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Chandrayaan-3: चंद्रयान-3 को अंतरिक्ष में छोड़ने के बाद कहां गिरे रॉकेट के हिस्से?

Chandrayaan-3 का रॉकेट LVM-3 कहां गया? चंद्रयान तो अंतरिक्ष में यात्रा कर रहा है. रॉकेट क्या उसके साथ है या फिर कहीं गिर गया. आखिरकार रॉकेट के हिस्से कहां गिरे? क्या वो एकसाथ हैं या फिर अलग-अलग होकर अलग-अलग जगहों पर गिर गए. आइए जानते हैं ये रोचक कहानी...

चंद्रयान-3 को लॉन्च हुए चार दिन हो चुके हैं. कहां हैं इसके रॉकेट के हिस्से, कहां गिरे होंगे वो. (सभी फोटोः ISRO) चंद्रयान-3 को लॉन्च हुए चार दिन हो चुके हैं. कहां हैं इसके रॉकेट के हिस्से, कहां गिरे होंगे वो. (सभी फोटोः ISRO)
ऋचीक मिश्रा
  • नई दिल्ली,
  • 18 जुलाई 2023,
  • अपडेटेड 11:49 PM IST

Chandrayaan-3 की लॉन्चिंग 14 जुलाई 2023 की दोपहर 2:35 बजे हुई. 16.15 मिनट बाद लॉन्च व्हीकल मॉड्यूल-3 यानी LVM-3 रॉकेट चंद्रयान-3 से अलग हो गया. चंद्रयान तो चंद्रमा की तरफ अपनी यात्रा में आगे बढ़ गया. लेकिन रॉकेट कहां गया? 

इस सवाल का जवाब जानने के पहले जानते हैं क्या था इसरो की लॉन्चिंग के बाद अगले 16.15 मिनट की प्लानिंग... लॉन्च के ठीक बाद रॉकेट आधा किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से उड़ा. करीब पौने दो मिनट बाद वह 44 किलोमीटर ऊपर था. गति थी 1.78 किलोमीटर प्रति सेकेंड थी. यानी करीब पौने दो किलोमीटर की दूरी वह हर सेकेंड पूरी कर रहा था. 

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इ्सरो के इस ग्राफिक्स में बताया गया है कि किस समय रॉकेट का कौन सा हिस्सा अलग हुआ. कितनी ऊंचाई पर. 

अगले 14 मिनट तक गति बढ़ती रही. अंतिम समय जब रॉकेट ने चंद्रयान-3 को उसकी 179.192 किलोमीटर ऊंची ऑर्बिट में छोड़ा. तब रॉकेट की गति 10.27 किलोमीटर प्रति सेकेंड थी. LVM-3 रॉकेट ने अपना काम पूरा कर दिया था. वह चंद्रयान-3 को उसकी तय कक्षा में पहुंचा चुका था. चंद्रयान-3 तो आगे की यात्रा के लिए निकल गया. पर रॉकेट कहां गया? 

चंद्रयान-3 का पहला हिस्सा 62 KM से नीचे गिरा

चंद्रयान-3 को ले जाने वाले रॉकेट का पहला हिस्सा जो धरती पर गिरा, वो है उस रॉकेट के निचले हिस्से में किनारों की तरफ लगे स्ट्रैप-ऑन. इसे इसरो ने नाम दिया था S200. ये रॉकेट से करीब दो मिनट सात सेकेंड के बाद 62.17 किलोमीटर पर अलग हुए. उस समय तक रॉकेट मुड़ना शुरू करता है. स्ट्रैपऑन की लंबाई 26.22 मीटर होती है. 

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62 किलोमीटर ऊपर रॉकेट का पहला हिस्सा अलग हुआ था. 

आप रॉकेट के लॉन्च वीडियो में इनको अलग होते देख सकते हैं. ये हिस्सा कारमान लाइन के नीचे रॉकेट से अलग हुआ है. यानी 100 किलोमीटर ऊंचाई से नीचे. इसके मायने ये होते हैं कि स्ट्रैप ऑन्स बंगाल की खाड़ी में ही कहीं गिरे होंगे. जिन्हें जल्द ही नौसेना या भारतीय तटरक्षक बल खोज लेगी. 

दूसरे हिस्से का सेपरेशन हुआ 114 KM ऊपर

ये रॉकेट का सबसे ऊपरी हिस्सा होता है. जिसके अंदर चंद्रयान-3 रखा था. इसे कहते हैं पेलोड फेयरिंग (PLF Separation). यानी अब चंद्रयान-3 रॉकेट के कोर स्टेज L110 के साथ अंतरिक्ष की यात्रा कर रहा है. लेकिन उसके ऊपर हीटशील्ड की कवरेज नहीं है. यह 114 किलोमीटर ऊपर अलग हुआ. यानी कारमान लाइन से ऊपर अंतरिक्ष में. 

सैटेलाइट के ऊपर की हीटशील्ड अलग होती हुई दिख रही है. यह ऑनबोर्ड कैमरे की रिकॉर्डिंग है. 

वहां पर ग्रैविटी का असर कम होता है. असल में जीरो ग्रैविटी होती है. चीजें अंतरिक्ष में तैरती रहती है. वो बाद में धीरे-धीरे धरती की ग्रैविटी में फंसकर वायुमंडल पार करके धरती पर किसी जगह गिरती हैं. वैसे वायुमंडल पार करते ही आधे से ज्यादा ये जलकर खाक हो चुकी होती हैं. 

तीसरा हिस्सा कोर इंजन 175 KM ऊपर अलग हुआ

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ये रॉकेट का लिक्विड स्टेज इंजन है. जिसे L110 कहते हैं. यह रॉकेट का मुख्य इंजन है. इसने चंद्रयान-3 को 175 किलोमीटर की ऊंचाई पर पहुंचा कर छोड़ दिया. इस समय रॉकेट को लॉन्च हुए करीब 5 मिनट हो चुके थे. वह अब अंतरिक्ष में तैर रहा है. कुछ समय बाद वह धरती की ग्रैविटी में आकर जमीन पर गिरेगा.  

क्रायोजेनिक इंजन यानी C25 से अलग होता चंद्रयान-3. 

चौथा हिस्सा यानी क्रायोजेनिक इंजन... इसकी कहानी अलग है

क्रायोजेनिक इंजन यानी C25 पहले चंद्रयान-3 को 176.57 किलोमीटर की ऊंचाई पर ले जाता है. फिर उसे वापस 174.69 किलोमीटर की ऊंचाई पर नीचे लाता है. अब तक 15 मिनट बीत चुके हैं. यहीं पर क्रायोजेनिक इंजन बंद होता है. लेकिन जिस गति से वह जा रहा था. उससे वह पांच किलोमीटर और ऊपर चला जाता है. फिर वहां से सैटेलाइट यानी चंद्रयान-3 अलग हो जाता है. यानी 16.15 मिनट पूरे हो चुके हैं. 

यहां चंद्रयान-3 आगे की यात्रा के लिए निकल जाता है. इसरो वैज्ञानिक उसकी कक्षा को सेट करने के लिए यान का इंजन यानी थ्रस्टर्स चालू करते हैं. लेकिन क्रायोजेनिक इंजन पीछे अंतरिक्ष के वैक्यूम में तैरता रहता है. उसी गति में जिस गति में उसने चंद्रयान-3 को छोड़ा था.

अब यह हिस्सा अंतरिक्ष में है. इसे आने में थोड़ा समय लगेगा. इसरो वैज्ञानिक और दुनिया भर के साइंटिस्ट किसी भी रॉकेट लॉन्च के बाद उसके हिस्से पर नजर रखते हैं. रॉकेट के हिस्सों पर नजर रखने का फायदा ये होता है कि वह कब और कहां गिरेगा, इसकी भविष्यवाणी की जा सके. ताकि जब रॉकेट के हिस्से जो अंतरिक्ष में हैं, वो वायुमंडल पार करके नीचे आएं तो किसी को नुकसान हो. ये किसी के घर, किसी विमान, जहाज या आबादी वाले इलाके में न गिरें. 

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