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प्राचीन इंसानों के दांत में मिले बैक्टीरिया से बनेगी एंटीबायोटिक दवा

बैक्टीरिया से होने वाली बीमारियों से बचाने के लिए वैज्ञानिक अब नया एंटीबायोटिक बनाने जा रहे हैं. इसके लिए वो प्राचीन निएंडरथल मानवों के दांत से बैक्टीरिया निकालेंगे. ये बैक्टीरिया उस समय के इंसानों के दांत में बने गड्डे में छिपे थे. नया एंटीबायोटिक कई पुरानी और नई बीमारियों से इंसानों को बचा सकता है.

ये है वो दांत जिसके बैक्टीरिया से बनाई जा सकती है एंटीबायोटिक दवा. (सभी फोटोः वर्नर सीमेंस फाउंडेशन) ये है वो दांत जिसके बैक्टीरिया से बनाई जा सकती है एंटीबायोटिक दवा. (सभी फोटोः वर्नर सीमेंस फाउंडेशन)
aajtak.in
  • वॉशिंगटन,
  • 12 मई 2023,
  • अपडेटेड 5:52 PM IST

हम इंसान असल में होमोसेपियंस हैं. इससे पहले के इंसानों को निएंडरथल मानव कहते थे. अब वैज्ञानिक निएंडरथल मानव के दांत में छिपे बैक्टीरिया की मदद से एंटीबायोटिक बनाने जा रहे हैं. इस बात का खुलासा हाल ही में साइंस जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट में किया गया है. ये बैक्टीरिया दांत में बने गड्ढों में छिपे हैं. 

हर इंसान के मुंह में हजारों प्रजातियों के बैक्टीरिया होते हैं. इनकी पूरी दुनिया होती है. ये सूक्ष्म जीव हमारे ओरल माइक्रोबायोम (Oral Microbiome) का बड़ा हिस्सा होते हैं. वो भी अलग-अलग प्रकार के. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की बायोमॉलीक्यूलर आर्कियोलॉजिस्ट क्रिस्टीना वैरिनर ने कहा कि हम निएंडरथल मानव के दांत में मौजूद बैक्टीरिया की दुनिया से संबंधित स्टडी करने जा रहे हैं. 

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क्रिस्टीना ने प्राचीन दांतों में छिपे बैक्टीरिया की स्टडी के लिए नया तरीका निकाला है. क्रिस्टीना जिस निएंडरथल मानव के दांत की स्टडी करने जा रही हैं, वो जीवित अवस्था में ही जीवाश्म बन गया था. जिसकी वजह से उसके शरीर में मौजूद बैक्टीरिया नष्ट नहीं हो पाए. शरीर में दांत ऐसी चीज है जो लंबे समय तक ठीक स्थिति में रहती है. यहीं पर डीएनए की सबसे ज्यादा मात्रा पाई जाती है. 

दांत के बेहद छोटे हिस्से से भी क्रिस्टीना करोड़ों डीएनए निकाल सकती हैं. ये डीएनए अलग-अलग प्रजातियों के सूक्ष्म जीवों के हो सकते हैं. यानी अलग-अलग बैक्टीरिया के. क्रिस्टीना और उनके साथियों ने 12 निएंडरथल मानवों के दातों की जांच की. उनके बैक्टीरिया और सूक्ष्म जीवों का अध्ययन किया. 

निएंडरथल मानव वर्तमान इंसानों के सबसे नजदीकी प्राचीन रिश्तेदार रहे हैं. ये करीब 1 लाख साल पहले धरती पर रहते थे. आमतौर पर इनकी मौजूदगी सबसे ज्यादा यूरोप और अफ्रीका में थी. इसके बाद क्रिस्टीना ने 1000 करोड़ डीएनए फ्रैगमेंट्स की सिक्वेंसिंग की. जिसमें से 459 बैक्टीरियल जीनोम थे. यानी पूरे जीनोम सिक्वेंसिंग का 75 फीसदी हिस्सा मुंह से रिलेटेड बैक्टीरिया का था. 

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इसके बाद बैक्टीरिया के दो प्रजातियों पर स्टडी की गई. ये क्लोरोबियम जीनस से थे. ये करीब 1.26 लाख से 1.10 लाख साल पहले के इंसानों के दांत में पाए गए. इन दोनों बैक्टीरिया की प्रजातियों का वर्तमान बैक्टीरिया से किसी तरह का संबंध नहीं है. यानी आधुनिक दुनिया में मिलने वाले बैक्टीरिया से प्राचीन बैक्टीरिया एकदम अलग हैं. लेकिन क्लोरोबियम लिमिकोला के नजदीकी लगते हैं. लिमिकोला आज की तारीख में गुफाओं में बहने वाले पानी के आसपास मिलता है. 

क्रिस्टीना कहती हैं कि गुफाओं में इंसान रहते थे. तब से प्राचीन बैक्टीरिया और सूक्ष्मजीवों ने वहां घर बना लिया. साथ ही पीने लायक जलस्रोतों में मिल गए. इसके जरिए वो पूरी दुनिया में धीरे-धीरे फैल गए. 11,700 साल पहले से एक लाख साल पहले तक इंसान गुफाओं में रहता था. जानवरों को पालता था. हर जगह अलग-अलग प्रजाति के बैक्टीरिया मिलते आए हैं. आज के दौर में इंसानों के मुंह में मिलने वाले बैक्टीरिया की दुनिया एकदम अलग है. 

प्राचीन दुनिया के बैक्टीरिया से बेहद अलग हैं आज मुंह में मिलने वाले बैक्टीरिया. क्रिस्टीना कहती हैं कि इसलिए प्राचीन बैक्टीरिया की मदद से बनने वाले एंटीबायोटिक से हम इंसानों को कई तरह की बीमारियों से बचा सकते हैं. 

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