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चींटियां भी पिलाती हैं बच्चों को 'दूध', बच्चे ही नहीं वयस्क भी चाव से पीते हैं

चींटियां कॉलोनी में रहती हैं. अपने विकास के अलग-अलग चरणों में ये चीटियां एक दूसरे पर निर्भर करती हैं. शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि चींटियां एक तरह के पौष्टिक 'दूध' का स्राव करती हैं, जिसे चींटियों के बच्चे ही नहीं, बल्कि पूरी कॉलोनी बड़े चाव से पीती है. आज जानेंगे चीटियों के दूध के बारे में.

पीले प्यूपा कोकून से तरल पीती हनीपॉट चींटी (Photo: Daniel Kronauer) पीले प्यूपा कोकून से तरल पीती हनीपॉट चींटी (Photo: Daniel Kronauer)
aajtak.in
  • न्यू यॉर्क,
  • 05 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 9:32 AM IST

बच्चे चाहे इंसानों के हों या फिर जानवरों के, बच्चों को स्वस्थ रहने और बढ़ने के लिए दूध पीना ज़रूरी माना जाता है. आपको ये जानकर हैरानी होगी कि चींटियों के बच्चे भी दूध पीकर ही बढ़े होते हैं. और सिर्फ बच्चे ही नहीं, चींटियों की पूरी कॉलोनी इस 'दूध' का आनंद लेती है.

ये चींटियों का पसंदीदा ड्रिंक है. यह पोषक तत्वों से भरा एक तरह का 'दूध' होता है, जो युवा चींटियों से निकलता है. नए बच्चों से लेकर वयस्क तक, पूरी कॉलोनी ये दूध पीती है. शोधकर्ताओं ने इस दूध को 'सोशल फ्लूड' (Social fluid) नाम दिया है. इस प्रक्रिया को नीचे वीडियो में देखा जा सकता है.

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चींटी के प्यूपा (Ant pupae) अपने विकास के एक खास चरण के दौरान, बड़ी मात्रा में इस तरल का स्राव करते हैं. यह तरल पदार्थों का एक कॉकटेल होता है, जिसमें प्यूपा की पुरानी झिल्ली के छोटे टुकड़ों के साथ-साथ इसे तोड़ने वाले एंजाइम भी शामिल होते हैं. चींटियों को ये बहुत स्वादिष्ट लगता है.

रॉकफेलर यूनिवर्सिटी (Rockefeller University) के जीवविज्ञानी डैनियल क्रोनॉयर (Daniel Kronauer) का कहना है कि हैचिंग के बाद के शुरुआती दिनों में, लार्वा इस तरल पदार्थ पर ठीक उसी तरह निर्भर रहता है, जिस तरह एक नवजात शिशु दूध पर निर्भर रहता है. वयस्क भी इसे खूब पीते हैं. हालांकि, हम ये नहीं जानते कि वयस्कों के लिए ये क्या करता है, लेकिन हमें लगता है कि ये उनके मेटाबोलिज़्म और फिज़ियोलॉजी को प्रभावित करता है.

वयस्क केयरटेकर लार्वा को उठाकर प्यूपा पर छोड़ देते हैं, जहां वे दूध पीते हैं (Photo: Daniel Kronauer)

नेचर जर्नल में प्रकाशित शोध के मुताबिक, रॉकफेलर यूनिवर्सिटी की एथोलॉजिस्ट ओरली स्निर (Orli Snir) और उनके सहयोगी जब शोध कर रहे थे कि सामाजिक अलगाव चींटियों पर क्या असर डालता है, तब उन्होंने चींटियों के इस पेय के बारे में पता चला. शोधकर्ताओं ने चींटियों की कॉलोनी से प्यूपा को अलग कर दिया और चींटियों के कुछ बच्चों के लिए तरल पदार्थ को मैन्युअल तरीके से अलग कर दिया, लेकिन दूसरों को अकेला छोड़ दिया. 

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इसके नतीजे हैरान करने वाले थे. शोधकर्ताओं ने शोध में कहा है कि अगर अलग किए गए प्यूपा से तरल पदार्थ को हटाया नहीं जाएगा, तो वे अपने खुद के स्राव में ही डूब जाएंगे. दूसरे प्यूपा जिन्हें नेस्ट बॉक्स में रखा गया था, सुरक्षित वातावरण में रहने के बावजूद उनमें फंगल इनफेक्शन हो गया और वे मर गए. लेकिन जो चींटियां 'दूध' के निकलते ही कॉलोनी में वापस लौट आईं, उनके जीवित रहने की दर ज्यादा थी. स्निर का कहना है कि यह दर्शाता है कि कॉलोनी के संदर्भ में, स्राव को हटाने के लिए प्यूपा वयस्कों पर निर्भर करता है, नहीं तो वह मर जाएगा. 

चींटियां अपने विकास के सबसे डॉरमेंट फेज़ के दौरान 'दूध' का उत्पादन करती हैं. यह वो दौर है जब वे लार्वा से वयस्कों में बदल रही होती हैं. शोधकर्ताओं ने ब्लू फूड डाई का इस्तेमाल करते हुए, यह पता लगाया कि नए बच्चों ने भी इस दूध को पिया था. उनके वयस्क केयरटेकर बड़ी सावधानी से उन्हें उठाते हैं और दूध पीने के लिए उन्हें बड़े प्यूपा पर छोड़ देते हैं. अगर नवजात लार्वा को जीवन के शुरुआती दिनों में यह दूध नहीं मिलता है, तो उनके मरने की संभावना ज्यादा हो जाती है.

 

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टीम का कहना है कि प्यूपा के दूध में अमीनो एसिड, शुगर और विटामिन के साथ-साथ, हार्मोन और न्यूरोएक्टिव पदार्थ भी होते हैं. यह प्रयोग क्लोनल रेडर चींटियों (Ooceraea biroi) पर किया गया था, लेकिन शोधकर्ताओं ने पाया कि चींटियों की 5 बड़ी सब फैमिली में से कम सम कम एक प्रजाति में यही प्रक्रिया पाई गई.

यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि यह प्यूपा मिल्क, चींटियों की सामाजिक संरचना को कैसे प्रभावित करता है, लेकिन शोधकर्ता इसका पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं. शोधकर्ताओं का कहना है कि जिस तरह से चींटियां इस तरल पदार्थ का इस्तेमाल करती हैं, वह विकास के अलग-अलग चरणों के बीच निर्भरता पैदा करता है. 


 

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