
Russia का चांद पर भेजा गया स्पेसक्राफ्ट Luna-25 चंद्रमा की सतह पर क्रैश हो चुका है. रूसी स्पेस एजेंसी रॉसकॉसमॉस (Roscosmos) ने यह बात मान ली है. रूसी स्पेस एजेंसी ने कहा कि उनसे गलत पैरामीटर्स सेट हुए. अपने डेटा एनालिसिस में गलती हुई. जिसकी वजह से यान गलत ऑर्बिट में गया और क्रैश हो गया.
रूस अब एकदम से चांद पर जाने का मिशन नहीं बना सकता. उसका सपना चकनाचूर हो चुका है. रूसी स्पेस एजेंसी ने कहा कि कल लूना-25 से संपर्क साधने में दिक्कत आई थी. इसके बाद उससे संपर्क साधने के कई प्रयास किए गए लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.
रॉसकॉसमॉस ने कहा कि शुरुआती जांच के अनुसार Luna-25 असली पैरामीटर्स से अलग चल गया था. तय ऑर्बिट के बजाय दूसरी ऑर्बिट में चला गया जहां पर उसे जाना नहीं चाहिए था. इसकी वजह से वह सीधे चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास जाकर क्रैश हो गया.
रूस ने करीब 47 साल बाद चांद पर कोई मिशन भेजा था. लेकिन उसका पांच दशक पुराना सपना अब नहीं रहा. Luna-25 को लेकर दावा किया जा रहा था कि वह Chandrayaan-3 से पहले चांद पर लैंड करेगा. लेकिन यह क्रैश लैंडिंग होगी, इसका अंदाजा रूसी स्पेस एजेंसी को भी नहीं थी.
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Luna-25 को 11 अगस्त की सुबह 4:40 बजे अमूर ओब्लास्ट के वोस्तोनी कॉस्मोड्रोम से लॉन्च किया गया. लॉन्चिंग सोयुज 2.1बी रॉकेट से किया गया. इसे लूना-ग्लोब (Luna-Glob) मिशन भी कहते हैं. 1976 के लूना-24 मिशन के बाद से आज तक रूस का कोई भी यान चांद के ऑर्बिट तक नहीं पहुंचा है. ये पहुंचा लेकिन बुरी हालत में.
चांद के ऑर्बिट में ऐसे पहुंचा था Luna-25
रूस ने सोयुज रॉकेट से लॉन्चिंग की थी. यह करीब 46.3 मीटर लंबा था. इसका व्यास 10.3 मीटर था. वजन 313 टन था. इसने Luna-25 लैंडर को धरती के बाहर एक गोलाकार ऑर्बिट में छोड़ा. जिसके बाद यह स्पेसक्राफ्ट चांद के हाइवे पर निकल गया. उस हाइवे पर उसने 5 दिन यात्रा की. इसके बाद चांद के चारों के ऑर्बिट में पहुंचा. लेकिन तय लैंडिंग से एक दिन पहले ही क्रैश कर गया.
लैंडिंग को लेकर की गई थी ये प्लानिंग
रूस का प्लान था कि 21 या 22 अगस्त को लूना-25 चांद की सतह पर उतरेगा. इसका लैंडर चांद की सतह पर 18 km ऊपर पहुंचने के बाद लैंडिंग शुरू करेगा. 15 km ऊंचाई कम करने के बाद 3 km की ऊंचाई से पैसिव डिसेंट होगा. यानी धीरे-धीरे लैंडर चांद की सतह पर उतरेगा. 700 मीटर ऊंचाई से थ्रस्टर्स तेजी से ऑन होंगे ताकि इसकी गति को धीमा कर सकें. 20 मीटर की ऊंचाई पर इंजन धीमी गति से चलेंगे. ताकि यह लैंड हो पाए.
चांद की सतह पर क्या करने वाला था Luna-25
Luna-25 चंद्रमा की सतह पर साल भर काम करने के मकसद से गया था. वजन 1.8 टन था. इसमें 31 किलोग्राम के वैज्ञानिक यंत्र लगे थे. एक यंत्र ऐसा लगा था जो सतह की 6 इंच खुदाई करके, पत्थर और मिट्टी का सैंपल जमा करता. ताकि जमे हुए पानी की खोज हो सके. Luna-25 चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास मौजूद बोगुस्लावस्की क्रेटर (Boguslavsky Crater) के पास उतरेगा. इसके पास लैंडिंग के लिए 30 x 15km की रेंज मौजूद है.
Luna-25 में लगे थे 9 साइंटिफिक पेलोड्स
ADRON-LR: चांद की सतह पर न्यूट्रॉन्स और गामा-रे का विश्लेषण करता.
THERMO-L: सतह पर गर्मी की जांच करता.
ARIES-L: वायुमंडल यानी एग्जोस्फेयर पर प्लाज्मा की जांच करता.
LASMA-LR: यह एक लेजर स्पेक्ट्रोमीटर है.
LIS-TV-RPM: खनिजों की जांच और तस्वीरों के लिए इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोमीटर था.
PmL: यह धूल और माइक्रो-मेटियोराइट्स की जांच करता.
STS-L: पैनारोमिक और लोकल इमेज लेता.
Laser Reflectometer: चांद की सतह पर रेंजिंग एक्सपेरीमेंट्स करता.
BUNI: लैंडर को पावर देगा और साइंस डेटा को जमा करेगा. धरती पर भेजता.
यूक्रेन पर हमले के बाद रूस का पहला बड़ा मिशन
यूक्रेन पर हमला करने के बाद पहली बार रूस किसी दूसरे ग्रह या उपग्रह के लिए अपना मिशन भेजने को तैयार हुआ है. हालांकि, रूसी स्पेस एजेंसी ने कहा कि हम किसी देश या स्पेस एजेंसी के साथ प्रतियोगिता नहीं कर रहे हैं. हमारे लैंडिंग इलाके भी अलग हैं. भारत या किसी और देश के मून मिशन से हमारी न तो टक्कर होगी. न हम किसी के रास्ते में आएंगे.
रूस ने ISRO से मांगी थी मदद लेकिन बात नहीं बनी
Luna-25 मिशन की शुरुआत 1990 में हुई थी. लेकिन यह अब जाकर पूरा होने वाला है. रूस ने इस मिशन के लिए जापानी स्पेस एजेंसी JAXA को साथ लाने की कोशिश की थी लेकिन जापान ने मना कर दिया था. फिर उसने इसरो से मदद करने की अपील की थी. लेकिन बात बनी नहीं. इसके बाद रूस ने खुद ही रोबोटिक लैंडर बनाने की योजना बनाई.
दो साल की देरी से हो रही है रूस की बड़ी लॉन्चिंग
रूसी स्पेस एजेंसी लूना-25 को पहले अक्टूबर 2021 में लॉन्च करना चाहती थी. लेकिन इसमें करीब दो साल की देरी हुई है. लूना-25 के साथ यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) पायलट-डी नेविगेशन कैमरा की टेस्टिंग करना चाहता था. लेकिन यूक्रेन पर हमला करने की वजह से दोनों स्पेस एजेंसियों ने नाता तोड़ लिया.