
ISRO की तरफ से नई खबर आई है. Chandrayaan-3 का प्रोपल्शन मॉड्यूल यानी PM परमाणु तकनीक यानी न्यूक्लियर तकनीक (Nuclear Technology) के जरिए ऊर्जा हासिल कर रहा है. एक अंग्रेजी अखबार को दिए गए बयान में एटॉमिक एनर्जी कमीशन के चेयरमैन अजित कुमार मोहंती ने इस बात की पुष्टि की.
अजित कुमार ने कहा कि भारत का न्यूक्लियर सेक्टर इसरो के इस महत्वपूर्ण अंतरिक्ष मिशन में शामिल था. जब इस बारे में इसरो वैज्ञानिकों से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि प्रोपल्शन मॉड्यूल में दो रेडियोआइसोटोप हीटिंग यूनिट्स (Radioisotopes Heating Units - RHU) हैं. यह एक वॉट की ऊर्जा पैदा कर रहा है. इससे यान को चलते रहने के लिए जरूरी तापमान मिल रहा है.
चंद्रयान-3 के प्रोजेक्ट डायरेक्टर पी. वीरामुथुवेल ने कहा कि इसरो भविष्य में परमाणु तकनीकों का इस्तेमाल अपने अंतरिक्ष में मिशन में करे. ताकि उसके रोवर और लैंडर ज्यादा समय तक काम कर सकें. RHU को विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर में इसलिए नहीं लगाया जा सका, क्योंकि इससे उनका वजन बढ़ जाता. इसलिए इस तकनीक को सिर्फ प्रोपल्शन मॉड्यूल में लगाया गया था. इसमें ISRO और भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (BARC) शामिल थे.
17 अगस्त को विक्रम लैंडर से अलग हुआ था प्रोपल्शन मॉड्यूल
17 अगस्त 2023 को जो प्रोपल्शन मॉड्यूल विक्रम लैंडर से अलग हुआ था. पहले उसकी लाइफ 3 से 6 महीने बताई जा रही थी. लेकिन अभी वो कई सालों तक काम कर सकता है. ये दावा किया था ISRO ने. अब यह समझ में आ रहा है कि आखिरकार परमाणु तकनीक की मदद से प्रोपल्शन मॉड्यूल कई सालों तक चांद के चारों तरफ चक्कर लगा सकता है.
जब चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग हुई थी. तब प्रोपल्शन मॉड्यूल में 1696.4 kg फ्यूल था. इसके बाद प्रोपल्शन मॉड्यूल के सहारे ही पृथ्वी के चारों तरफ पांच बार ऑर्बिट बदली गई. ऑर्बिट करेक्शन को मिलाकर छह बार इंजन ऑन किया गया. फिर चंद्रयान-3 चांद के हाइवे पर गया. यानी ट्रांस-लूनर ट्रैजेक्टरी में पहुंचा.
कहां, कब और कितना फ्यूल खर्च किया चंद्रयान-3 के PM ने
फिर चंद्रमा के चारों तरफ छह बार प्रोपल्शन मॉड्यूल ऑन हुआ. कुल मिलाकर 1546 kg फ्यूल खत्म हुआ. पृथ्वी के चारों तरफ छह बार प्रोपल्शन मॉड्यूल के थ्रस्टर्स को ऑन किया गया. तब 793 kg फ्यूल लगा. चांद के चारों तरफ छह बार ऑर्बिट घटाने के लिए थ्रस्टर्स ऑन किए गए. तब 753 kg फ्यूल लगा. कुल मिलाकर 1546 kg फ्यूल की खपत हुई.
अब बचा हुआ है 150 kg फ्यूल. यानी यह 3 से 6 महीने तक ही काम नहीं करेगा. बल्कि यह कई सालों तक काम कर सकता है. इसकी पुष्टि ISRO चीफ डॉ. एस. सोमनाथ ने भी की थी. उन्होंने कहा था कि हमारे पास उम्मीद से ज्यादा फ्यूल बचा है. यानी अगर सबकुछ सही रहा और ज्यादा कोई दिक्कत नहीं आई तो प्रोपल्शन मॉड्यूल कई सालों तक काम कर सकता है. यह सब चांद के चारों तरफ ऑर्बिट करेक्शन पर निर्भर करता है.
आप ही सोचिए... जब चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2) का ऑर्बिटर अभी तक काम कर रहा है. तो चंद्रयान-3 के प्रोपल्शन मॉड्यूल में तो बहुत ज्यादा फ्यूल बचा है. ये कितने सालों तक काम करेगा. इसरो वैज्ञानिक ये मानकर चल रहे हैं कि सबकुछ सही रहता है तो प्रोपल्शन मॉड्यूल चार-पांच साल से ज्यादा भी काम कर सकता है.