
पूरी दुनिया को सूरज से एनर्जी मिलती है. इसी को ही सौर ऊर्जा (Solar Energy) कहते हैं. पूरी दुनिया में 3.6 फीसदी बिजली का उत्पादन सौर ऊर्जा से होता है. लेकिन पहली बार अंतरिक्ष से धरती पर सौर ऊर्जा को एक किरण या यू कहें एक लहर के माध्यम से भेजा गया है. यह एक बड़ी वैज्ञानिक सफलता है.
अंतरिक्ष से पृथ्वी पर इस तरह से सोलर एनर्जी भेजने से नए रास्ते खुल सकते हैं. इस प्रयोग में वैज्ञानिकों ने सैटेलाइट्स से मिली सोलर एनर्जी को धरती पर भेजकर उसे बिजली में बदल दिया. अंतरिक्ष से आई सौर ऊर्जा की लहर को पृथ्वी पर मौजूद लैब के कलेक्टर यंत्र ने जमा करके बिजली में बदल दिया. इसे माइक्रोवेव एरे कहते हैं.
माइक्रोवेव एरे का इस्तेमाल पावर ट्रांसफर के लिए किया जाता है. यह कुछ ऐसा है जैसे वायरलेस के जरिए लोग बात करते हैं. ठीक उसी तरह बिना किसी तार के मदद के ऊर्जा को जमीन पर वायरलेस तरीके से भेज दिया गया. यह तकनीक भविष्य में उन जगहों के लिए फायदेमंद हो सकती है, जहां पर हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर जेनरेट नहीं होता. या फिर वहां कोयला नहीं है. ताकि बिजली पैदा की जा सके.
3.6% बिजली सौर ऊर्जा से पैदा होती है दुनिया में
पूरी दुनिया में 3.6 फीसदी बिजली का उत्पादन सौर उर्जा से होता है. बिजली उत्पादन का यह दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा स्रोत है. इसके पहले विंड एनर्जी और हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर आते है. आने वाले समय में इन तीन तरीकों से बिजली पैदा करना और भी आसान होगा.
भविष्य में यह बढ़कर 50 फीसदी तक हो जाएगी
माना जाता है कि इन तीन तरीकों से 2035 तक 40% और 2050 तक 45% तक बिजली उत्पादन में बढ़ोतरी होगी. भविष्य में कुल मिलाकर देखा जाए तो बाजार में 90 फीसदी हिस्सा उर्जा उत्पादन का होगा. इसमें से आधा हिस्सा सौर उर्जा का रहेगा. सौर ऊर्जा हासिल करने की मुख्य वजह है इंटरमिटेंसी. यानी तभी तक बिजली मिलेगी जब तक सूरज से रोशनी आती है.
वायरलेस तकनीक से धरती पर भेजी गई बिजली
इस पर वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष-आधारित सौर ऊर्जा (SSPP) पर शोध करने में दशकों बिताए हैं. जहां कक्षा में उपग्रह बिना किसी रुकावट के हर दिन पूरे साल बिजली जमा कर पाएंगे. अंतरिक्ष सौर ऊर्जा योजना (SSP) लागू करने के लिए शोधकर्ताओं ने नई टेक्नोलॉजी वायरलेस पावर ट्रांसफर बनाई है.
इस प्रोजेक्ट का नाम है माइक्रोवेव एरे फॉर पावर ट्रांसफर लो-ऑर्बिट एक्सपेरिमेंट (MAPLE). इस प्रोजेक्ट का नेतृत्व कर रहे हैं कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (CalTech) के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग और मेडिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर अली हाजीमिरी.
ये है नई तकनीक और प्लेटफॉर्म, जिससे आई बिजली
मेपल प्लेटफॉर्म लचीले, हल्के माइक्रोवेव ट्रांसमीटर्स होते हैं. जिनके अंदर कस्टम इलेक्ट्रॉनिक चिप्स होते हैं. इसे सस्ते सिलिकॉन टेक्नोलॉजी से बनाया गया है. ताकि ज्यादा से ज्यादा सौर ऊर्जा पैदा करके उसे लहर के माध्यम से धरती पर भेजा जा सके. इसी तरह से भेजा भी गया.
एसएसपीपी 2011 में शुरू हुआ जब कैलटेक बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज के सदस्य डोनाल्ड ब्रेन ने एसबीएसपी अनुसंधान परियोजना के निर्माण पर चर्चा करने के लिए कैलटेक के तत्कालीन अध्यक्ष जीन-लू चाम्यू से संपर्क किया. हल्के संरचना वाले वायरलेस पावर ट्रांसफर का उपयोग करके अंतरिक्ष में सौर ऊर्जा और विश्व स्तर पर इसके लिए एक दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं.
युद्ध या प्राकृतिक आपदा के समय ऊर्जा भेजने में होगी मदद
अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन को शक्ति देने के लिए अंतरिक्ष में पहले से ही सौर पैनलों का उपयोग किया जाता है. उसी तरह से जैसे इंटरनेट ने सूचना को पहुंचाने का लोकतंत्रीकरण किया हैं. वैसे ही वायरलेस ऊर्जा को लोगों तक पहुंचाने का काम आसान हो रहा है. इस बिजली को प्राप्त करने के लिए जमीन पर किसी ऊर्जा संचरण बुनियादी ढांचे की आवश्यकता नहीं होगी.
इसका मतलब है कि हम युद्ध या प्राकृतिक रूप से तबाह हुए दूरदराज के जगहों में ऊर्जा भेज सकते हैं. जो दुनिया के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है, आज ऊर्जा भंडारण और संचरण चुनौतियों भरा हैं. अंतरिक्ष से सौर ऊर्जा को बीम करना बहुत आसान हो गया है. एक ऐसी दुनिया जो अपरिवर्तनीय ऊर्जा द्वारा काम कर सकती है.