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कश्मीर में नया खतरा बन रहे Rock Glacier, पारा चढ़ा तो केदारनाथ-चमोली-सिक्किम जैसी आपदा

झेलम बेसिन में 100 से ज्यादा रॉक ग्लेशियर. तापमान बढ़ा तो इनसे केदारनाथ-चमोली-सिक्किम जैसी आपदा आएगी. कश्मीर एक प्राकृतिक एटम बम के ऊपर बैठा है. ग्लोबल वॉर्मिंग इसे किसी भी समय फोड़ सकता है.

पीर पांजाल की ये बर्फ से ढंकी चोटियां दिखती अच्छी है लेकिन यहां खतरा भी बहुत है. (फोटोः गेटी) पीर पांजाल की ये बर्फ से ढंकी चोटियां दिखती अच्छी है लेकिन यहां खतरा भी बहुत है. (फोटोः गेटी)
आजतक साइंस डेस्क
  • नई दिल्ली,
  • 10 जनवरी 2024,
  • अपडेटेड 2:23 PM IST

कश्मीर में पड़ रही गर्मी की वजह से वहां के 100 से ज्यादा सक्रिय पर्माफ्रॉस्ट (Active Permafrost) को पिघलने का खतरा है. इन्हें रॉक ग्लेशियर (Rock Glacier) भी कहते हैं. जिनके अंदर भारी मात्रा में पानी जमा होता है. अगर तापमान ज्यादा बढ़ा तो ये पिघल कर घाटी में भारी तबाही मचा सकते हैं. सबसे ज्यादा असर झेलम नदी के बेसिन में होगा. 

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हाल ही में हुई एक स्टडी में इस बात का खुलासा हुआ है. यह स्टडी केरल के अमृता विश्व विद्यापीठम के अमृता स्कूल फॉर सस्टेनेबल फ्यूचर्स के शोधकर्ताओं ने की है. स्टडी करने वाली टीम का नेतृत्व रेम्या एस. एन ने किया है. जो यहां असिस्टेंट प्रोफेसर भी हैं. 

DTE में छपी रिपोर्ट के मुताबिक रेम्या की स्टडी में पता चला कि 100 से ज्यादा रॉक ग्लेशियर पर रिज बन गए हैं. उनके हिस्से फूले हुए हैं. ये बताता है कि पर्माफ्रॉस्ट अब पिघलने लगा है. अपनी जगह से हिलने लगा है. अगर यह इलाका और गर्म होता है तो झेलम बेसिन में भारी तबाही आ सकती है. 

सबसे बड़ा खतरा होगा केदारनाथ-सिक्किम जैसी आपदा 

रेम्या ने बताया कि जिस तरह से ग्लेशियर पिघल रहे हैं. अब वह रॉक ग्लेशियर में बदलते जा रहे हैं. इससे चिरसार लेक और ब्रमसार लेक के पास का इलाका ज्यादा रिस्की हो गया है. यहां पर केदारनाथ, चमोली या सिक्किम जैसे ग्लेशियल लेकर आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) जैसे हादसे हो सकते हैं. चिरसार लेक रॉक ग्लेशियर के कोने पर बना है. 

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ये दोनों लेक एक ग्लेशियर से पानी पाते हैं. अगर इनके आसपास के पर्मफ्रॉस्ट पिघला तो निचले इलाके में तेजी से जलजला आएगा. ऊपर से भारी मात्रा में पानी पहते हुए घाटी की तरफ जाएगा, जहां निचले इलाकों में रहने वाले लोगों को बड़ी आपदा का सामना करना होगा. यहां पर 12 डिग्री के स्लोप से लेकर 25 से 65 डिग्री तक के स्लोप हैं. यानी आपदा की तीव्रता बहुत भयानक होगी. 

रॉक ग्लेशियर के अंदर जमा होता है बहुत सारा पानी

पर्माफ्रॉस्ट असल में जमीन की वो परतें होती हैं, जो कम से कम दो साल से जमी हुई हों. आमतौर पर इनकी खबरें ग्रीनलैंड, अलास्का और साइबेरिया से आती हैं. वहां ये ज्यादा पाए जाते हैं. लेकिन हिमालय के रॉक ग्लेशियर्स के बारे में जानकारी कम पता है. दुनिया के कुछ पहाड़ी इलाकों में जलवायु परिवर्तन के हिसाब से रॉक ग्लेशियर काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं. क्योंकि इनके अंदर भारी मात्रा में जमी हुई बर्फ और पानी होता है. 

देश-विदेश के बड़े वैज्ञानिक संस्थान भी स्टडी मे शामिल

रेम्या का स्टडी अमेरिकन जियोफिजिकल यूनियन के अर्थ एंड स्पेस साइंस जर्नल में प्रकाशित हुई है. इस स्टडी में जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, IIT Bombay, मोनाश रिसर्च एकेडमी, नॉर्थथ्रंबिया यूनिवर्सिटी, ISRO और IISc बेंगलुरू के वैज्ञानिक भी शामिल हैं. 

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कहां और कैसे बनते हैं रॉक ग्लेशियर? 

पहाड़ों पर रॉक ग्लेशियर तब बनते हैं जब पर्माफ्रॉस्ट, पत्थर और बर्फ एकसाथ जम जाते हैं. सामान्य प्रक्रिया के मुताबिक पहले से मौजूद ग्लेशियर से पत्थर और मिट्टी का कचरा आकर मिल जाए. जैसे-जैसे यह ग्लेशियर पिघलेगा ये पथरीली मिट्टी और बर्फ रॉक ग्लेशियर में बदल जाएंगे. पिछले पांच दशकों में धरती पर यह प्रक्रिया बहुत तेजी से हुई है. वजह है ग्लोबल वॉर्मिंग. 

कैसे दिखते हैं रॉक ग्लेशियर?

देखने में ये किसी घास के मैदान या सामान्य मैदान की तरह ही दिखाई देते हैं. कई बार इनके ऊपर लोग घर वगैरह भी बना लेते हैं. या इनके ऊपर छोटे-मोटे जंगल भी पनप जाते हैं. लेकिन जब इनका जियोमॉर्फोलॉजिकल व्यू देखा जाता है तब पता चलता है कि ये रॉक ग्लेशियर है. 

50 वर्ग km से ज्यादा इलाके में 207 रॉक ग्लेशियर

रेम्या कहती हैं कि हिमालय पर मौजूद रॉक ग्लेशियरों के बारे में कम जानकारी है. अभी इनके बारे में और स्टडी होनी चाहिए. ताकि पूरे हिमालय बेल्ट में कहां-कहां इस तरह का खतरा आ सकता है. इसकी जानकारी मिलती रहे. रेम्या और उनकी टीम ने सैटेलाइट तस्वीरों के जरिए यह स्टडी की. फिर ग्राउंड पर जाकर स्टडी की. उसके बाद पर्माफ्रॉस्ट जोनोशन मैप बनाया. 50 वर्ग किलोमीटर से ज्यादा के इलाके में उन्होंने 207 रॉक ग्लेशियर खोजे. 

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कश्मीर घाटी खतरे की कगार पर खड़ी

रेम्या ने बताया कि ये रॉक ग्लेशियर सक्रिय हैं. या सक्रिय होने वाले हैं. साल 2022 में इंडियन जर्नल ऑफ जियोसाइंसेस में रिपोर्ट छपी थी कि कश्मीर घाटी में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. यह दक्षिण-पश्चिम इलाके के लिए था. लेकिन यहां पर ग्लेशियर का रॉक ग्लेशियर में बदलना किसी बड़े खतरे को बुला रहा है. ये किसी भी जगह पर ग्लेशियर के पिघलने का आखिरी चरण माना जाता है. यानी झेलम बेसिन में बड़ी आपदा किसी भी समय आ सकती है. 

पर्माफ्रॉस्ट पिघलने के नुकसान सबसे बड़ा उदाहरण

जिस तरह से दुनियाभर में गर्मी बढ़ रही है, उस हिसाब से ऐसे पर्माफ्रॉस्ट पिघल रहे हैं. इनकी वजह से रॉक ग्लेशियरों से टूटकर, पिघल कर नीचे की तरफ आने का खतरा बढ़ता जा रहा है. क्यूबेक का नुनाविक और उसके आसपास इलाका ज्यादातर पर्माफ्रॉस्ट मैदानों पर ही बसा था. लेकिन पिछले एक दशक में अंदर की बर्फ पिघलने लगी. जिससे लैंडस्लाइड, मडस्लाइड और अन्य खतरे पैदा होते जा रहे हैं. ऐसी आशंका है कि कुछ सालों में यहां लोग रहना छोड़ दें. 

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