
टाइम ट्रैवल पर बहुत से साइंस फिक्शन बन चुके हैं. इसमें कुछ लोग एक मशीन में बैठते हैं और झटके से उठते हैं तो खुद को समय से बहुत आगे या बहुत पीछे पाते हैं. ऐसी किताबें भी लिखी जा चुकीं, जिसमें लोग टाइम ट्रैवल करके सबकुछ देख पाते हैं. लेकिन दुनियाभर में बडे़ प्रयोग कर रहे वैज्ञानिक अब तक समय के पार जाने का कोई तरीका नहीं खोज सके. ऐसा क्यों है, ये जानने से पहले एक बार समझते हैं कि क्या है टाइम ट्रैवल का विज्ञान.
आइंस्टीन ने दिया था पहला क्लू
साल 1915 में अल्बर्ट आइंस्टीन ने 'थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी' की बात कही थी. इसमें वक्त और रफ्तार के बीच संबंध को बताया गया. थ्योरी के अनुसार, समय पूरी तरह से गति पर निर्भर है, और स्पीड बढ़ने-घटने पर बदलता रहता है. इसे इस तरह से समझें- जैसे आप तेज भागें तो कम समय में ज्यादा दूरी तय कर लेंगे. लेकिन स्पीड कम हो तो समय ज्यादा खर्च होगा, जबकि दूरी उतनी ही रहेगी. तो अगर कोई इंसान अपनी स्पीड बहुत ज्यादा बढ़ा ले तो वो समय को क्रॉस करके आगे जा सकता है और फिर पीछे भी लौट सकता है. यही टाइम ट्रैवल है.
ग्रेविटी के करीब जाने पर समय स्लो होता जाता है
इसका ग्रेविटी यानी गुरुत्वाकर्षण से भी संबंध है. हम जितनी मजबूत ग्रेविटी के पास होंगे, समय उतने ही धीरे चलेगा. ब्लैक होल के पास बहुत ज्यादा ग्रेविटी होती है. जैसे-जैसे हम इसके करीब जाते हैं, समय धीरे चलने लगता है. फिर ऐसा होता है कि एक हद के बाद प्रकाश और समय का मतलब खत्म हो जाता है. यहां समय रुक चुका होता है. ऐसे में जितने देर आप ब्लैक होल के किनारे या उसके सेंटर पर बिताएंगे, उतनी देर में पृथ्वी पर शायद हजारों साल बीत जाएं.
क्या है ब्लैक होल?
यहां ये समझते चलें कि ब्लैक होल कोई अलग चीज नहीं, बल्कि किसी तारे की मौत है. जब कोई विशालकाय तारा खत्म होने वाला होता है तो अपने ही भीतर सिकुड़ने लगता है. आखिर में ये ब्लैक होल बन जाता है. इसकी ग्रेविटी इतनी ज्यादा होती है कि आसपास की हर चीज गड़प कर सकता है. मजे की बात ये है कि जितनी चीजें भीतर जाएंगी, ब्लैक होल उतना ही ज्यादा ताकतवर होता चला जाएगा.
इतना विशाल होने के बाद भी इन्हें नंगी आंखों या सामान्य टेलीस्कोप से देखा नहीं जा सकता. असल में अपने गुरुत्वाकर्षण के चलते ये रोशनी भी निगल लेते हैं, तो इन्हें रेडियो टेलीस्कोप या ग्रेविटेशनल वेव डिक्टेटर से ही देखा जा सकता है.
नहीं खत्म हो सकी मिस्ट्री
यहां जाने के बाद क्या होगा, ये अब तक कोई नहीं जान सका. हो सकता है कि इससे आप किसी नए ग्रह में पहुंच जाएं . ये भी हो सकता है कि कोई होल के भीतर रहे और हमेशा के लिए वैसा ही रह जाए. सुपरमासिव ब्लैक होल यानी जो लाखों सूरज के बराबर बड़े ब्लैक होल्स हैं, उनके बारे में वैज्ञानिक कुछ भी नहीं जानते. हो सकता है कि अंदर जाने के बाद आप सबकुछ देखते हुए उसी उम्र में रह जाएं, लेकिन बाहर का कोई इंसान आपको नहीं देख सकेगा क्योंकि रोशनी नहीं होगी.
लगभग सारे कॉस्मोलॉजिस्ट इसपर सहमत
ये सारी बातें रहस्य हैं, लेकिन आइंस्टीन से लेकर मॉर्डन वैज्ञानिक तक इस बात पर पक्का हैं कि वहां जाने पर समय लगभग खत्म हो जाता है. फिलाडेल्फिया की डेक्सेल यूनिवर्सिटी के कॉस्मोलॉजिस्ट डेव गोल्डबर्ग के मुताबिक, फिलहाल ब्लैक होल ही टाइम ट्रैवल का अनुभव करा सकते हैं, लेकिन ये तभी होगा, जब कोई उसके भीतर जा सके और फिर वापस भी लौट सके.
क्यों लगभग नामुमकिन है टाइम मशीन का बन सकना!
थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी के बाद से वैज्ञानिक लगातार पास्ट और फ्यूचर की यात्रा की बात करते रहे. कई लोगों ने टाइम मशीन बनाने की बात भी की, लेकिन इसमें कई प्रैक्टिकल दिक्कतें हैं. जैसे एक सबसे फेमस थ्योरी को 'ग्रांडफादर पैराडॉक्स' कहते हैं. इसके अनुसार, मान लीजिए कोई भूतकाल में जाकर अपने युवा दादा की हत्या कर दे, तो उसका जन्म ही नहीं हो सकेगा. ऐसे में वो वापस नहीं लौट सकता क्योंकि टेक्निकली उसका जन्म ही नहीं हुआ है. तो इस तरह से टाइम मशीन का कंसेप्ट बार-बार खारिज होता रहा.