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पश्चिमी अमेरिका में पड़ रहा भीषण सूखा, कुछ ही सालों में खत्म हो गई जमीन की 40 प्रतिशत से ज्यादा नमी

मार्च शुरू ही हुआ है, लेकिन देश में गर्मी ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए. मौसम विभाग के मुताबिक पिछले 122 सालों बाद इतना तापमान देखने में आया है. यहां तक कि सरकार एडवायजरी गर्मी पर जारी कर चुकी है. भारत के अलावा, अमेरिका में स्थिति और बुरी है. वहां के पश्चिमी हिस्से में इतना भयंकर सूखा पड़ रहा है, जो पिछले 1200 वर्षों में नहीं दिखा.

अमेरिका में जलाशय, नदियां सब सूख रहे हैं. सांकेतिक फोटो (Unsplash) अमेरिका में जलाशय, नदियां सब सूख रहे हैं. सांकेतिक फोटो (Unsplash)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 01 मार्च 2023,
  • अपडेटेड 1:11 PM IST

यूनिवर्सिटी ऑफ कैलीफोर्निया के क्लाइमेट हाइड्रोलॉजिस्ट सेथ बॉरेनस्टेन ने ये रिसर्च की, जो नेचर जर्नल में छपी. इसके अनुसार साल 1900 में जो सूखा और अकाल पड़ा था, इस बार हालात उससे कहीं ज्यादा खराब हैं. रिसर्च के दौरान ट्री रिंग पैटर्न को बेस बनाया गया. यानी पेड़ों के तनों में बनी रिंग्स को देखा गया ताकि मिट्टी में नमी का पता लगाया जा सके. ये रिंग्स पेड़ों की उम्र जानने के भी काम आती हैं और इनकी जांच से ये भी समझ आता है कि उसकी जड़ों को कितना पानी मिल पा रहा होगा. 

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हर साल पेड़ों पर रिंग्स बनती हैं. नमी मिलने पर ये रिंग चौड़ी और साफ होती है, जबकि सूखी जमीन पर ये छोटी होती जाती है. शोध में दिखा कि उत्तरी अमेरिका के बड़े हिस्से में ट्री रिंग्स लगातार सिकुड़ती जा रही हैं. लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती. आगे जो निकलकर आया, वो सीधे-सीधे हमारे लिए वॉर्निंग है. शोधकर्ताओं की मानें तो साल 2000 से लेकर अगले 21 ही सालों के भीतर हमने मिट्टी का लगभग 42 प्रतिशत पानी सोख लिया. 

ट्री रिंग्स से ये भी पता लगता है कि पेड़ों को कितना पानी मिल पा रहा है. सांकेतिक फोटो (Unsplash)

पिछले साल की गर्मियों में देश के दो सबसे बड़े जलाशय लेक मीड और लेक पॉवेल में पानी सबसे कम स्तर तक चला गया. बता दें कि मीड झील से साउथवेस्टर्न राज्यों के 25 मिलियन से ज्यादा लोगों को पानी मिलता है. इसकी क्षमता घटकर सिर्फ 27 प्रतिशत रह गई. जबकि पॉवेल में पानी का स्तर औसत से 34 प्रतिशत तक बाकी रहा. नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन भी पानी का लेवल घटने की पुष्टि करते हुए पानी पर कैप लगाने की बात कर रहा है, यानी हर परिवार को निश्चित मात्रा में पानी दिया जाए. 

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सूखे के हालातों का असर नदियों पर भी दिख रहा है. सात बड़े अमेरिकी स्टेट्स को पानी देने वाली कोलोरेडो नदी का जलस्तर भी लगातार कम हुआ. कैलीफोर्निया समेत नवादा जैसे बड़े राज्यों में पानी के बंटवारे को लेकर विवाद भी शुरू हो चुका है. इस पर सख्ती दिखाते हुए यहां भी वॉटर राशनिंग की बात हो रही है. 

वेनिस की लाइफलाइन कहलाती नहरें सूख रही हैं. सांकेतिक फोटो (Unsplash)

अमेरिका अकेला परेशान नहीं. इस लिस्ट में बहुत से यूरोपीय देश शामिल हैं. मिसाल के तौर पर इटली के वेनिस शहर को लें तो अपनी खूबसूरती के लिए मशहूर और सालभर पानी से भरी नहरें अब सूख रही हैं. लगभग डेढ़ सौ छोटी-बड़ी नहरों के चलते वेनिस को पानी पर तैरता शहर भी कहा जाता रहा. केवल सैलानी ही ये नहरें देखने नहीं आते थे, बल्कि लोकल्स के लिए जीवन चलाने और यहां तक कि ट्रांसपोर्ट का भी जरिया यही नहरें रहीं. लेकिन पिछले कुछ ही सालों में अप्रत्याशित तरीके से इनका पानी घटते हुए सूखने के स्तर तक पहुंच गया. स्थानीय पर्यावरणविदों का मानना है कि आने वाले समय में ये संकट गहराएगा ही, और वेनिस नहीं, बल्कि पूरा इटली जलसंकट झेलेगा. 

क्लाइमेट चेंज के कारण पानी ही नहीं सूख रहा, बल्कि इसका असर पशु-पक्षियों पर भी हो रहा है. शोधकर्ता मानते हैं कि इसके कारण बहुत सी प्रजातियां गायब होती जा रही हैं. हेलसिंकी यूनिवर्सिटी की एक स्टडी तो ये तक कहती हैं कि इंसानी गतिविधियों के कारण लगभग 100 गुनी स्पीड से जीव-जंतुओं का विनाश हो रहा है. आकार में बड़े जीवों के विलुप्त होने का डर ज्यादा है. इस लिहाज से देखें तो घोड़ों से लेकर हाथियों तक पर खतरा हो सकता है. क्लाइमेट चेंज में सर्वाइव करने के लिए जीवों में शेप शिफ्टिंग भी होने लगेगी. जैसे चमगादड़ों या पंक्षियों के पंख या पूंछ लंबी हो जाएगी ताकि वे जल्दी ठंडे हो सकें.

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