
2021 की बात है, ब्रिटेन के शहर विंचकोम्बे (Winchcombe) में एक घर के सामने एक प्राचीन उल्कापिंड (Meteorite) आकर गिरा था. इस उल्कापिंड में पानी था, जो पृथ्वी पर पाए जाने वाले पानी की रासायनिक संरचना से काफी मिलता-जुलता था. ये उल्कापिंड इस रहस्य को सुलझा सकता है कि पृथ्वी पर जो पानी है, वह कहां से आया होगा. आपको बता दें कि पृथ्वी पर आई ये अंतरिक्ष चट्टान करीब 460 करोड़ साल पुरानी थी.
जब सूरज के पास, गैस के गर्म बादल और धूल ने आपस में मिलकर युवा सौर मंडल के चट्टानी ग्रह बनाए, तो वे सूरज के इतने पास थे कि उनपर महासागर नहीं बन सके. असल में, फ्रॉस्ट लाइन नाम के एक पॉइंट के बाद, कोई भी बर्फ वाष्पीकृत होने से बच नहीं सकती थी, इससे युवा पृथ्वी बंजर बन गई जिसपर जीवन का होना असंभव हो गया. वैज्ञानिकों का मानना है कि जब बाहरी सौर मंडल से बर्फीले क्षुद्रग्रहों के ज़रिए हमारे ग्रह पर जमा हुआ पानी आया, तब पृथ्वी ठंडी हुई और यहां की स्थिति बदली. हाल ही में किए गए एक शोध में इसी थ्योरी को महत्व दिया गया है.
यह शोध साइंस एडवांसेज (Science Advances) जर्नल में प्रकाशित किया गया है, जिसमें विंचकोम्ब उल्कापिंड का एक नया विश्लेषण दिया गया है. ग्लासगो यूनीवर्सिटी में प्लैनेटरी जियोसाइंस के लेक्चरर और शोध के सह लेखक ल्यूक डेले (Luke Daly) का कहना है कि विंचकोम्बे उल्कापिंड के विश्लेषण से हमें इस बात के इनसाइट्स मिलते हैं कि पृथ्वी पर पानी कैसे आया, जो इतने सारे जीवन का स्रोत है. शोधकर्ता इस नमूने पर आने वाले सालों में काम करना जारी रखेंगे, और हमारे सौर मंडल को और रहस्यों को उजागर करेंगे.
लंदन में नेचुरल हिस्ट्री म्यूज़ियम के रिसर्च फेलो और शोध के लेखक एशले किंग (Ashley King) का कहना है कि स्पेस रॉक के ज़मीन पर गिरने के कुछ ही घंटों में, उसपर से कार्बन का एक दुर्लभ प्रकार- कार्बोनेसियस चोंड्राइट (carbonaceous chondrite) को इकट्ठा किया गया. यह उल्कापिंड सौर मंडल की मूल संरचना की एक झलक पेश करता है.
चट्टान के अंदर खनिजों और तत्वों का विश्लेषण करने के लिए, शोधकर्ताओं ने इसे पॉलिश किया, गर्म किया और इसपर एक्स-रे और लेजर किरणें डालीं. जांच से खुलासा हुआ कि यह उल्कापिंड बृहस्पति की कक्षा में चक्कर लगाने वाले एस्टेरॉएड से आया था और उस उल्कापिंड के द्रव्यमान का 11% हिस्सा पानी था.
एस्टेरॉएड पर मौजूद पानी में हाइड्रोजन दो रूपों में था- सामान्य हाइड्रोजन और हाइड्रोजन आइसोटोप जिसे ड्यूटेरियम कहा जाता है. इससे "भारी पानी" बनता है. वैज्ञानिकों ने पाया कि हाइड्रोजन से ड्यूटेरियम का अनुपात, पृथ्वी के पानी में पाए जाने वाले अनुपात से मेल खाता है. इसका मतलब ये है कि उल्कापिंड का पानी और हमारे ग्रह के पानी का उद्गम एक ही है. इस चट्टान में अमीनो एसिड, प्रोटीन और जीवन के लिए ज़रूरी निर्माण खंड भी पाए गए.
इस शोध को और बढ़ाने के लिए, वैज्ञानिक सौर मंडल के चारों ओर तैरने वाली अन्य अंतरिक्ष चट्टानों का विश्लेषण भी कर सकते हैं. सौर मंडल की अंतरिक्ष चट्टानों का एक व्यापक सर्वे, वैज्ञानिकों को और भी बेहतर जानकारी दे सकता है कि किन चट्टानों ने पृथ्वी का निर्माण किया और वे आए कहां से.