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क्लाइमेट चेंज के चलते खत्म हो जाएंगी ज्यादातर प्रजातियां, सिर्फ ये जीव रहेगा जिंदा, खौलते पानी और बर्फ का भी नहीं पड़ता असर

क्लाइमेट चेंज के कारण हो रहे बदलाव अब किताबों में पढ़ने की चीज नहीं, बल्कि अनुभव करने की चीज है. खतरे की घंटी बज चुकी है. वैज्ञानिक मानते हैं कि रफ्तार यही रही तो जल्द ही बहुत सी स्पीशीज खत्म हो जाएगीं. यहां तक कि जैव विविधता के तहत आते 20 से 30% तक वर्टिब्रेट्स भी विलुप्त हो सकते हैं. वैज्ञानिक गायब होने और बचे रहने वाली प्रजातियों की पड़ताल कर रहे हैं.

टार्डिग्रेड्स एक्सट्रीम हालातों में भी जिंदा रहते हैं. (Getty Images) टार्डिग्रेड्स एक्सट्रीम हालातों में भी जिंदा रहते हैं. (Getty Images)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 01 फरवरी 2023,
  • अपडेटेड 5:28 PM IST

हेलसिंकी यूनिवर्सिटी ने इसपर एक शोध किया, जो हाल ही में साइंस एडवांसेज जर्नल में छपा. इसमें दिखा कि गर्मी बढ़ने की वजह से दुनिया में बहुत कुछ बदलेगा. ये काफी डरावना होगा. एक के बाद एक बहुत सी प्रजातियां मरती जाएंगी. इसे बैकग्राउंड रेट कहते हैं, जिसमें कोई बहुत बड़ी आपदा आए बगैर ही पशु-पक्षी खत्म होने लगते हैं. एक्सपर्ट चेता रहे हैं कि इंसानी गतिविधियों के कारण लगभग 100 गुनी स्पीड से जीव-जंतुओं का विनाश हो रहा है. इससे जैवविविधता पर असर होगा और खत्म होने वाले जानवर तेजी से बढ़ते ही जाएंगे. 

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वर्टिब्रेट्स जल्दी होंगे विलुप्त
विलुप्त हो रहे ये जीव कीड़े-भुनगे नहीं होंगे, बल्कि वर्टिब्रेट्स यानी जिनकी रीढ़ की हड्डी होती है, उनपर ज्यादा असर होगा. बता दें कि इंसान भी इसी श्रेणी में आते हैं. इंसानों पर हालांकि तुरंत गायब होने का खतरा नहीं क्योंकि उसके पास पेट भरने के कई तरीके हैं. वहीं बहुत से जीव-जंतु, जो फिलहाल हमारी थाली का भी हिस्सा हैं, गायब होने लगेंगे. इनमें पक्षी से लेकर मछलियां भी शामिल हैं. 

ब्रीडिंग दर ज्यादा, तो टिकेंगे भी ज्यादा
एक्सपर्ट ने ये देखना चाहा कि अगले 30 से 50 सालों में दुनिया से कौन-कौन सी प्रजातियां गायब हो जाएंगी. स्टडी के लिए 461 एनिमल्स को लिया गया. 6 महाद्वीपों में अलग-अलग वातावरण में पाए जाते इन जीवों में एक बात कॉमन दिखी. जो भी जीव जितनी तेजी से ब्रीडिंग कर सकता हो, उस प्रजाति के बचने की संभावना उतनी ज्यादा हो सकती है. ऐसा इसलिए है क्योंकि नए जन्मे बच्चे वातावरण के बदलाव को ज्यादा तेजी से एडॉप्ट कर सकेंगे और ऐसा पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहेगा. 

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क्लाइमेट चेंज के चलते कई प्रजातियां खत्म हो जाएंगी. सांकेतिक फोटो (Pexels)

शेप- शिफ्टिंग भी हो सकती है
इसके उलट, वो प्रजातियां जिनमें जन्मदर कम होती है, वे खतरे में आ जाएंगे. यहां तक कि साइज से भी खतरा कम या ज्यादा होगा. आकार में बड़े जीवों के विलुप्त होने का डर ज्यादा है. इस लिहाज से देखें तो घोड़ों से लेकर हाथियों तक पर खतरा हो सकता है. क्लाइमेट चेंज में सर्वाइव करने के लिए जीवों में शेप शिफ्टिंग भी होने लगेगी. जैसे चमगादड़ों या पंक्षियों के पंख या पूंछ लंबी हो जाएगी ताकि वे जल्दी ठंडे हो सकें. 

ये जीव रहेगा जिंदा
बढ़ती गर्मी और ऑक्सीजन की कमी से दुनिया में तबाही मची होगी, वहीं एक ऐसा जीव आराम से जीवित रहेगा. ये हैं टार्डिग्रेड या वॉटर बेयर. इन्हें दुनिया का सबसे मजबूत जीव माना जाता है, जो बर्फ से लेकर ज्वालामुखी के लावे के पास भी जिंदा बच जाता है. इसे उबलते पानी में डाल दीजिए, भारी वजन के नीचे कुचल डालिए या फिर अंतरिक्ष में फेंक दीजिए, ये जिंदा रह जाएंगे.

साल 2007 में वैज्ञानिकों ने हजारों टार्डिग्रेड्स को सैटेलाइट में डालकर स्पेस में भेज दिया. फोटॉन एम3 नाम का ये स्पेसक्राफ्ट जब धरती पर लौटा तो पाया गया कि टार्डिग्रेड्स जिंदा थे. इसके बाद से वैज्ञानिक इस जीव के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने की कोशिश कर रहे हैं. 

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पानी में मिलने वाला ये जीव इतना छोटा है कि माइक्रोस्कोप से ही देखा जा सकता है. ये 0.1 मिलीमीटर से लेकर 1.5 मिलीमीटर तक लंबे होते हैं. साल 1773 में अपने आकार के कारण ही ये लिटिल वॉटर बीयर कहलाया. कुछ सालों के भीतर इसका नया नाम रखा गया- टार्डिग्रेड यानी धीरे-धीरे आगे बढ़ने वाला.

वर्टिब्रेट्स यानी जिनकी रीढ़ की हड्डी होती है, उनके गायब होने का खतरा ज्यादा है. सांकेतिक फोटो (Reuters)

ये माइक्रोस्कोपिक जीव हर एक्सट्रीम में जीवित रह पाता है
जैसे +150 डिग्री सेल्सियस की गर्मी में ये अपने शरीर को मुर्दा की तरह बना लेते हैं. इसे टन (tun) अवस्था कहते हैं. इसमें मेटाबॉलिज्म लगभग खत्म हो जाता है. इसी हालत में वे सालों पड़े रहते हैं, जब तक कि मौसम या परिस्थिति बदल न जाए. इसी तरह से -272 डिग्री सेल्सियस तापमान पर रखने पर भी टार्डिग्रेट्स को कोई फर्क नहीं पड़ता. रूम टेंपरेचर पर लाते ही वे दोबारा सामान्य हो जाते हैं.  

यहां तक कि ये रेडिएशन भी सह जाते हैं. दरअसल इनके शरीर पर पाई जाने वाली शील्ड की बनावट ऐसी है, जो उन्हें रेडिएशन के असर से बचाती है. शील्ड में मिलने वाली जीन को पैरामैक्रोबियोटस नाम दिया गया. ये एक सुरक्षात्मक फ्लोरोसेंट ढाल है, जो खतरनाक रेडिएशन को भीतर सोखकर उसे हानिरहित नीली रोशनी में बदल देता है. शोधकर्ता कोशिश कर रहे हैं कि इस जीव के पैरामैक्रोबियोटस को निकालकर दूसरे जीवों में भी ट्रांसफर किया जा सके ताकि रेडिएशन का असर कम हो. स्पेस और अस्पतालों में इससे फायदा लिया जा सकता है. 

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