
नैनीताल के लोवर मॉल रोड पर फिर से दरारें देखने को मिली हैं. लोक निर्माण विभाग ने डामर लगाकर उसे भर दिया. लेकिन इस सड़क पर खतरा मंडरा है. क्योंकि 18 अगस्त 2018 को इसका एक हिस्सा टूटकर झील में गिर गया था. उससे पहले भी दरारें देखने को मिली थीं. यह सड़क मल्लीताल में ग्रैंड होटल के पास है. जब भी दरारें आती हैं, उसमें सीमेंट, मिट्टी और रेत डालकर भर दिया जाता है.
इस बार दिखी दरार करीब 10 फीट लंबी है. एक से दो इंच चौड़ी है. इसके अलावा कुछ हल्की दरारें भी देखी गईं हैं. वैज्ञानिकों के मुताबिक ये पूरा इलाका ही भूस्खलन प्रभावित क्षेत्र है. मॉल रोड के ऊपर का राजपुरा इलाका भी धंसने के खतरे में आता है. ग्रैंड होटल के ठीक नीचे आई दरार ने मॉल रोड के अस्तित्व पर सवाल खड़ा कर दिया है. इसके अलावा स्ट्रीट लाइट नंबर 171 के पास भी दरारें देखने को मिली हैं. जिन्हें भर दिया गया था.
सेंटर ऑफ एडवांस्ड स्टडी इन जियोलॉजी विभाग कुमाऊं विवि के वैज्ञानिक प्रो. बहादुर सिंह कोटलिया बताते हैं कि जब डीएसबी कॉलेज के पास बड़ा भूस्खलन हुआ था तभी मुझे अंदाजा था कि ये फॉल्ट लाइन राजभवन, डीएसबी गेट से होते हुए ग्रैंड होटल से सात नंबर तक जाएगी. यह पूरा इलाका एक्टिव हो गया था. यह कमजोर जोन है. यहां कभी भी दिक्कत हो सकती है. डीएसबी गेट के ऊपर निर्माण न करने की बात कही थी. क्योंकि इस इलाके की भार सहने की क्षमता खत्म हो चुकी है. लेकिन किसी ने उस समय बात नहीं सुनी.
मॉल रोड के नीचे एक्टिव है फॉल्ट लाइन
प्रो. कोटलिया ने बताया कि उसके बाद 2010 में नैनीताल जिला प्रशासन ने मुझे राजभवन पर रिपोर्ट देने को कहा. मैंने वह स्टडी रिपोर्ट 2012 में दी. उसमें साफ लिखा था कि यहां एक फॉल्ट लाइन एक्टिव हो चुकी है. 2018 में मॉल रोड के धंसने के बाद से देख रहा हूं कि यह जोन काफी ज्यादा सक्रिय है. प्रशासन को चाहिए कि सबसे मॉल रोड पर निर्माण बंद करे. सात नंबर में निर्माण को बैन किया जाए. 1880 में जिस इलाके में भूस्खलन हुआ था वहां तो निर्माण की कोई उम्मीद न रखिए. अब तो स्थिति ऐसी है कि पूरे नैनीताल में कोई बिल्डिंग या निर्माण कार्य नहीं होना चाहिए. फॉल्ट लाइन की सक्रियता को कोई कम नहीं कर सकता. न सरकार कुछ कर सकती है. न ही वैज्ञानिक. इसलिए जरूरी है कि निर्माण कार्य न किए जाएं. क्योंकि अगर मॉल रोड का हिस्सा धंसता है तो बड़ी तबाही हो सकती है.
कई सालों से मॉल रोड पर आ रही हैं दरारें
"नैनीताल:एक धरोहर" किताब के लेखक प्रयाग पांडे बताते हैं कि मॉल रोड के ग्रैंड होटल से लाइब्रेरी तक का हिस्सा भूं-धंसाव वाला रहा है. यहां की जमीन पर दरारों का आना और धंसने का इतिहास है. 1889 में झील के पूर्वी छोर पर मौजूद हैरिस होटल के पास छोटा भूस्खलन हुआ था. उस समय भूगर्भ सर्वेक्षण के अधिकारी आरडी ओल्डहम ने अपनी रिपोर्ट सौंपी थी.
26 जनवरी,1895 को कुमाऊं के तत्कालीन कमिश्नर लेफ्टिनेंट कर्नल ईई ग्रीज ने अपने मुआयने के दौरान ग्रैंड होटल से इलाहाबाद बैंक परिसर (उन दिनों इलाहाबाद बैंक मालरोड में था) में दरारें देखने की बात कही थी. 16 फरवरी,1895 को पीडब्ल्यूडी के तत्कालीन अधिशासी अभियंता कर्नल फुलफोर्ड ने मॉल रोड में आई दरारों का मुआयना कर इस संबंध में चीफ इंजीनियर को रिपोर्ट भेजी थी. इन दरारों के मद्देनजर सरकार ने 24 मार्च,1895 को मिडिल मॉल रोड का निर्माण कार्य रोक दिया था.
1895 में ग्रैंड होटल बैंक हाउस के पीछे स्थित दीवारों में आई दरारें की सरकार ने भू-वैज्ञानिक मिस्टर गिल्स से इन दरारों के कारणों की जांच कराई थी. 1916 में इलाहाबाद बैंक की दीवार ढह गई थी. 1921 में बैंक हाउस के पास पहाड़ी धंसी. स्पष्ट है कि मॉल रोड का वह इलाका शुरू से ही कमजोर रहा है.