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नॉनवेज के शौक की कीमत चुका रहे जानवर, रोज 20 करोड़ से भी ज्यादा की हत्या

हर दिन 20 करोड़ से भी ज्यादा जानवर हमारी थाली में पहुंच रहे हैं. इनमें समुद्री जीव-जंतु शामिल नहीं हैं. 'एनिमल किल क्लॉक' के मुताबिक अकेले अमेरिका में ही नॉनवेज खाने वाला हर शख्स अपने जीवनकाल में 7000 जानवर खा लेता है. हमने जल्द ही मांसाहार के शौक पर काबू नहीं किया, तो पशु-पक्षियों की बहुत सी प्रजातियां विलुप्त हो जाएंगी.

ब्लैक क्राउन क्रेन खतरे में आ चुकी प्रजाति है. (Pixabay) ब्लैक क्राउन क्रेन खतरे में आ चुकी प्रजाति है. (Pixabay)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 13 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 12:03 PM IST

पशु-प्रेमी संस्थाओं ने मिलकर एनिमल किल क्लॉक नाम की वेबसाइट तैयार की, जो अमेरिकी डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर के साथ मिलकर काम करती है. रोज कितने जानवर मारे जा रहे हैं, यहां उसका डेटा और लाइव अपडेट भी रहता है. फिलहाल इसका बड़ा हिस्सा अमेरिका में एनिमल किलिंग पर फोकस करता है, लेकिन दुनिया के आंकड़े भी दिए गए हैं. इसके अनुसार रोज 20 करोड़ जानवरों की हमारी प्लेट में आ सकें, इसलिए हत्या हो रही है. यानी सालभर में 7 हजार करोड़ से भी ज्यादा. अकेले अमेरिका में इस साल 5 हजार 2 सौ करोड़ से भी ज्यादा पशु मारे जा चुके. 

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पूरा आंकड़ा अब भी बाकी
ये भी वही जीव हैं, जो बाजार से होते हुए हमारी प्लेट तक पहुंच पाते हैं. बहुत बड़ी संख्या में ये स्लॉटरहाउस तक लाने से पहले ही मर जाते हैं. जैसे एक जगह से दूसरी जगह लाने के दौरान, या फिर कटकर प्लेट में पहुंचने से पहले भूख या किसी बीमारी से. 

 एशियन यूनिकॉर्न, जिसे सओला भी कहते हैं, लंबे समय से कहीं नजर नहीं आया. (Pixabay)

कौन बचे हैं कौन खत्म
मरीन कंजर्वेशन सोसायटी और जुलॉजिकल सोसायटी ऑफ लंदन की स्टडी ने ऐसे ही कुछ जानवरों की बात की, जो विलुप्त होने की कगार पर हैं. इनमें सबसे ऊपर है चाइनीज जायंट सेलामेंडर. मध्य और दक्षिणी चीन में मिलने वाली छिपकली की तरह दिखने वाला ये जीव बड़ी तेजी से गायब हुआ.

सेलामेंडर अब भी ब्लैक मार्केट में मिल रहे
असल में बात ये है कि पूरे चीन में ही सेलामेंडर को एग्जॉटिक कैटेगरी में रखा गया, और इसे चाव से खाया जाता. इसमें औषधीय गुण के कारण चाइनीज ट्रैडिशनल मेडिसिन बनाने में भी इसका उपयोग होता. इनकी संख्या 95 फीसदी तक कम होने के बाद सरकार अलर्ट हुई और इसे एंडेंजर्ड स्पीशीज ऑफ वाइल्ड फौना एंड फ्लोरा में शामिल किया. हालांकि अब भी चीन के ब्लैक मार्केट में एग्जॉटिक एनिमल्स में ये काफी महंगे दाम पर मिल जाते हैं. 

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रेप्टाइल्स की तरह दिखने वाले स्तनधारी पेंगोलिन भी इसी श्रेणी में
कई एनिमल-वेलफेयर संस्थाएं मानती हैं कि इस जीव की दुनिया में सबसे ज्यादा तस्करी होती है. चीन समेत वियतनाम, कंबोडिया, श्रीलंका तक में पेंगोलिन को बहुत ऊंचे दामों पर खरीदा जाता रहा. अब ये स्पीशीज भी तेजी से घट रही है. यही वजह है कि इन्हें रेड लिस्ट ऑफ थ्रेटंड स्पीशीज की लिस्ट में डाला गया. 

गायब हो रहे ज्यादातर पशु चीन में एग्जॉटिक एनिमल्स की श्रेणी में आते हैं और ब्लैक मार्केट में मिलते हैं. सांकेतिक फोटो (Pixabay)

भारी-भरकम डोडो पक्षी पूरी तरह से खत्म
औसत डोडो का वजन लगभग 20 किलो होता, जिसकी वजह से ये उड़ नहीं पाता. 16वीं सदी में पुर्तगाल के व्यापारियों ने यात्रा के दौरान इसे खाने की शुरुआत की, जिसके बाद से वे जहां-जहां गए, डोडो पक्षी मारे जाने लगे. साल 1681 में दुनिया का आखिरी डोडो भी पककर थाली में पहुंच गया. अब केवल संग्रहालय और तस्वीरें ही हैं, जिनके जरिए हम इसे जानते हैं. 

एशियन यूनिकॉर्न पर भी खतरा
देखने में हिरण से मिलता-जुलता जीव सओला , जिसे एशियन यूनिकॉर्न भी कहते हैं, तेजी से विलुप्त हो रहा है, जो वियतनाम और लाओस के बीच मिलता है. लोकल्स इसे गाय-भैंस की श्रेणी का पशु मानते और खाते हैं. नब्बे के दशक में समझ में आया कि इनकी तादाद तेजी से कम हो रही है. वर्ल्ड वाइल्फ लाइफ के अनुसार इसके बाद से लेकर अब तक केवल 4 बार ही कुछ सओला दिखाई दिए. इसे क्रिटिकली एंडेंजर्ड श्रेणी में रखा गया है. फिलहाल इस बारे में एक्सपर्ट भी पक्का नहीं कि ये जीव बाकी भी हैं, या पूरी तरह खत्म हो चुके. 

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डोडो पक्षी पूरी तरह से गायब हो चुका. सांकेतिक फोटो (Pixabay)

कुछ ही सालों में खत्म हुईं ज्यादातर प्रजातियां
पूरी तरह से खत्म हो चुकी स्पीशीज की बात करें तो WWF के अनुसार साल 1970 के बाद से लेकर 2014 तक  60% से ज्यादा स्तनधारी, पक्षी, मछलियां और रेप्टाइल खत्म हो चुके. सिर्फ मांसाहार ही नहीं, बल्कि जंगलों का काटना या प्रदूषण फैलाना भी इनकी कुछ वजहों में से है. स्टडी में दुनिया के 59 एक्सपर्ट शामिल थे, जिन्होंने माना कि गायब हो चुके पशु-पक्षियों की जगह अगर इंसानी आबादी खत्म होती, तो उत्तरी-दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका, यूरोप और चीन पूरी तरह खाली हो चुके होते. 

इतने जीव-जंतु मारे भी गए तो क्या फर्क पड़ रहा है!
धरती वैसी की वैसी है और जीव-जंतुओं की नई आबादी भी आ रही है. कई लोग ये तर्क भी देते हैं कि अगर इन्हें न मारा जाए तो दुनिया में इंसानों की जगह यही ले लेंगे. लेकिन साइंस का कहना इससे अलग है. इसके मुताबिक धरती से चींटी जैसी एक प्रजाति भी खत्म हो जाए तो पूरा इकोसिस्टम गड़बड़ा जाता है. जैसे अमेरिका के नेशनल यलोस्टोन पार्क में चोरी-छिपे शिकार के चलते भेड़िए खत्म हो गए. इनके खत्म होने से हिरणों की संख्या तेजी से बढ़ी और पार्क में बाकी जीवों की संख्या और उनके रहने की जगह भी खत्म होने लगी. 

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हमारी दुनिया फूड चेन पर आधारित 
दो अलग-अलग प्रजाति के जीव खाने के लिए आपस में निर्भर हैं, जैसे शेर सियार का शिकार करेगा और सियार खरगोशों या छोटे जीवों का. ऐसे में अगर कोई भी एक जीव फूड चेन से गायब हो जाए तो वो जिसका शिकार करेगा, उसकी आबादी बढ़ेगी. साथ ही ये भी होगा कि जो उनका शिकार करते हैं, उनकी आबादी कम होगी. इससे पूरा इकोसिस्टम खराब हो जाएगा. और आप ये मत समझिए कि आप-हम यानी इंसानी इससे अछूते रहेंगे. 

यही वजह है कि वैज्ञानिक बार-बार 6वें सामूहिक विनाश की बात कर रहे हैं, यानी प्रलय की, लेकिन जो हमेशा की तरह कुदरती नहीं होगा, बल्कि इंसानी गलतियों से आएगा. 

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