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GE-F414 Engine: अब फाइटर जेट को मिलेगी Made in India इंजन की ताकत... अमेरिका से मोदी कर सकते हैं ये बड़ी डील

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे के बीच लड़ाकू विमानों के लिए GE-F414 इंजन का प्लांट भारत में लगाने की डील हो सकती है. यह इंजन अगर देश में बनने लगेगा तो इससे हमारे फाइटर जेट्स को आधुनिक इंजन मिल जाएंगे. आइए जानते हैं कि आखिरकार इस इंजन में ऐसा क्या खास है?

भारत में बनने वाले जीई इंजनों का इस्तेमाल वायु और नौसेना के फाइटर जेट्स में किया जाएगा.  भारत में बनने वाले जीई इंजनों का इस्तेमाल वायु और नौसेना के फाइटर जेट्स में किया जाएगा.
ऋचीक मिश्रा
  • नई दिल्ली,
  • 22 जून 2023,
  • अपडेटेड 1:15 PM IST

पूरी दुनिया में सिर्फ चार देश हैं, जहां पर फाइटर जेट्स के इंजन बनते हैं. ये देश हैं- अमेरिका, रूस, इंग्लैंड और फ्रांस. यानी दुनिया भर के देशों में जितने भी फाइटर जेट उड़ रहे हैं. उनमें इन्हीं देशों में बने इंजन लगे हैं. अब अगर अमेरिकी कंपनी जनरल इलेक्ट्रिक (GE) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे के बीच अपना प्लांट भारत में लगाने का डील कर लेती है, तो यह बड़ी उपलब्धि होगी. 

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जीई कंपनी अपना प्लांट या इंजन बनाने का काम हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) को लाइसेंस के तहत दे सकता है. टेक्नोलॉजी और डिजाइन शेयर कर सकता है. तकनीक सिखा सकता है. ताकि भारत में आसानी से इंजन का निर्माण हो सके. अगर ये इंजन भारत में बनने लगे तो स्वदेशी फाइटर जेट्स के लिए बेहद फायदेमंद होंगे. क्योंकि हमें इंजन खरीदने के लिए किसी के सामने हाथ नहीं फैलाना होगा. 

क्या है GE-F414 इंजन? 

अमेरिकी नौसेना अपने फाइटर जेट्स में इस इंजन का इस्तेमाल 30 सालों से कर रही है. यह जनरल इलेक्ट्रिक (GE) के फाइटर जेट इंजन सूइट का हिस्सा है. जीई एयरोस्पेस की वेबसाइट के अनुसार अब तक 1600 से ज्यादा F414 इंजन डिलीवर हो चुके हैं. ये इंजन जिन विमानों में लगे हैं, उन्होंने 50 लाख से ज्यादा घंटों की उड़ान कर रखी है. 

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ये टर्बोफैन इंजन 22000 एलबी या 98 किलोन्यूटन की ताकत पैदा करते हैं. इसमें अत्याधुनिक फुल अथॉरिटी डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक कंट्रोल (FADEC) लगा है. यानी आप डिजिटली इंजन की परफॉर्मेंस को नियंत्रित कर सकते हैं. नई तकनीकों वाले कूलिंग सिस्टम से इंजन की क्षमता और उम्र भी बढ़ जाती है. साथ ही इसके पार्ट्स भी लंबे चलते हैं. 

ये है साब ग्रिपेन फाइटर जेट, जिसमें GE-F414 इंजन लगा है. 

कहां हो रहा है इस्तेमाल? 

इस समय अमेरिका समेत 8 देश हैं जहां पर F414 इंजन का इस्तेमाल हो रहा है. ये अमेरिकी नौसेना के F/A-18E/F सुपर हॉर्नेट और EA18G ग्राउलर इलेक्ट्रॉनिक अटैक एयरक्राफ्ट में लगा है. इसके अलावा साब कंपनी के ग्रिपेन फाइटर जेट में यही इंजन लगा है. जीई का दावा है कि यह नए कोरियन प्लेटफॉर्म KF-X को भी पावर दे सकता है. 

भारत में इसका क्या फायदा होगा? 

F414 इंजन के भारत आने से वायुसेना और नौसेना के फाइटर जेट्स को ताकत मिलेगी. एलसीए तेजस-एमके2 से लेकर AMCA फाइटर जेट्स को बनाने में मदद मिलेगी. भारत के लिए F414-INS6 वर्जन तैयार किया जाएगा. जो भारत के हिसाब से बनाया गया इंजन होगा. माना जा रहा है कि यह इंजन एलसीए-तेजस एमके2 में लगाया जाएगा. अभी तेजस में जीई-404-आईएन20 इंजन लगे हैं. 

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ऐसा होगा भारतीय वायुसेना का एडवांस्ड मीडियम फाइटर एयरक्राफ्ट, जिसमें यह इंजन लगाया जा सकता है. 

नए F414 इंजन से भारतीय वायुसेना के लिए देश में बनने वाले एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (AMCA) के प्रोटोटाइप तैयार किए जा सकेंगे. यह स्वदेश में बनने वाला पांचवीं पीढ़ी का फाइटर जेट माना जा रहा है. लेकिन दिक्कत ये नहीं है. जनरल इलेक्ट्रिक को फ्रांस के साफरान एसए और इंग्लैंड की इंजन कंपनी रोल्स रॉयस से भी चुनौती मिल रही है. साफरान और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड ने मिलकर शक्ति इंजन बनाया था. जिनका इस्तेमाल एडवांस्ड लाइट हेलिकॉप्टर ध्रुव और लाइट कॉम्बैट हेलिकॉप्टर प्रचंड में किया गया है. 

F414 इंजन की डील इतनी जरूरी क्यों? 

दुनिया में सिर्फ चार ही देश हैं, जो फाइटर जेट्स का इंजन बनाते हैं. उनकी काबिलियत है. उनके पास वैसी टेक्नोलॉजी और धातु मौजूद हैं. ये देश हैं- अमेरिका, रूस, इंग्लैंड और फ्रांस. भारत इस सूची में नहीं है. भारत में स्वदेशी मुहिम के तहत क्रायोजेनिक इंजन तो बना लिया गया है, लेकिन उसका इस्तेमाल फाइटर जेट में नहीं किया जा सकता. 

डीआरडीओ ने बहुत पहले एलसीए के लिए स्वदेश में ही जीटीएक्स-37 इंजन बनाने का प्रयास किया था. 1989 के अंत में कावेरी इंजन प्रोजेक्ट को हरी झंडी मिली. 9 प्रोटोटाइप इंजन बनाए गए. 3200 से ज्यादा घंटों तक टेस्टिंग चली. एल्टीट्यूड टेस्ट और फ्लाइट टेस्ट बेड ट्रायल्स भी पूरे हो चुके हैं. लेकिन यह इंजन फाइटर जेट्स के लिए उपयुक्त नहीं पाया गया. 

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इसलिए कावेरी इंजन ठीक नहीं जेट्स के लिए

कावेरी इंजन के साथ एक दिक्कत और आई कि वह सही ऊर्जा नहीं दे पा रहा था. यह सिर्फ 70.4 किलोन्यूटन की ऊर्जा ही दे पा रहा था. जबकि टारगेट 81 किलोन्यूटन का था. 2011 में सीएजी ने एलसीए प्रोजेक्ट के लिए इस इंजन को बनाने वाली कंपनी को इस लायक नहीं माना कि वह इंजन बना सके. इसके बाद एलसीए फाइटर जेट में जीई-404 इंजन लगाए गए. 

कावेरी इंजनों का इस्तेमाल उन जगहों पर किया जाएगा, जहां पर उसके द्वारा पैदा की जा रही ऊर्जा काम आ सके. कोई भी देश अपनी इंजन बनाने की तकनीक भारत से शेयर नहीं करना चाहता, इसलिए भारत सरकार चाहती है कि ऐसे इंजनों का निर्माण भारत में ही हो. ताकि उसका फायदा देश की सेनाओं को भी मिले. 

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