
पिछले एक साल में भारत में दो प्राकृतिक आपदाएं बहुत तेजी से बढ़ी हैं. पहला - वज्रपात. दूसरा- सूखा. इनकी वजह से मौतों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है. ये आंकड़े सरकारी हैं. केंद्र सरकार ने विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक आपदाओं के आंकड़े जारी किए हैं जो बेहद डरावने हैं. साल 2021 की तुलना में 2022 में थंडरस्टॉर्म साढ़े पांच गुना बढ़ गया है. देश में सूखा करीब सात गुना बढ़ गया है. बिजली गिरना यानी वज्रपात की मात्रा तो डराती है. यह 113 गुना ज्यादा हो गई है.
बिजली गिरने की वजह से पिछले साल भारत में 907 लोगों की मौत हुई. यह जानकारी अर्थ साइंसेस मिनिस्ट्री ने लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में दिया. धूल भरी आंधी 4 गुना बढ़ गआई है. हीटवेव 30 गुना बढ़ा है. पूरा भारत क्लाइमेट चेंज की चपेट में है. इस साल इन सभी प्राकृतिक आपदाओं की वजह से 2183 लोग मारे गए. जबकि इससे पहले साल 2019 में 3017 लोग मारे गए थे.
कुदरत के कहर से जितने भी लोग इस बार मारे गए हैं, उनमें से 78 फीसदी लोग वज्रपात और बाढ़ की वजह से जान से हाथ धो बैठे. इससे पहले सरकार ने अगस्त में कहा था कि मॉनसून के समय देश ज्यादा तापमान से जूझ रहा है. ऐसा पूरी सदी में पहली बार हुआ था. यानी अगले कुछ वर्षों में भारत को बुरी आपदाओं का सामना ज्यादा करना पड़ेगा. भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कार्बन पॉल्यूटर देश है, यानी सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करता है.
इस साल 27 बार हीटवेव आया
इस साल मार्च में देश ने सदी का सबसे गर्म मौसम देखा. इसके बाद अप्रैल और फिर मई. अगर आप बात करेंगे हीटवेव की तो वह सात गुना बढ़ी है. पिछले साल सिर्फ 4 बार हीटवेव आई थी. जबकि, इस साल 27 बार. सबसे ज्यादा जो राज्य इस हीटवेव से प्रभावित हुए हैं, वो हैं- उत्तराखंड, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और झारखंड.
एक्सट्रीम हैवी रेनफॉल ज्यादा
उधर, अगर आप बारिश की बात करते हैं तो चार महीने सबसे ज्यादा बारिश होती है. जून, जुलाई, अगस्त और सितंबर. लेकिन साल 2021 की तुलना में 2022 में एक्सट्रीम हैवी रेनफॉल दोगुनी से ज्यादा हुई है. ये बात जून महीने की है. जुलाई में भी बढ़त थी. अगस्त में फिर दोगुना ज्यादा एक्सट्रीम हैवी रेनफॉल. सितंबर में एकदम घट गई बारिश. मतलब ये उस तरह की बारिश के मौके है, जब आपदाएं आती हैं. तेज बाढ़ और भारी तबाही होती है.
आपदाओं से पनपती बीमारियां
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कहा है कि 1998 से 2017 तक हीटवेव की वजह से पूरी दुनिया में 1.66 लाख लोग मारे गए हैं. साल 2030 से 2050 के बीच हर साल इन मौतों में 2.50 लाख और जुड़ जाएंगे. ये मौतें होंगी कुपोषण, मलेरिया, डायरिया और हीट स्ट्रेस. यानी ये सभी बीमारियां बेमौसम होने वाली प्राकृतिक आपदाओं से पैदा होती है. पनपती हैं. भारत में ही बर्बादी नहीं होगी. बल्कि इसका असर पड़ोसी देशों पर भी पड़ेगा. या उन देशों में कोई बड़ी आपदा आती है तो भारत के कुछ इलाकों में असर होगा.
केंद्रीय पर्यावरण एवं विज्ञान मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने लोकसभा में यह बात मानी है कि साल 2021 की तुलना में 2022 में एक्सट्रीम वेदर की मात्रा और तीव्रता बढ़ी है. उसके लिए सरकार तैयारियां कर रही है. मौसम संबंधी जानकारियों का एक्सटेंडेड फोरकास्ट कर रही है. लोगों को चेतावनी दी जा रही है. इसके अलावा इस बात की गवाही भी इस साल मिली है कि कैसे हिंदुकुश के पहाड़ और तिब्बती पठारों पर आई प्राकृतिक आपदाओं का असर हमारे यहां देखने को मिला है. चीन से निकलने वाली ब्रह्मपुत्र नदी हर बार की तरह इस बार भी असम में आफत लेकर आई.
हर साल बढ़ रहा समुद्री जलस्तर
पृथ्वी मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक उत्तरी हिंद महासागर 1874-2004 के बीच हर साल 1.06 से 1.75 मिमी की गति से बढ़ रहा था. लेकिन यह 1993 से 2017 के बीच 3.3 मिलिमीटर प्रति वर्ष की दर से बढ़ा. 1874 से लेकर 2005 तक देखेंगे तो पता चलेगा कि हिंद महासागर करीब एक फीट ऊपर उठ चुका है. समुद्री जलस्तर बढ़ने की वजह ग्लोबल वॉर्मिंग है. तापमान में अगर वैश्विक स्तर पर एक डिग्री सेल्सियस का इजाफा होता है, तो तूफान भी बढ़ेंगे. भारत के पश्चिमी तटों पर पिछले चार साल में चक्रवातों की संख्या 52 फीसदी बढ़ी है.
मुंबई, कोच्चि खतरे में चल रहे
साल 2050 तक तापमान अगर 2 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है, तो इन चक्रवातों और तूफानों की संख्या में बहुत ज्यादा इजाफा हो जाएगा. हो सकता है ये तीन गुना बढ़ जाएं. मुंबई की कम से कम 1000 इमारतों पर बढ़ते समुद्री जलस्तर का असर पड़ेगा. कम से कम 25 किलोमीटर लंबी सड़क खराब हो जाएगी. जब हाई टाइड आएगा... तब 2490 इमारतें और 126 किलोमीटर लंबी सड़क पानी में होगी. 2030 तक मुंबई, कोच्चि, मैंगलोर, चेन्नई, विशाखापट्टनम और तिरुवनंतपुरम का तटीय इलाका छोटा हो जाएगा. समुद्र का पानी जमीन को निगलेगा.
सुमुद्री जलस्तर बढ़ने पर ये होगा
2050 तक चेन्नई में 5 किलोमीटर लंबी सड़क और 55 इमारतें समुद्री बाढ़ का सामना करेंगी. वहीं, कोच्चि में समुद्री बाढ़ का असर कम से कम 464 इमारतों पर पड़ेगा. हाई टाइड के समय 1502 इमारतें प्रभावित होंगी. तिरुवनंतपुरम में 349 से 387 इमारतों को नुकसान होगा. विशाखापट्टनम में 9 किलोमीटर लंबी सड़क और 206 इमारतों पर असर पड़ेगा. सन 2100 तक भारत के 12 कोस्टल सिटी यानी तटीय शहर करीब 3 फीट डूब जाएंगे. ये स्टडी है अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) की है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरी दुनिया भयानक गर्मी झेलेगी. क्योंकि तापमान 4.4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है.
इन 12 शहरों के लिए आफत
रिपोर्ट के मुताबिक अगले दो दशकों में ही पारा 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ेगा. जब इतना तापमान बढ़ेगा, तो ग्लेशियर पिघलेंगे. उसका पानी मैदानी और समुद्री इलाकों में तबाही मचाएगा. इस रिपोर्ट में भी भारत के 12 शहरों को साल 2100 तक आधा फीट से लेकर करीब पौने तीन फीट समुद्री जल में समाने की बात कही गई थी. सबसे ज्यादा खतरनाक स्थिति में भावनगर (2.69 फीट), कोच्चि (2.32 फीट), मोरमुगाओ (2.06 फीट), ओखा (1.96 फीट), तूतीकोरीन (1.93 फीट), पारादीप (1.93 फीट), मुंबई (1.90 फीट), मैंगलोर (1.87 फीट), चेन्नई (1.87 फीट) और विशाखापट्टनम (1.77 फीट).
आईपीसीसी की रिपोर्ट में बताया गया है कि अगले 20 सालों में पृथ्वी का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस तो बढ़ेगा ही. ऐसा क्लाइमेट चेंज से होगा. जो प्रचंड गर्मी 50 सालों में एक बार आती थी, अब वो हर दस साल में आ रही है. पिछले 40 सालों से गर्मी जितनी तेजी से बढ़ी है, उतनी 1850 के बाद के चार दशकों में नहीं बढ़ी थी. जलवायु परिवर्तन पूरी धरती पर असर डालता है. बर्फ खत्म हो जाएं और जंगल खाक हो जाएं तो आपके सामने पानी और हवा दोनों की दिक्कत होगी.