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कुमाऊं इलाके पर मंडरा रहा बड़ा खतरा, ग्लेशियरों के आसपास बनीं 77 झीलें

उत्तराखंड के कुमाऊं इलाके में इन दिनों भयानक खतरा है. बर्फ से ढंके ऊपरी इलाकों में कई सारी ग्लेशियल झीलें बन चुकी हैं. अगर तापमान बढ़ने पर ये टूटती है तो निचले इलाके की बड़ी आबादी को केदारनाथ या चमोली जैसे हादसे का सामना करना पड़ सकता है. आइए जानते हैं कि किस जगह कितनी झीलें बनी हैं.

फरवरी 2021 में चमोली जिले में आई फ्लैश फ्लड की आपदा ग्लेशियल झील के टूटने के बाद हुई थी. फरवरी 2021 में चमोली जिले में आई फ्लैश फ्लड की आपदा ग्लेशियल झील के टूटने के बाद हुई थी.
लीला सिंह बिष्ट
  • नैनीताल,
  • 02 मार्च 2023,
  • अपडेटेड 5:04 PM IST

उत्तराखंड के कुमाऊं इलाके में एक बड़ा खतरा मंडरा रहा है. ऊंचाई वाले इलाकों में मौजूद ग्लेशियरों के आसपास ग्लेशियल झीलें (Glacial Lakes) बनी हुई हैं. अगर गर्मी ज्यादा पड़ी और ये ग्लेशियल लेक्स की दीवारें टूटी तो बड़ी आपदा आ सकती है. ठीक वैसी ही जैसे केदारनाथ और चमोली में आई थी. 

कुमाऊं यूनिवर्सिटी के भूगोल विभाग के शोधार्थी डॉ. डीएस परिहार ने जीआईएस रिमोट सेंसिंग एवं सैटेलाइट डेटा से ग्लेशियरों की स्टडी की. उनकी स्टडी में इस बात का खुलासा हुआ है कि ग्लेशियरों में और उनके आसपास 50 मीटर से भी अधिक व्यास की कई ग्लेशियर झीलें बन चुकी हैं. 

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भूकंपीय गतिविधियों या ज्यादा गर्म तापमान की वजह से इन झीलों की दीवारें टूट सकती हैं. इनसे पैदा होने वाली बाढ़ को ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) कहते हैं. अगर ये फटती हैं तो निचले इलाकों में मौजूद शहरों, कस्बों और गांवों में भारी तबाही आ सकती है. कुमाऊं के निचले इलाकों में यह खतरा बरकरार है.  

आप इस सैटेलाइट तस्वीर में जो हल्के हरे रंग के हिस्से देख रहे हैं वो असल में ग्लेशियल लेक्स हैं. 

कुमाऊं के ऊपरी इलाकों में ग्लेशियरों के आसपास 77 झीलें बनीं

ग्लेशियरों के आसपास कुल 77 झीले हैं. इनका व्यास 50 मीटर से अधिक है. इसमें 36 सबसे ज्यादा झीलें मिलम ग्लेशियर, 25 झीले रालम ग्लेशियर, 7 झीलें गोखां ग्लेशियर, 6 झीलें मार्तोली ग्लेशियर और 3 झीलें लवां ग्लेशियर के आसपास मौजूद हैं. नई झीलें अब भी बनती जा रही हैं. सबसे बड़ी झील गोखां ग्लेशियर पर है. जिसका व्यास 2.78 किलोमीटर है. स्टडी में सलाह दी गई है कि ग्लेशियरों से लगे इलाकों में बड़ी घटना ना हो इसके लिए विस्थापन समेत अन्य इंतजाम समय रहते करने होंगे. 

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सबसे बड़ी ग्लेशियल झील से इन इलाकों में आ सकती है आपदा

2.78 किलोमीटर व्यास वाली सबसे बड़ी ग्लेशियल झील गोखां ग्लेशियर पर मौजूद है. इसके नीचे गोरी गंगा घाटी क्षेत्र है. अगर यहां गोखां ग्लेशियर पर मौजूद बड़ी झील टूटती है, तो तोली, लुमती, डोबड़ी, बरम, साना, भदेली, दानी, बगड़, सेरा, रोपाड़, सेराघाट, गीचाबगड़, बंगापानी, देवीबगड़, उमड़गाड़, घट्टाबगड़, मदकोट, तल्ला मोरी जैसे इलाकों में फ्लैश फ्लड का खतरा है. 

ये है गोंखा ग्लेशियर के पास बनी सबसे बड़ी ग्लेशियल झील. यह 2.78 किलोमीटर व्यास की है. 

साल में चार बार बड़ी आपदाएं आईं हैं इस इलाके में

गोरी गंगा घाटी में पिछले दस साल में यानी साल 2010 से 2020 तक चार बार डरावने फ्लैश फ्लड आए हैं. ये घटनाएं साल 2013, 2014, 2016 और 2019 में हुई थीं. इनसे दर्जनों गांव प्रभावित हुए. लोगों के पास रहने की जगह और खेती के लिए जमीन नहीं बची. 

चार गुना स्पीड से नीचे आता है ग्लेशियल झीलों का पानी

कुमाऊं यूनिवर्सिटी के सेंटर ऑफ एडवांस्ड स्टडी इन जियोलॉजी के वैज्ञानिक प्रो. बहादुर सिंह कोटलिया ने बताया कि ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट का सबसे बड़ा कारण तापमान में वृद्धि है. इनसे भारी मात्रा में पानी निकलता है. पानी को झील से बाहर निकलते ही ढलान मिल जाती है. 80 या 90 डिग्री के ढलान से आते हुए पानी की गति दो से चार गुना ज्यादा हो जाती है. पानी का ये बहाव इतनी तेजी से निकलता है कि आसपास के चीजों को बर्बाद कर देता है. जब तक ढलान मिलता रहेगा, पानी चारों तरफ बर्बादी करता रहेगा.   

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केदारनाथ-चमोली जैसे हादसे हैं इसी बात के उदाहरण
 
केदारनाथ के ऊपर जब चोराबारी ग्लेशियर में बनी झील टूटी थी, तो पानी की गति इतनी ज्यादा थी कि वह अपने आसपास सब कुछ बहा ले गया. जब तक उसको ढलान मिलता रहा वह विनाश करता रहा. फरवरी 2021 में चमोली के धौलीगंगा और अलकनंदा में GLOF से फ्लैश फ्लड आया था. जिससे रैणी और तपोवन के अलावा तपोवन-विष्णुगाड पनबिजली परियोजनाओं में काम कर रहे सैकड़ों लोगों की मौत हुई थी. 

ये है रालम ग्लेशियर जिसके आसपास भी बड़ी ग्लेशियर झीले हैं. 

मई-जून वाली गर्मी अब जनवरी-फरवरी में पड़ रही है

प्रो. कोटलिया कहते हैं हिमालय में हिमस्खलन सर्दियों में नहीं होता था जो भी हिमस्खलन होता था वह गर्मियों में होता था. उत्तराखंड के ग्लेशियरों में जमा बर्फ रिकॉर्ड तेजी से पिघल रही है. उच्च हिमालय पर्वतों में दोपहर को तापमान सामान्य से पांच डिग्री ज्यादा हो रहा है. बर्फबारी कम होने से हिमखंड पिघल रहे हैं. जो तापमान मई या जून में होता है, वो इस बार जनवरी और फरवरी की दोपहर में हो रहा है, जिस कारण आगे भी ऐसी आपदाएं हो सकती हैं. 

उत्तराखंड में आ रही आपदाएं हमारी गलतियों का नतीजा 

उत्तराखंड में लगातार आ रही प्राकृतिक आपदाएं हमारी गलतियों का नतीजा हैं. हिमालय पर्वत की श्रृंखलाए आज भी अस्थिर है. यहां भूगर्भीय बदलाव होते रहते हैं. जिससे भूकंप और भूस्खलन का खतरा बना रहता है. बिना वैज्ञानिक अध्ययन किए बांध और जलविद्युत प्रोजेक्ट बन रहे हैं. इससे यह इलाका और अस्थिर हो गया है. जलवायु में आ रहे बदलावों ने खतरों को और बढ़ा दिया है. 

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