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आर्कटिक सागर पर रिसर्च से नया खुलासा, फिर करनी होगी क्लाइमेट चेंज की स्टडी

आर्कटिक महासागर (Arctic Ocean) करीब 121 सालों से गर्म हो रहा है. जबकि, वैज्ञानिक मान रहे थे कि इसकी शुरुआत कई दशकों बाद हुई थी. एक नई रिसर्च में यह पता चला है कि आर्कटिक महासागर साल 1900 की शुरुआती वर्षों से ही गर्म होने लगा था. जिसके पीछे अटलांटिक महासागर की गर्म पानी को वजह बताया जा रहा है. सौ सालों से ज्यादा पहले ही आर्कटिक महासागर का तापमान दो डिग्री बढ़ चुका था.

साल 1900 के शुरुआत से ही गर्म हो रहा है आर्कटिक महासागर. (फोटोः गेटी) साल 1900 के शुरुआत से ही गर्म हो रहा है आर्कटिक महासागर. (फोटोः गेटी)
aajtak.in
  • लंदन,
  • 30 नवंबर 2021,
  • अपडेटेड 5:58 PM IST
  • वैज्ञानिकों ने जितना सोचा था, उससे दशकों पहले से गर्म हो रहा है आर्कटिक महासागर.
  • ग्रीनलैंड के फ्राम की खाड़ी की तलहटी से लिए गए समुद्री सैंपलों के आधार पर की गई गणना.
  • कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की अपील- फिर से करनी चाहिए क्लाइमेट चेंज की स्टडी.

आर्कटिक महासागर (Arctic Ocean) करीब 121 सालों से गर्म हो रहा है. जबकि, वैज्ञानिक मान रहे थे कि इसकी शुरुआत कई दशकों बाद हुई थी. एक नई रिसर्च में यह पता चला है कि आर्कटिक महासागर साल 1900 की शुरुआती वर्षों से ही गर्म होने लगा था. जिसके पीछे अटलांटिक महासागर की गर्म पानी को वजह बताया जा रहा है. सौ सालों से ज्यादा पहले ही आर्कटिक महासागर का तापमान दो डिग्री बढ़ चुका था. 

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कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में जियोग्राफी के असिसटेंट प्रोफेसर और इस स्टडी के प्रमुख शोधकर्ता फ्रांसेस्को मुशिटिएलो ने कहा कि हमारी स्टडी में सामने आए परिणाम डराने वाले हैं. यानी दुनियाभर के वैज्ञानिकों के वो मॉडल और फॉर्मूले गलत साबित हो सकते हैं, जिनके जरिए वो क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वॉर्मिंग को मापते हैं. आर्कटिक महासागर जितना सोचा गया था, उससे कई दशक पहले से ही गर्म होता जा रहा है. 

दुनियाभर के वैज्ञानिकों को फिर से करनी होगी क्लाइमेट चेंज की स्टडी!

प्रो. फ्रांसेस्को ने कहा कि इस स्टडी के आधार पर अब दुनिया भर के वैज्ञानिकों को क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वॉर्मिंग से संबंधित तकनीकों और मॉडल्स को बदलना होगा. ताकि सही गणना की जा सके. क्योंकि अगर कोई सागर इतने साल पहले से गर्म हो रहा यानी उसका असर समुद्री इकोसिस्टम के साथ-साथ जमीनी पर्यावरण पर भी पड़ता है. वैज्ञानिकों ने ग्रीनलैंड के पास मौजूद फ्राम की खाड़ी (Fram Straight) की तलहटी से समुद्री सैंपल लिए. 

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वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर आर्कटिक को लेकर हमारी गणना गलत हो सकती है, तो अन्य गलतियां भी हो सकती हैं. (फोटोः गेटी)

आर्कटिक महासागर का हो रहा है अटलांटिफिकेशन, प्रक्रिया खतरनाक

फ्राम की खाड़ी ग्रीनलैंड के पूर्व में स्थित वह समुद्री जगह है, जहां पर अटलांटिक महासागर और आर्कटिक महासागर आपस में मिलते हैं. इस प्रक्रिया को अटलांटिफिकेशन (Atlanticfication) कहते हैं. फ्रांसेस्को और उनकी टीम का मकसद था कि सैंपल की जांच करके 800 सालों से ज्यादा समय का डेटा एनालिसिस किया जाए. ताकि यह पता चल सके कि अटलांटिक महासागर का पानी जब आर्कटिक में मिलता है तो उससे क्या होता है. प्रो. फ्रांसेस्को ने बताया कि जो समुद्री सैंपल हमने जमा किए हैं वो एक तरह के नेचुरल आर्काइव हैं. इनके अंदर कई तरह के रहस्य छिपे हैं. 

आर्कटिक महासागर में 100 से ज्यादा सालों से बढ़ रहा है तापमान और नमक

फ्रांसेस्को की टीम ने जब समुद्री सैंपल का तापमान और सैलीनिटी यानी समुद्री पानी में नमक की मात्रा की जांच को तो हैरान रह गए. उन्हें पता चला कि आर्कटिक महासागर 20वीं सदी की शुरुआत से ही गर्म होने लगा था. लेकिन यह कुछ दशकों के बाद बेहद तेजी से बढ़ा. NOAA के जियोफिजिकल फ्लूड डायनेमिक्स लेबोरेटरी के सीनियर साइंटिस्ट रॉन्ग झान्ग ने कहा कि यह स्टडी बताती है कि अटलांटिक महासागर काफी ज्यादा मात्रा में गर्मी और नमक आर्कटिक महासागर में छोड़ रहा है. इसकी शुरुआत नॉर्डिक सागर (Nordic Sea) से हुई थी. ये जानना जरूरी है कि इतनी तेजी से अटलांटिफिकेशन हो रहा था. आखिर ये कैसे हुआ? 

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अटलांटिक महासागर फेंक रहा है आर्कटिक सागर में गर्मी और नमक. (फोटोः गेटी)

बर्फ पिघलती गई, महासागर का तापमान लगातार बढ़ता चला गया

रॉन्ग झान्ग ने कहा कि ये कहानी शुरु हुई थी शुरुआती 1900 में. इस समय तो हम वायुमंडल को कार्बन डाईऑक्साइड से और ज्यादा गर्म कर रहे हैं. ये संभव है कि हमने जितना सोचा था आर्कटिक महासागर ग्रीनहाउस गैसों के प्रति उससे ज्यादा संवेदनशील हो. हमें इस चीज को समझने के लिए ज्यादा स्टडी करने की जरूरत है. हालांकि हमारे पास अब भी इस चीज की तैयारी या सुविधा नहीं है कि हम शुरुआती अटलांटिफिकेशन की जांच कैसे करें. यह स्टडी हाल ही में साइंस एडवांसेस जर्नल में प्रकाशित हुई है. 

आर्कटिक महासागर (Arctic Ocean) का तापमान तेजी से बढ़ने की वजह से उसकी बर्फ ज्यादा तेजी से पिघल रही है. जो बर्फ सूरज की किरणों को रिफलेक्ट करती थी. अब उतनी बची नहीं है. यानी ज्यादा गर्मी. जब सागर के ऊपर बर्फ की परत बचेगी नहीं तो समुद्र सूरज की रोशनी ज्यादा सोखेगा, वो ज्यादा गर्म होगा. NOAA के आर्कटिक साइंटिस्ट कहते हैं कि उत्तरी अटलांटिक और आर्कटिक में लगातार पिघल रहे बर्फ की वजह से समुद्री इकोसिस्टम बहुत तेजी से बिगड़ रहा है. 

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