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एक मछली खाना महीनेभर दूषित पानी पीने जितना खतरनाक, मिला वो केमिकल जो हजारों साल बाद भी खत्म नहीं होता

अगर आप मीठे पानी की मछली खाते हैं तो इससे शरीर में उतना ही जहर जाएगा, जितना महीनेभर दूषित पानी पीने से. अमेरिका में हुई स्टडी के मुताबिक नदी या झीलों की मछलियों में फॉरेवर केमिकल की मात्रा तेजी से बढ़ रही है. ये वो केमिकल है, जो हजारों साल बाद भी खत्म नहीं होता. वैज्ञानिक इसे सदी का सबसे खतरनाक जहर मान रहे हैं.

मछलियों में फॉरेवर केमिकल की खतरनाक मात्रा मिल रही है. सांकेतिक फोटो (Pixabay) मछलियों में फॉरेवर केमिकल की खतरनाक मात्रा मिल रही है. सांकेतिक फोटो (Pixabay)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 23 जनवरी 2023,
  • अपडेटेड 8:45 AM IST

मछलियां खाने के शौकीन इसके फायदों पर खूब बातें करते हैं, जैसे इसके प्रोटीन और ओमेगा-3 फैटी एसिड से भरपूर होने की बात. नॉनवेज खाने वालों की डायट में मछली बड़ा हिस्सा होती है. हालांकि मछलियां भी अब जहरीली हो रही हैं. एनवायरमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी और अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने जॉइंट स्टडी में पाया कि अमेरिका की झीलों और नदियों का पानी इतना प्रदूषित हो चुका कि उसमें रहने वाली मछलियां भी जहरीली हो रही हैं. साइंस डायरेक्ट में छपी स्टडी में दावा किया गया कि फ्रेशवॉटर मछलियों में 278 गुना फॉरेवर केमिकल मिलने लगा है, जो गंभीर बीमारियां दे सकता है. 

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क्या है फॉरेवर केमिकल

इसे पर-एंड-पॉलीफ्लूरोलकिल सब्सटेंस (PFAS)कहते हैं. ये वो रसायन है, जो आमतौर पर नॉनस्टिक या फिर वॉटर-रेजिस्टेंट कपड़ों, जैसे रेनकोट, छतरी या मोबाइल कवर में होता है. शैंपू, नेल पॉलिश और आई-मेकअप में भी इसकी बहुत थोड़ी मात्रा होती है. बहुत सारे अध्ययन इसके खतरों के बारे में साफ बताते हैं.

क्यों माना जा रहा खतरनाक

इसका सीधा असर ग्रोथ और हॉर्मोन्स पर होता है. इसकी वजह से थायरॉइड और कोलेस्ट्रॉल जैसी दिक्कतें हो जाती हैं. यहां तक कि गर्भवती में इसकी वजह से मिसकैरेज या समय से पहले शिशुजन्म भी हो सकता है. ऐसे बच्चों का शरीर और ब्रेन ठीक से विकसित न होने की आशंका रहती है. साल 2017 में इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर ने PFOA को साफ तौर पर ह्यूमन कार्सिनोजन कहा, यानी जिससे कैंसर की आशंका रहती है. खासकर तौर किडनी और टेस्टिस का कैंसर. 

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हजारों गुना रसायन मिलने लगा

अमेरिकी नदी-झीलों में लगातार 3 सालों तक स्टडी के बाद दिखा कि ये पानी में पाए जाने वाले जीव-जंतुओं में ये केमिकल थोड़ा-बहुत नहीं, बल्कि 2,400 गुना ज्यादा मिलने लगा है. अगर ऐसे सी-फूड की आप महीने में एक सर्विंग भी खाएंगे तो ये ठीक वैसा ही है, जैसे महीनेभर आप बैक्टीरिया और दूसरे जर्म्स से भरा पानी पी रहे हों. वैज्ञानिकों ने यहां तक कहा कि सालभर में 4 बार भी मछली खाने पर शरीर में PFAS खतरनाक स्तर पर पहुंच जाता है. अमेरिका के एकाध नहीं, बल्कि 48 राज्यों में यही पैटर्न मिला. 

नॉनस्टिक बर्तनों में भी पर-एंड-पॉलीफ्लूरोलकिल सब्सटेंस होता है. सांकेतिक फोटो (Pixabay)

हर जगह दिख रही मौजूदगी

सबसे डरावनी बात ये है कि जो तालाब या नदियां कारखानों से बहुत दूर हैं, वहां भी पानी में फॉरेवर केमिकल की मात्रा ज्यादा मिली. यानी ये केमिकल अब हर जगह है. बता दें कि इस केमिकल को फॉरेवर इसलिए कहते हैं क्योंकि ये खत्म नहीं होता. या शायद हजारों साल बाद खत्म होता हो, जिसके बारे में फिलहाल वैज्ञानिकों को भी नहीं पता. कुल मिलाकर इसे प्लास्टिक से भी ज्यादा खतरनाक माना जा रहा है, जिसपर ज्यादातर देशों में कोई कंट्रोल नहीं. 

साल 1940 से PFAS का इस्तेमाल शुरू हुआ. फूड पैकेजिंग और नॉन-स्टिक से होते हुए इसका उपयोग बढ़ता ही गया क्योंकि ये गर्मी, तेल और पानी में टिक जाता है. इसका यही टिकाऊपन पर्यावरण के लिए खतरनाक साबित हो रहा है. ये मिट्टी, पानी से होते हुए मछलियों और वाइल्डलाइफ को भी खतरे में डाल रहा है. सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन ने भी साल 2019 के एक अध्ययन में कहा था कि लगभग 98 प्रतिशत अमेरिकियों के शरीर में ये रसायन मौजूद है, जिसकी वजह है दूषित पानी और खाना. 

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आपके आसपास किन चीजों में है ये केमिकल

स्टडी अमेरिका की है. हमारे यहां भले ही इसपर अध्ययन नहीं दिखता, लेकिन केमिकल वाले प्रोडक्ट खूब जमकर मिल रहे हैं. पिज्जा बॉक्स, फूड रैपर, टेक-आउट डिब्बे, माइक्रोवेव पॉपकॉर्न बैग, बेकरी बैग, नॉनस्टिक पैन, कारपेट, कार सीट से लेकर छाते, रेनकोट और जो भी कपड़े स्टेन या वॉटर-पूफ्र होने की बात करते हैं, उन सबमे PFAS है.

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