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Alaskapox Virus: पहली बार ग्लेशियर पिघलने से बाहर निकले प्राचीन वायरस के संक्रमण से एक इंसान की मौत

पहली बार ग्लेशियर पर्माफ्रॉस्ट पिघलने से बाहर आए वायरस की वजह से एक इंसान की मौत हुई है. घटना अलास्का की है. ये वायरस अलास्का फेयरबैंक्स नॉर्थ स्टार बोरो पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से बाहर आया था. वहीं खोजा गया था. जिस इंसान की मौत हुई है वह केनाई प्रायद्वीप में इस वायरस से संक्रमित हुआ था.

अलास्कापॉक्स होने पर शरीर पर ऐसे लक्षण दिखने शुरू हो जाते हैं. (फोटोः अलास्का डिपार्टमेंट ऑफ हेल्थ) अलास्कापॉक्स होने पर शरीर पर ऐसे लक्षण दिखने शुरू हो जाते हैं. (फोटोः अलास्का डिपार्टमेंट ऑफ हेल्थ)
आजतक साइंस डेस्क
  • एंकरेज,
  • 12 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 12:17 PM IST

साल 2015 में अलास्का में एक नए वायरस की खोज हुई. यह फेयरबैंक्स नॉर्थ स्टार बोरो पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से बाहर निकला था. फरवरी 2024 तक इस वायरस से सिर्फ सात लोग संक्रमित हुए थे. लेकिन अब पहली बार इससे एक इंसान की मौत हुई है. छह मरीज फेयरबैंक्स नॉर्थ स्टार बोरो और सातवां केनाई प्रायद्वीप बोरो में मिले हैं. 

जिस व्यक्ति की मौत हुई है, उसे इस अलास्कापॉक्स वायरस (Alaskapox Virus) के संक्रमण का पता जनवरी के आखिरी में पता चला. यह वायरस एक डबल स्ट्रैंडेड डीएनए वायरस है. यह उसी जीनस से संबंध रखता है, जिससे स्मॉलपॉक्स, मंकीपॉक्स और काऊपॉक्स होते हैं. इसलिए इसका नाम अलास्कापॉक्स (Alaskapox) रखा गया था. 

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यह बीमारी छोटे स्तनधारी जीवों में भी खोजी गई है. इस वायरस के संक्रमण के बाद त्वचा पर लाल धब्बे दिखते हैं. दाने निकल जाते हैं. सही समय पर इलाज न हो तो ये घाव का रूप ले लेते हैं. इसमें पस बनने लगता है. जोड़ों, मांसपेशियों में दर्द होता है. लिंफ नोड्स सूज जाते हैं. सही समय पर इलाज मिलने के बाद भी ठीक होने में छह महीने लगते हैं. 

छोटे स्तनधारी जीवों से फैलता है ये खतरनाक वायरस

इंसानों में यह छोटे स्तनधारी जीवों के जरिए फैलता है लेकिन अभी तक यह क्लियर नहीं है कि किस तरह से इंसान इससे संक्रमित हुए हैं. साल 2021 तक हुए रिसर्च से पुख्ता सबूत नहीं मिले हैं कि अलास्कापॉक्स वायरस कैसे इंसानों में पहुंचा. एक और मरीज भी इस संक्रमण से जूझ रहा है, लेकिन उसे इलाज की जरूरत नहीं है, क्योंकि उसका इम्यून सिस्टम मजबूत है. लेकिन जिसकी मौत हुई उस इंसान की इम्यूनिटी बेहद कमजोर थी. 

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किसी संक्रमित जानवर के खंरोच से भी होगा संक्रमण

अलास्कापॉक्स से मरने वाला व्यक्ति जंगलों में अकेले रहता था. वह बाहर भी कहीं घूमने नहीं गया. ऐसी आशंका जताई जा रही है कि यह वायरस उसे उसकी पालतू बिल्ली से मिले होंगे. क्योंकि वह बिल्ली जंगल में छोटे स्तनधारी जीवों का शिकार करती थी. अगर बिल्ली ने उसे खंरोचा होगा तो वह संक्रमित हो गया होगा.

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सही समय पर इलाज बेहद जरूरी

बिल्ली तो वायरस से संक्रमित नहीं है, लेकिन यह वायरस उसके पंजों से फैल सकता है. जिसकी मौत हुई है उसे सितंबर में पहली बार दाहिने हाथ पर लाल सूजन और दाग दिखाई दिया. उसने एंटीबायोटिक्स लीं. लेकिन छह हफ्ते बाद उसके ये लक्षण बढ़ने लगे. जिसके बाद उसे थकान और दर्द भी रहता था. जनवरी तक कई बार जांच के बाद अलास्कापॉक्स वायरस के संक्रमण की पुष्टि हुई. मरीज की मौत किडनी और फेफड़ों के फेल होने की वजह से हुई है. 

कुछ दिन पहले तिब्बत के ग्लेशियर में मिले थे खतरनाक वायरस

तिब्बत में पिघलते ग्लेशियर से 15 हजार साल पुराने वायरस मिले हैं. ये वायरस भारत, चीन और म्यांमार जैसे देशों के लिए खतरा हो सकता है. इस प्राचीन वायरस के संक्रमण का कोई इलाज नहीं है. पूरी दुनिया में पर्माफ्रॉस्ट पिघल रहे हैं. ग्लेशियरों और पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से 40 हजार साल पुराने विशालकाय भेड़िये और 7.50 लाख साल पुराने बैक्टीरिया के निकलने का पता चला है.  

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हाल ही में वैज्ञानिकों ने तिब्बत के पठारों पर मौजूद गुलिया आइस कैप (Guliya Ice Cap) के पास से 15 हजार साल पुराने वायरसों का समूह खोजा है. ये वायरस समुद्री सतह से 22 हजार फीट की ऊंचाई पर चीन में तिब्बत के पिघलते ग्लेशियर के नीचे से मिले हैं. वैज्ञानिकों 33 वायरस खोजे. जिसमें से 28 के बारे में पूरी दुनिया को कुछ नहीं पता. 

ये इससे पहले कभी देखे नहीं गए. यानी इनके संक्रमण का कोई इलाज नहीं हो सकता. ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी के दूसरे साइंटिस्ट मैथ्यू सुलिवन ने कहा कि इन वायरसों ने चरम स्थितियों में अपनी जिंदगी बिताई है. ये अब किसी भी तरह के तापमान या मौसम को झेल सकते हैं. यानी इनके फैलने में किसी तरह की कोई बाधा नहीं है. न ही इलाज है. 

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