
Vikram Lander अब चांद से सिर्फ 25 किलोमीटर दूर है. उधर रूस का लूना-25 मून मिशन तकनीकी गड़बड़ी की वजह से रास्ते से भटक गया है. रूसी स्पेस एजेंसी उससे संपर्क स्थापित करने का प्रयास कर रही है. खैर... अगर रूस के मिशन में गड़बड़ी होती है तो वह चंद्रयान-3 से पहले चांद की सतह पर लैंडिंग नहीं कर पाएगा. यह भारत के लिए गौरव का विषय होगा.
चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर ने 17 अगस्त 2023 को प्रोपल्शन मॉड्यूल को छोड़ दिया था. खुद आगे चल रहा था. दूसरा रास्ता पकड़ लिया था. इसी रास्ते से वह चांद के और नजदीक पहुंच गया है. 18 अगस्त की दोपहर से पहले विक्रम लैंडर और प्रोपल्शन मॉड्यूल 153 km x 163 km की ऑर्बिट थे. लेकिन करीब 4 बजे दोनों के रास्ते बदल गए.
इसके बाद विक्रम लैंडर 113 km x 157 km की ऑर्बिट में आ गया. तब इसकी दूरी चांद की जमीन से सिर्फ 113 किलोमीटर बची थी. यानी विक्रम 113 किलोमीटर वाले पेरील्यून और 157 किलोमीटर वाले एपोल्यून में था. पेरील्यून यानी चांद की सतह से कम दूरी. एपोल्यून यानी चांद की सतह से ज्यादा दूरी. चंद्रयान-3 बताए गए किसी भी गोलाकार ऑर्बिट में नहीं घूमा. न प्रोपल्शन मॉड्यूल न ही विक्रम लैंडर. सब लगभग गोलाकार ऑर्बिट में थे.
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इस समय विक्रम लैंडर उल्टी दिशा में घूम रहा है. यानी रेट्रोफायरिंग कर रहा है. विक्रम लैंडर अब अपनी ऊंचाई कम करने के साथ-साथ गति भी धीमी कर रहा है. पहले से ही तैयारी ये थी कि 20 अगस्त की रात होने वाली डीबूस्टिंग के बाद विक्रम लैंडर चंद्रमा से सिर्फ 24 से 30 km की दूरी तक पहुंच जाए.
चांद के चारों तरफ चंद्रयान-3 का आखिरी ऑर्बिट मैन्यूवर 16 अगस्त 2023 को किया गया था. जब लॉन्चिंग हुई थी, तब इसरो प्रमुख डॉ. एस. सोमनाथ ने कहा था कि चंद्रयान-3 को 100 किलोमीटर वाली गोलाकार ऑर्बिट में लाएंगे. उसके बाद प्रोपल्शन और विक्रम लैंडर मॉड्यूल अलग होंगे. लेकिन इस बार ऐसा हुआ नहीं.
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2019 में भी चंद्रयान-2 को 100 किलोमीटर की गोलाकार ऑर्बिट में डालने की बात हुई थी. लेकिन तय प्लान के हिसाब से सारे काम नहीं होते. लैंडिंग से पहले चंद्रयान-2 की आखिरी ऑर्बिट 119 km x 127 km थी. यानी कि ऑर्बिट में मामूली सा अंतर रहता है. इस अंतर से किसी तरह की परेशानी नहीं होती.
एक बार जब विक्रम लैंडर को 24 या 30 km की ऑर्बिट मिल जाएगी, तब शुरू होगा इसरो के लिए सबसे कठिन चरण. यानी सॉफ्ट लैंडिंग. चांद के एकदम नजदीक 30 km की दूरी पर आने के बाद विक्रम की गति को कम करना. उसके लिए सही जगह खोजना. सही गति में लैंडिंग कराना. वह भी पौने चार लाख किलोमीटर दूर से. यह सारा काम बेहद जटिल और कठिन होने वाला है.