
अंटार्कटिका (Antarctica) में एक ग्लेशियर से खून का झरना बह रहा है. इस ग्लेशियर का नाम टेलर ग्लेशियर (Taylor Glacier) है. यह पूर्वी अंटार्कटिका के विक्टोरिया लैंड (Victoria Land) पर है. यहां जाने वाले बहादुर खोजकर्ताओं और वैज्ञानिकों को यह नजारा हैरान कर रहा है. खून का यह झरना कई दशकों से बह रहा है. अब जाकर इसके निकलने की वजह पता चली है.
टेलर ग्लेशियर के नीचे एक अत्यधिक प्राचीन जगह है. ऐसा माना जाता है कि वहां पर जीवन मौजूद है. धरती पर एलियन की मौजूदगी की तरह. यानी ग्लेशियर के नीचे जीवन पनप रहा है. जिन वैज्ञानिकों ने इस खून के झरने को नजदीक जाकर देखा है. सैंपल लिया है वो बताते हैं कि यह स्वाद में नमकीन है. जैसे खून होता है. लेकिन यह इलाका किसी नरक से कम नहीं है. यहां जाना मतलब जान जोखिम में डालना.
खून के इस झरने (Blood Falls) की खोज सबसे पहले ब्रिटिश खोजकर्ता थॉमस ग्रिफिथ टेलर (Thomas Griffith Taylor) ने 1911 में की थी. अंटार्कटिका के इस इलाके में यूरोपियन वैज्ञानिक सबसे पहले पहुंचे थे. शुरुआत में थॉमस और उनके साथियों को लगा था कि ये लाल रंग की एल्गी (Red Algae) है. लेकिन ऐसा था नहीं. बाद में यह मान्यता रद्द की गई. 1960 में पता चला कि यहां ग्लेशियर के नीचे लौह नमक (Iron Salts) है. यानी फेरिक हाइड्रोक्साइड (Ferric Hydroxide). यह बर्फ की मोटी परत से वैसे निकल रहा है जैसे आप टूथपेस्ट से पेस्ट निकालते हैं.
साल 2009 में यह स्टडी आई है कि यहां पर ग्लेशियर के नीचे सूक्ष्मजीव हैं, जिनकी वजह से ये खून का झरना निकल रहा है. ये सूक्ष्मजीव इस ग्लेशियर के नीचे 15 से 40 लाख साल से रह रहे हैं. यह एक बहुत बड़े इकोसिस्टम का छोटा सा हिस्सा है. इंसान इसका छोटा सा हिस्सा ही खोज पाए हैं. यह इतना बड़ा है कि इसके एक छोर से दूसरे छोर तक की खोज करने में कई दशक लग जाएंगे. क्योंकि इस इलाके में आना-जाना और रहना बेहद मुश्किल है.
जब खून के झरने के पानी की जांच प्रयोगशाला में की गई तो पता चला कि इसमें दुर्लभ सबग्लेशियल इकोसिस्टम के बैक्टीरिया हैं. जिनके बारे में किसी को पता नहीं है. ये ऐसी जगह जिंदा हैं, जहां पर ऑक्सीजन है ही नहीं. यानी बैक्टीरिया बिना फोटोसिंथेसिस के ही इस जगह पर अपना जीवन जी रहे हैं. नए बैक्टीरिया पैदा कर रहे हैं. इस जगह का तापमान दिन में माइनस सात डिग्री सेल्सियस रहता है. यानी खून का झरना अत्यधिक ठंडा है. ज्यादा नमक होने की वजह से ये बहता रहता है, नहीं तो तुरंत जम जाता.
वैज्ञानिक अभी तक यह नहीं समझ पाए हैं कि खून के झरने को अंदर से कौन प्रेशर दे रहा है, जिसकी वजह से यह ग्लेशियर से बाहर निकल रहा है. इसके पीछे भूगर्भीय दबाव (Geological Force) है या कुछ और इसका पता नहीं चल पा रहा है. खून के झरने का स्रोत ग्लेशियर के नीचे लाखों सालों से दबा हुआ है. अगर यहां की स्टडी करने का मौका और मिले तो यह पता चल सकता है कि पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत कैसे हुई. इसका संबंध मंगल ग्रह और बृहस्पति के चंद्रमा यूरोपा से भी हो सकता है.