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कल 'सूर्य नमस्कार' करेगा Aditya-L1, भारत ऐसे करेगा 50 सैटेलाइट्स की सुरक्षा

6 जनवरी 2024 की शाम करीब चार बजे Aditya सैटेलाइट L1 प्वाइंट के चारों तरफ मौजूद हैलो ऑर्बिट में पहुंचा दिया जाएगा. तब भारत के पहले सोलर ऑब्जरवेटरी की धरती से दूरी 15 लाख km होगी. 2 सितंबर को शुरू हुई ये यात्रा अगले कुछ घंटों में खत्म हो जाएगी. फिर 400 करोड़ रुपए का ये मिशन भारत के पचासों हजार करोड़ के पचासों सैटेलाइट्स की सुरक्षा करेगा.

6 जनवरी की शाम करीब चार बजे आदित्य सैटेलाइट को L1 प्वाइंट पर तैनात किया जाएगा. (सभी फोटोः ISRO) 6 जनवरी की शाम करीब चार बजे आदित्य सैटेलाइट को L1 प्वाइंट पर तैनात किया जाएगा. (सभी फोटोः ISRO)
आजतक साइंस डेस्क
  • नई दिल्ली,
  • 05 जनवरी 2024,
  • अपडेटेड 1:31 PM IST

2 सितंबर 2023 को ISRO ने भारत के पहले सौर वैधशाला (First Solar Space Observatory) आदित्य-एल1 (Aditya-L1) को लॉन्च किया. पांच महीने बाद 6 जनवरी 2024 की शाम ये ऑब्जरवेटरी L1 प्वाइंट पर पहुंच जाएगी. उसके चारों तरफ मौजूद सोलर हैलो ऑर्बिट (Solar Halo Orbit) में डाल दी जाएगी. 

L1 प्वाइंट पर मौजूद आदित्य सैटेलाइट की दूरी उस समय धरती से 15 लाख किलोमीटर होगी. इसके साथ ही सूरज की स्टडी कर रहे NASA के चार अन्य सैटेलाइट्स के समूह में शामिल हो जाएगा. ये सैटेलाइट्स हैं- WIND, Advanced Composition Explorer (ACE), Deep Space Climate Observatory (DSCOVER) और नासा-ESA का ज्वाइंट मिशन सोहो यानी सोलर एंड हेलियोस्फेयरिक ऑब्जरवेटरी है. 

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6 जनवरी की शाम को हैलो ऑर्बिट में डालने के लिए Aditya-L1 सैटेलाइट के थ्रस्टर्स को थोड़ी देर के लिए ऑन किया जाएगा. इसमें 12 थ्रस्टर्स हैं. फिलहाल ये खुलासा नहीं किया गया है कि कितने और कौन से थ्रस्टर्स का इस्तेमाल होगा. ये भी फैसला कल ही होगा कि लिक्विड एपोजी इंजन भी ऑन होगा या सिर्फ थ्रस्टर्स से काम चल जाएगा. 

L1 प्वाइंट पर सैटेलाइट डालना बेहद रिस्की और चुनौतीपूर्ण

आदित्य को L1 प्वाइंट पर डालना एक बड़ी चुनौतीपूर्ण काम है. ताकि वह सफलतापूर्वक हैलो ऑर्बिट में तैनात हो सके. इसके लिए इसरो को यह जानना जरूरी है कि उनका स्पेसक्राफ्ट कहां था. कहां है. और कहां जाएगा. उसे इस तरह ट्रैक करने के प्रोसेस को ऑर्बिट डिटरमिनेशन (Orbit Determination) कहते हैं. एक बार यह काम हो गया तब अलग-अलग समय पर ऑर्बिट मैन्यूवरिंग करनी होगी. ताकि आदित्य उसी जगह पर हमेशा बना रहे. 

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400 करोड़ का प्रोजेक्ट बचाएगा देश के पचासों हजार करोड़ रुपए

आदित्य-एल1 मिशन की प्रोजेक्ट डायरेक्टर निगार शाजी ने एक इंटरव्यू में बताया है कि ये मिशन सिर्फ सूरज की स्टडी करने में मदद नहीं करेगा. बल्कि करीब 400 करोड़ रुपए का प्रोजेक्ट सौर तूफानों की जानकारी भी देगा. जिससे भारत के पचासों हजार करोड़ रुपए के पचासों सैटेलाइट को सुरक्षित किया जा सकेगा. जो भी देश इस तरह की मदद मांगेगा, उन्हें भी मदद की जाएगी. ये प्रोजेक्ट देश के लिए बेहद जरूरी है. 

सूरज की अलग-अलग रंगों के पहली तस्वीरें भी हुई थीं जारी

इस सैटेलाइट के सोलर अल्ट्रावॉयलेट इमेजिंग टेलिस्कोप (SUIT) ने सूरज की पहली बार फुल डिस्क तस्वीरें भी ली थी. ये सभी तस्वीरें 200 से 400 नैनोमीटर वेवलेंथ की थी. यानी आपको सूरज 11 अलग-अलग रंगों में दिखाई देगा. इस पेलोड को 20 नवंबर 2023 को ऑन किया गया था. इस टेलिस्कोप ने सूरज के फोटोस्फेयर और क्रोमोस्फेयर की तस्वीरें ली हैं. 

फोटोस्फेयर मतलब सूरज की सतह और क्रोमोस्फेयर यानी सूरज की सतह और बाहरी वायुमंडल कोरोना के बीच मौजूद पतली परत. क्रोमोस्फेयर सूरज की सतह से 2000 km ऊपर तक होती है. इससे पहले सूरज की तस्वीर 6 दिसंबर 2023 को ली गई थी. लेकिन वह पहली लाइट साइंस इमेज थी. लेकिन इस बार फुल डिस्क इमेज ली गई है. यानी सूरज का जो हिस्सा पूरी तरह से सामने है, उसकी फोटो. इन तस्वीरों की मदद से वैज्ञानिक सूरज की स्टडी ढंग से कर पाएंगे. 

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क्या है लैरेंज प्वाइंट? 

लैरेंज प्वाइंट (Lagrange Point). यानी L. यह नाम गणितज्ञ जोसेफी-लुई लैरेंज के नाम पर दिया गया है. इन्होंने ही इन लैरेंज प्वाइंट्स को खोजा था. जब किसी दो घूमते हुए अंतरिक्षीय वस्तुओं के बीच ग्रैविटी का एक ऐसा प्वाइंट आता है, जहां पर कोई भी वस्तु या सैटेलाइट दोनों ग्रहों या तारों की गुरुत्वाकर्षण से बचा रहता है. 

आदित्य-L1 क्या है? 

Aditya-L1 भारत की पहली अंतरिक्ष आधारित ऑब्जरवेटरी (Space Based Observatory) है. यह सूरज से इतनी दूर तैनात होगा कि उसे गर्मी तो लगे लेकिन खराब न हो. क्योंकि सूरज की सतह से थोड़ा ऊपर यानी फोटोस्फेयर का तापमान करीब 5500 डिग्री सेल्सियस रहता है. केंद्र का तापमान 1.50 करोड़ डिग्री सेल्सियस रहता है. ऐसे में किसी यान या स्पेसक्राफ्ट का वहां जाना संभव नहीं है.  

क्या करेगा आदित्य-L1 स्पेस्क्राफ्ट?

- सौर तूफानों के आने की वजह, सौर लहरों और उनका धरती के वायुमंडल पर क्या असर होता है.
- आदित्य सूरज के कोरोना से निकलने वाली गर्मी और गर्म हवाओं की स्टडी करेगा. 
- सौर हवाओं के विभाजन और तापमान की स्टडी करेगा. 
- सौर वायुमंडल को समझने का प्रयास करेगा. 

सूरज की स्टडी क्यों... क्यों जरूरी है ये मिशन?  

- सूरज हमारा तारा है. उससे ही हमारे सौर मंडल को ऊर्जा यानी एनर्जी मिलती है. 
- इसकी उम्र करीब 450 करोड़ साल मानी जाती है. बिना सौर ऊर्जा के धरती पर जीवन संभव नहीं है. 
- सूरज की ग्रैविटी की वजह से ही इस सौर मंडल में सभी ग्रह टिके हैं. 
- सूरज का केंद्र यानी कोर में न्यूक्लियर फ्यूजन होता है. इसलिए सूरज चारों तरफ आग उगलता हुआ दिखता है. 
- सूरज की स्टडी इसलिए ताकि उसकी बदौलत सौर मंडल के बाकी ग्रहों की समझ भी बढ़ सके. 
 - सूरज की वजह से लगातार धरती पर रेडिएशन, गर्मी, मैग्नेटिक फील्ड और चार्ज्ड पार्टिकल्स का बहाव आता है. इसी बहाव को सौर हवा या सोलर विंड कहते हैं. ये उच्च ऊर्जा वाली प्रोटोन्स से बने होते हैं.
- सोलर मैग्नेटिक फील्ड का पता चलता है. जो कि बेहद विस्फोटक होता है. 
- कोरोनल मास इजेक्शन (CME) वजह से आने वाले सौर तूफान से धरती को कई तरह के नुकसान की आशंका रहती है. इसलिए अंतरिक्ष के मौसम को जानना  जरूरी है. यह मौसम सूरज की वजह से बनता और बिगड़ता है. 

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कौन से पेलोड्स जा रहे हैं आदित्य के साथ? 

PAPA यानी प्लाज्मा एनालाइजर पैकेज फॉर आदित्य ... यह सूरज की गर्म हवाओं में मौजूद इलेक्ट्रॉन्स और भारी आयन की दिशाओं और उनकी स्टडी करेगा. कितनी गर्मी है इन हवाओं में इसका पता करेगा. साथ ही चार्ज्ड कणों यानी आयंस के वजन का भी पता करेगा. 

VELC यानी  विजिबल लाइन एमिसन कोरोनाग्राफ... इसे इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स ने बनाया है. सूर्ययान में लगा VELC सूरज की HD फोटो लेगा. इस स्पेसक्राफ्ट को PSLV रॉकेट से लॉन्च किया जाएगा. इस पेलोड में लगा कैमरा सूरज के हाई रेजोल्यूशन तस्वीरे लेगा. साथ ही स्पेक्ट्रोस्कोपी और पोलैरीमेट्री भी करेगा.  

SUIT यानी सोलर अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलिस्कोप... यह एक अल्ट्रावायलेट टेलिस्कोप है. यह सूरज की अल्ट्रावायलेट वेवलेंथ की तस्वीरे लेगा. साथ ही सूरज के फोटोस्फेयर और क्रोमोस्फेयर की तस्वीरें लेगा. यानी नैरो और ब्रॉडबैंड इमेजिंग होगी. 

SoLEXS यानी सोलर लो एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर... सूरज से निकलने वाले एक्स-रे और उसमें आने वाले बदलावों की स्टडी करेगा. साथ ही सूरज से निकलने वाली सौर लहरों का भी अध्ययन करेगा. 

HEL10S यानी हाई एनर्जी L1 ऑर्बिटिंग एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (HEL1OS)... यह एक हार्ड एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर है. यह हार्ड एक्स-रे किरणों की स्टडी करेगा. यानी सौर लहरों से निकलने वाले हाई-एनर्जी एक्स-रे का अध्ययन करेगा. 

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ASPEX यानी आदित्य सोलर विंड पार्टिकल एक्सपेरिमेंट... इसमें दो सब-पेलोड्स हैं. पहला SWIS यानी सोलर विंड आयन स्पेक्ट्रोमीटर जो कम ऊर्जा वाला स्पेक्ट्रोमीटर है. यह सूरज की हवाओं में आने वाले प्रोटोन्स और अल्फा पार्टिकल्स की स्टडी करेगा. दूसरा STEPS यानी सुपरथर्म एंड एनर्जेटिक पार्टिकल स्पेक्ट्रोमीटर. यह सौर हवाओं में आने वाले ज्यादा ऊर्जा वाले आयंस की स्टडी करेगा.  

MAG यानी एडवांस्ड ट्राई-एक्सियल हाई रेजोल्यूशन डिजिटल मैग्नेटोमीटर्स... यह सूरज के चारों तरफ मैग्नेटिक फील्ड की स्टडी करेगा. साथ ही धरती और सूरज के बीच मौजूद कम तीव्रता वाली मैग्नेटिक फील्ड की भी स्टडी करेगा. इसमें दो मैग्नेटिक सेंसर्स को दो सेट हैं. ये सूर्ययान के मुख्य शरीर से तीन मीटर आगे निकले रहेंगे. 

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