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Gangotri Glacier Melting: हमेशा ऐसे ही नहीं बहती रहेगी गंगा! तेजी से पिघल रहा गंगोत्री ग्लेशियर... स्टडी

2500 KM लंबी गंगा. अपने पानी से 40 करोड़ लोगों को जिंदा रख रही है. क्योंकि इस पवित्र नदी को गंगोत्री ग्लेशियर से पानी मिल रहा है. लेकिन ग्लेशियर ही खतरे में है. 87 सालों में 30 KM लंबे ग्लेशियर में से पौने दो किलोमीटर हिस्सा पिघल कर बह चुका है. दोबारा नहीं बनेगा. वजह आप और हम हैं.

गंगोत्री ग्लेशियर का निचला मुहाना जिसे लोग गौमुख के नाम से जानते हैं. यहीं से गंगा बहना शुरू करती हैं. (फोटोः गेटी) गंगोत्री ग्लेशियर का निचला मुहाना जिसे लोग गौमुख के नाम से जानते हैं. यहीं से गंगा बहना शुरू करती हैं. (फोटोः गेटी)
ऋचीक मिश्रा
  • नई दिल्ली/देहरादून,
  • 22 सितंबर 2022,
  • अपडेटेड 4:36 PM IST

भारत की सीमाओं में आने वाले हिमालय में 9575 ग्लेशियर हैं. इनमें से 968 ग्लेशियर उत्तराखंड (Uttarakhand) में हैं. ज्यादातर का पानी किसी न किसी तरीके से हम इंसानों की प्यास बुझा रहा है. गंगा, घाघरा, मंदाकिनी, सरस्वती जैसी नदिया भारत के मैदानी हिस्सों को जीवन दे रही हैं. सींच रही हैं. सांसें भर रही हैं. क्या होगा अगर इन नदियों के स्रोत खत्म हो जाएं. ग्लेशियर ही तो हैं. जमी हुई बर्फ. गर्मी बढ़ती जा रही है पिघल जाएंगे सब. जैसे पिछले 87 साल में गंगोत्री ग्लेशियर 1700 मीटर (1.70 KM) पिघल गया है.

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देश की सबसे पवित्र माने जाने वाली नदी गंगा (Ganga) इसी ग्लेशियर के गौमुख (Gaumukh) से निकलती है. यहीं से गंगा को जीवन मिलता है. देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालय जियोलॉजी (Wadia Insititute of Himalayan Geology) के साइंटिस्ट डॉ. राकेश भाम्बरी ने स्टडी की है. उनकी स्टडी में इस बात का खुलासा हुआ है कि 1935 से लेकर 2022 तक गंगोत्री ग्लेशियर के मुहाने वाला हिस्सा 1700 मीटर यानी पौने दो किलोमीटर पिघल चुका है. इसकी वजह बढ़ता तापमान, कम बर्फबारी और ज्यादा बारिश है. 

डॉ. राकेश भाम्बरी की स्टडी में दिखाया गया है कि कैसे साल-दर-साल गंगोत्री ग्लेशियर पिघल रहा है. 

बढ़ते तापमान की वजह तो हम और आप हैं. बर्फबारी का कम होना भी जलवायु परिवर्तन का नतीजा है. डॉ. राकेश ने aajtak.in से कहा कि मौसम कैसे बदल रहा है. ये आप अभी देख सकते हैं. मॉनसून को चले जाना चाहिए था. लेकिन अब भी तीन दिन से देहरादून में बारिश हो रही है. यही हालत कई स्थानों पर होगी. मौसम लगातार बदल रहा है. यह बता पाना मुश्किल है कि हिमालय के इलाकों में इस मौसम का कहां क्या और कितना असर पड़ेगा. 

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गंगोत्री ग्लेशियर काफी ज्यादा अनस्टेबल है

डॉ. राकेश ने बताया कि गंगोत्री ग्लेशियर (Gangotri Glacier) 30 किलोमीटर लंबा है. पिछले 87 सालों में यह 1700 मीटर पिघला है. यह पिघलाव तेज हैं. लेकिन कोई ये पूछे कि कब तक पिघल जाएगा. यह बता पाना मुश्किल है. क्योंकि किसी भी ग्लेशियर के पिघलने के पीछे कई वजहें हो सकती है. जैसे- जलवायु परिवर्तन, कम बर्फबारी, बढ़ता तापमान, लगातार बारिश आदि. गंगोत्री ग्लेशियर काफी ज्यादा अनस्टेबल है. कम से कम इसके मुहाने का हिस्सा तो है ही. ग्लेशियर किसी न किसी छोर से तो पिघलेगा ही. यह ग्लेशियर मुहाने से पिघल रहा है. 

गंगोत्री ग्लेशियर उत्तराखंड का सबसे बड़ा ग्लेशियर है. गौमुख भागीरथी नदी का उद्गम स्थल है. (फोटोः गेटी)

दो दर्जन ग्लेशियरों पर ही नजर रख पा रहे हैं

डॉ. राकेश ने बताया कि 17 जुलाई 2017 से लेकर 20 जुलाई 2017 तक तीन दिन लगातार बारिश होती रही. यहां के मिट्टी में बर्फीले पदार्थ मिले हुए. पर्माफ्रॉस्ट की स्थिति थी. लेकिन लगातार बारिश होने की वजह से ग्लेशियर के मुहाने और उसके आसपास का हिस्सा तेजी से पिघल गया था. डाउनस्ट्रीम में पानी का बहाव तेज हो गया था. वैसे भी बारिश में स्टेबिलिटी बेहद कम रहती है. किसी भी ग्लेशियर के पिघलने का दर बढ़ जाता है. साथ ही लैंडस्लाइड वगैरह. फिलहाल दो दर्जन ग्लेशियरों पर वैज्ञानिक नजर रख पा रहे हैं. इनमें गंगोत्री, चोराबारी, दुनागिरी, डोकरियानी और पिंडारी मुख्य है. अब हर ग्लेशियर पर स्टडी के लिए जाना संभव नहीं हो पाता. वो दुर्गम स्थानों पर होते हैं. 

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कब खत्म होगा गंगोत्री ग्लेशियर, नहीं कह सकते

जब डॉ. राकेश से यह पूछा गया कि गंगोत्री ग्लेशियर से गंगा निकलती हैं? यह ग्लेशियर कब तक खत्म हो जाएगा? इस सवाल पर उन्होंने कहा कि ये कब खत्म होगा यह बताना बहुत मुश्किल है. क्योंकि एक ग्लेशियर के पिघलने के पीछे कई वजहें होती हैं. ऐसी स्टडी करने के लिए हमारे पास कम से कम 30 साल का डेटा चाहिए. लेकिन ऐसा नहीं है. हमारे पास 10-12 साल का ही डेटा है. इसलिए फिलहाल ये बता पाना बहुत मुश्किल है कि गंगोत्री ग्लेशियर कब खत्म होगा. 

देवप्रयाग का वह स्थान जहां पर भागीरथी और अलकनंदा मिलकर गंगा नदी का निर्माण करती हैं. (फोटोः गेटी)

ग्लेशियर का पिघलना कई वजहों से होता है 

डॉ. राकेश भाम्बरी ने कहा कि अब अगर कोई ये कहे कि 87 साल में 1700 मीटर पिघल गया तो अगले कितने साल में गंगोत्री ग्लेशियर पिघल जाएगा. यह तो ठीक नहीं होगा. अभी यह ग्लेशियर सदियों तक रहेगा. लोग अलग-अलग स्टडीज़ में अलग-अलग डेटा देते हैं. उसके अलग-अलग नतीजे बताते हैं कि इतने साल में पिघल जाएगा. लेकिन वो सही हो यह जरूरी नहीं. कई अन्य तरह की स्टडीज पर अगर ध्यान दें तो गंगोत्री ग्लेशियर (Gangotri Glacier) 1935 से 1996 तक हर साल करीब 20 मीटर पिघला है. लेकिन अब यह बढ़कर 38 मीटर प्रति वर्ष हो गया है. 

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क्या 1500 साल तक ही रहेगा गंगोत्री ग्लेशियर

डॉ. राकेश ने कहा कि पिछले एक दशक में गंगोत्री 300 मीटर पिघल चुका है. अगर गंगोत्री के पिघलने की का यह दर देखें कि यह 87 साल में 1700 मीटर पिघला. यानी एक साल में 19.54 मीटर. इस हिसाब से गंगोत्री ग्लेशियर 1535 से लेकर 1500 साल में पिघल जाएगा. लेकिन यह पूरी तरह से सही नहीं हो सकता. क्योंकि हमें यह नहीं पता है कि कब कितनी बर्फबारी हो जाए. कब कितनी बारिश हो जाए. कब कितना तापमान बढ़ जाए. भविष्य में जब आगे ज्यादा सटीक डेटा मिलेंगे तब इस बारे में सही-सही बता पाना मुमकिन होगा.  

लगातार ज्यादा बारिश और कम बर्फबारी की वजह से ग्लेशियर पिघल रहे हैं. (फोटोः अनस्प्लैश)

उत्तराखंड का सबसे बड़ा ग्लेशियर है गंगोत्री

गंगोत्री उत्तराखंड के हिमालय का सबसे बड़ा ग्लेशियर है. 30 किलोमीटर लंबा. 143 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्रफल. 0.5 से 2.5 किलोमीटर की चौड़ाई. इसके एक छोर पर 3950 फीट की ऊंचाई पर गौमुख है. जहां से भागीरथी नदी निकलती है. बाद में जाकर देवप्रयाग में अलकनंदा नदी से मिलकर गंगा नदी बनाती है. राज्यसभा में एक केंद्र सरकार ने बताया था कि साल 2001 से 2016 के बीच गंगोत्री ग्लेशियर ने 0.23 वर्ग किलोमीटर का इलाका खो दिया है. यानी ग्लेशियर पिघल गया है. इसकी मुख्य वजह है बारिश और बर्फबारी में हो रहा बदलाव. इसके अलावा बढ़ता तापमान अलग है. 

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देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालय जियोलॉजी की स्टडी में इस बात का खुलासा हुआ है कि 1935 से लेकर 2022 तक गंगोत्री ग्लेशियर के मुहाने वाला हिस्सा 1700 मीटर यानी पौने दो किलोमीटर पिघल चुका है। इसकी वजह बढ़ता तापमान, कम बर्फबारी और ज्यादा बारिश है। मां गंगा को बचाने के लिए हम सब को आगे आना होगा। जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए पर्यावरण की अहमियत को समझना होगा। #Namamigange🙏 - Raja Bundela (@Rajabundelaofficial) 22 Sep 2022

बारिश और बर्फबारी का पैटर्न बदल गया है

डॉ. राकेश भाम्बरी ने कहा कि पिछले कुछ सालों से उत्तराखंड में बारिश का पैटर्न बदल गया है. ज्यादा बारिश हो रही है. मात्रा और समय तय नहीं रहता. लेकिन बर्फबारी कम हो गई है. अब बर्फबारी होगी नहीं और बारिश ज्यादा होगी तो ग्लेशियर तो पिघलेंगे ही. स्थानीय लोग भी इस बात की गवाही देते हैं कि अब बर्फबारी कम हो रही है. बारिश ज्यादा हो रही है. इसलिए ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. अगर इसी तरह का मौसम रहा तो हिमालय में मौजूद ग्लेशियर टूट कर नीचे की ओर आएंगे. फिर साल 2021 में चमोली जिले में धौलीगंगा नदी में आई आपदा जैसा नजारा देखने को मिल सकता है. 

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साल 2013 में केदारनाथ हादसा याद कीजिए. मिट्टी और बर्फ से बनी ग्लेशियल लेक यानी चोराबारी झील (Chorabari Lake) पर इतनी बारिश हुई कि वह वजन सह नहीं पाया. फट गया. इसके बाद जो तबाही मची वो आप सभी को याद होगा. अगर हिमालय के इलाकों में इसी तरह बारिश ज्यादा होती रही तो ग्लेशियर पिघल-पिघल कर या फिर टूट-टूटकर तबाही मचाते रहेंगे.  

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