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Chandrayaan-3 Sleeping: प्रज्ञान रोवर नहीं छोड़ पाया चांद की सतह पर देश और इसरो का निशान

Chandrayaan-3 का रोवर Pragyan चांद की सतह पर राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह और ISRO के लोगो की छाप चांद की सतह पर स्पष्ट तौर पर नहीं छोड़ पाया. यानी शिव शक्ति प्वाइंट के आसपास की जमीन पर मिट्टी कम पत्थर ज्यादा है. यह एक अच्छी खबर इसलिए हैं क्योंकि इससे वैज्ञानिकों को उस सतह की असलियत पता चलेगी.

ये प्रज्ञान रोवर के पहिए से चांद की सतह पर छूटने वाले निशान का सिमुलेशन. पर असल में ये स्पष्ट नहीं छूटे. (सभी फोटोः ISRO) ये प्रज्ञान रोवर के पहिए से चांद की सतह पर छूटने वाले निशान का सिमुलेशन. पर असल में ये स्पष्ट नहीं छूटे. (सभी फोटोः ISRO)
ऋचीक मिश्रा
  • नई दिल्ली,
  • 24 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 2:30 PM IST

Pragyan Rover चांद की सतह पर अपने पिछले पहियों पर बने राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह और इसरो के लोगो का निशान छोड़ने वाला था. लेकिन ये निशान उतने स्पष्ट नहीं बने जितने की उम्मीद थी. यानी शिव शक्ति प्वाइंट (Shiv Shakti Point) के आसपास की सतह पथरीली है. वहां पर चांद की सतह यानी रिगोलिथ सॉलिड है. 

दक्षिणी ध्रुव के आसपास का इलाका और खास तौर से शिव शक्ति प्वाइंट का इलाका भविष्य में इंसानी बस्ती के लिए चुना जा सकता है. ऐसे में इस सतह की जानकारी होना बेहद जरूरी है. जैसे वहां ड्रिलिंग कर सकते हैं या नहीं. पानी है या नहीं. सतह मजबूत है या नहीं. सतह के नीचे का पर्यावरण कैसा है. इन सब जानकारियों का फायदा फ्यूचर में होगा. 

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इस बात को इसरो वैज्ञानिक भी मानते हैं कि जब प्रज्ञान रोवर के पहियों से राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह और इसरो के लोगो का निशान जब चांद की सतह पर स्पष्ट नहीं बना, तो उन्हें वहां के बारे में नई जानकारियां मिलीं. नई समझ पैदा हुई. चांद की सतह पर मिट्टी नहीं है. वह अलग चीज है. इससे ये पता किया जा सकता है कि वो किस चीज से बनी है. 

ढेलेदार है चांद की सतह, इसलिए नहीं बना निशान

चांद की मिट्टी असल में बहुत ज्यादा धूल भरी नहीं है. बल्कि वह ढेलेदार है. इसका मतलब ये है कि वहां कुछ ऐसे तत्व हैं, जो मिट्टी को बांधते हैं. उनका ढेला बना देते हैं. प्रज्ञान रोवर अब शिव शक्ति प्वाइंट के आसपास 105 मीटर चल चुका है. यह रोवर पिछले करीब 18 दिनों से ज्यादा समय से सो रहा है. इसे जगाने का प्रयास हो रहा है. 

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रोवर में कौन-कौन से यंत्र हैं, जो कर रहे थे जांच

प्रज्ञान रोवर में दो पेलोड्स लगे हैं. पहला है लेजर इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप (Laser Induced Breakdown Spectroscope - LIBS). यह एलिमेंट कंपोजिशन की स्टडी करेगा. जैसे- मैग्नीशियम, अल्यूमिनियम, सिलिकन, पोटैशियम, कैल्सियम, टिन और लोहा. इनकी खोज लैंडिंग साइट के आसपास चांद की सतह पर की जाएगी. 

दूसरा पेलोड है अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (Alpha Particle X-Ray Spectrometer - APXS). यह चांद की सतह पर मौजूद केमकल्स यानी रसायनों की मात्रा और गुणवत्ता की स्टडी करेगा. साथ ही खनिजों की खोज करेगा. आज यानी 25 अगस्त 2023 की सुबह ही लैंडर से बाहर आते हुए रोवर का वीडियो भी इसरो ने जारी किया था. 

प्रज्ञान रोवर का एक्सरे देखिए... अंदर क्या-क्या है?  

यहां दिखाई गई तस्वीर में अगर आप क्लॉकवाइज यानी घड़ी के घूमने की दिशा में चलें तो सबसे पहले दिख रहा है सोलर पैनल. यानी ये सूरज की गर्मी से ऊर्जा लेकर रोवर को देगा. उसके ठीक नीचे दिख रहा सोलर पैनल हिंज. यानी जो सोलर पैनल को रोवर से जोड़कर रखता है. इसके बाद है नेव कैमरा यानी नेविगेशन कैमरा. ये दो हैं. ये रास्ता देखने और चलने के लिए दिशा तय करने में मदद करते हैं. 

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इसका चेसिस दिख रहा है. सोलर पैनल के नीचे आने पर उसे संभालने वाला सोलर पैनल होल्ड डाउन है. नीचे छह व्हील ड्राइव असेंबली है. यानी पहिए लगे हैं. इसके अलावा रॉकर बोगी है. जो पहियों को ऊबड़-खाबड़ जमीन पर चलने के लिए मदद करते हैं. इसके अलावा रोवर के निचले हिस्से में रोवर होल्ड डाउन लगा है. अगर रोवर चल नहीं रहा होता तो वह जमीन से जुड़कर एक जगह टिका रहेगा. ताकि भविष्य में उसे उठाया जा सके. 

इसके अलावा इसके बगल में लगा है वार्म इलेक्ट्रॉनिक्स बॉक्स यानी ऐसे इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम जो गर्म माहौल में बेहतर तरीके से काम कर सकें. रोवर को दिए गए इंस्ट्रक्शन के हिसाब से चलाते रहें. फिर है डिफ्रेंशियल्स यानी हर यंत्र और हिस्से को अलग रखने के लिए बनाई गई दीवार. ऊपर है एंटीना, जो लैंडर के साथ संपर्क साधने में मदद करते हैं. 

कितना बड़ा, लंबा और चौड़ा है रोवर? 

Chandrayaan-3 का रोवर का कुल वजन 26 किलोग्राम है. यह तीन फीट लंबा, 2.5 फीट चौड़ा और 2.8 फीट ऊंचा है. यह छह पहियों पर चलता है. कम से कम 500 मीटर यानी 1600 फीट तक चांद की सतह पर जा सकता है. इसकी स्पीड 1 सेंटीमीटर प्रति सेकेंड हैं. यह अगले 13 दिनों तक चांद की सतह पर तब तक काम करता रहेगा, जब तक इसे सूरज की रोशनी से ऊर्जा मिलती रहेगी. 

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