
एक सहस्राब्दी पहले तक, पेरू में चिनचा के लोग अपने पूर्वजों के अवशेषों पर लाल रंग लगाया करते थे. कभी-कभी वे खोपड़ी को भी अपनी उंगलियों से रंगते थे. माना जाता है कि तब इस तरह की प्रथा होती थी और इसी के चलते वे अवशेषों पर लाल रंग लगाते थे. माना जाता है कि ऐसा इसलिए किया जाता था कि मृतकों को दुनिया छोड़ने के बाद, एक नए तरह का सामाजिक जीवन मिले.
एक नई जांच में, शोधकर्ताओं ने दक्षिणी पेरू की चिनचा घाटी में पाए गए सैकड़ों मानव अवशेषों का विश्लेषण किया. उन्होंने 1000 AD और 1825 के बीच के अवशेषों का अध्ययन किया, जो 100 से ज्यादा 'चुलपास'(Chullpas) में पाए गए थे. चुलपास बड़ी संरचनाएं होती थीं, जिसे मुर्दाघर कहा जा सकता है. यहां कई लोगों को एक साथ दफ़नाया जाता था. शोधकर्ताओं ने शोध के माध्यम से यह जानने की कोशिश की है कि हड्डियों पर लाल रंग कैसे और क्यों लगाया गया था. यह शोध 2023 में जर्नल ऑफ एंथ्रोपोलॉजिकल आर्कियोलॉजी के मार्च अंक में प्रकाशित होगा.
जांच में शोधकर्ताओं को पता चला कि इसके लिए अलग-अलग तरह के लांल रंग का इस्तेमाल किया गया था और लाल रंग केवल कुछ लोगों की ही मौत के बाद लगाया जाता था.
शोध में कहा गया है कि अंतिम संस्कार की रस्मों में लाल रंग का इस्तेमाल पेरू में हजारों साल पहले होता था और समाज के मृत सदस्यों के साथ ऐसा ही किया जाता था. उनके मुताबिक मृत्यु अंत नहीं होती, बल्कि यह किसी और अस्तित्व में परिवर्तित होने का क्षण होता है. जैसे एक रूप से किसी और रूप में बदल जाना और आगे के नए जीवन में प्रेवश करना.
शोधकर्ताओं ने 38 अलग-अलग कलाकृतियों और हड्डियों से लाल रंग के नमूने लिए थे, जिनमें से 25 इंसानी खोपड़ियां थीं. इनपर तीन तकनीकों का इस्तेमाल किया गया- एक्स-रे पाउडर डीफ्रैक्शन, एक्स-रे फ्लोरेसेंस स्पेक्ट्रोमेट्री और लेजर एब्लेशन आईसीपी-एमएस. इन तकनीकों से किसी पदार्थ के अंतर के तत्वों का विश्लेषण किया जाता है. इससे उन्होंने लाल रंग की संरचना का पता लगाया. 24 नमूनों पर लाल रंग गेरू से आया था, जिसमें लोहे की भी मात्रा थी, जैसे हैमेटाइट. 13 नमूनों में जो रंग था वह सिनेबार से आया था जिसमें पारा भी मिला हुआ था. और एक नमूने में ये दोनों चीजें मिली हुई थीं.
जिन लोगों की हड्डियों पर रंग लगाया गया था उनमें से ज्यादातर लोग वयस्क पुरुष थे. हालांकि, महिलाओं और बच्चों के साथ-साथ कई लोगों की हड्डियों को भी रंगा गया था.
खोपड़ियों की बारीकी से जांच करने पर यह भी पता लगाया गया कि लाल रंग किस तरह से लगाया गया था. बॉस्टन यूनिवर्सिटी के मानवविज्ञानी पुरातत्वविद् और शोध के मुख्य लेखक जैकब बोंगर्स (Jacob Bongers) का कहना है कि चिनचा लोगों ने मानव अवशेषों पर लाल रंग लगाने के लिए कपड़े, पत्तियों और अपने हाथों का इस्तेमाल किया था. खोपड़ी पर पेंट की मोटी लंबी और आड़ी लाइनें दिखाई देती हैं, जिससे पता चलता है कि ये रंग लगाने वाले ने उंगलियों से रंग लगाया था.
हड्डियों पर ये रंग कब लगाया गया, इस बारे में शोधकर्ताओं को अभी तक पता नहीं चला है. हालांकि, ये साफ है कि शरीर के कंकाल बन जाने के बाद ही ये रंग लगाया गया होगा.