं से कोरोनल मास इजेक्शन (CME) होता है. इसकी वजह से आने वाले सौर तूफान से धरती को कई तरह के नुकसान की आशंका रहती है. इसलिए अंतरिक्ष के मौसम को जानना  जरूरी है. यह मौसम सूरज की वजह से बनता और बिगड़ता है.  

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