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ISRO का भविष्यः हैक न होने वाला संचार, खुद को खत्म करने वाले रॉकेट और सैटेलाइट!

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation - ISRO) भविष्य की तकनीकों पर काम कर रही है. वह खुद से खत्म होने वाले रॉकेट्स और सैटेलाइट को बनाने के तरीके खोज रही है. हैक न हो सकने वाली संचार प्रणाली विकसित करने की योजना बना रही है. ताकि अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) और रूसी स्पेस एजेंसी रॉसकॉसमॉस (ROSCOSMOS) से प्रतिस्पर्धा कर सके.

ISRO के पास सबसे ज्यादा वजन लेकर उड़ने वाला रॉकेट PSLV-MKIII. (फोटोः ISRO) ISRO के पास सबसे ज्यादा वजन लेकर उड़ने वाला रॉकेट PSLV-MKIII. (फोटोः ISRO)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 24 नवंबर 2021,
  • अपडेटेड 11:05 AM IST
  • DTDI-Technology Conclave-2021 में बोले इसरो चीफ डॉ. सिवन.
  • इसरो के सेंटर्स और अंतरिक्ष विभाग के केंद्र मिलकर बना रही हैं ऐसी टेक्नोलॉजी.
  • सिवन का दावा- इसरो की प्रतिस्पर्धा अंतरराष्ट्रीय स्पेस एजेंसियों के साथ.

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation - ISRO) भविष्य की तकनीकों पर काम कर रही है. वह खुद से खत्म होने वाले रॉकेट्स और सैटेलाइट को बनाने के तरीके खोज रही है. हैक न हो सकने वाली संचार प्रणाली विकसित करने की योजना बना रही है. ताकि अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) और रूसी स्पेस एजेंसी रॉसकॉसमॉस (ROSCOSMOS) से प्रतिस्पर्धा कर सके. लेकिन इसरो से ज्यादा प्रतिस्पर्धा तो चीन की स्पेस एजेंसी चाइना नेशनल स्पेस एजेंसी (CNSA) दे रही हैं. 

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ISRO के चेयरमैन डॉ. के. सिवन ने DTDI-Technology Conclave-2021 समिट में इन चीजों की जानकारी दी. उन्होंने कहा कि इसरो स्पेस सेक्टर में नई तकनीकों की खोज और उन्हें लागू करने में लगा है. उन्होंने कई तरह की नई तकनीकों का जिक्र किया. जैसे- क्वांटम आधारित सैटेलाइट. इसरो अभी यह सैटेलाइट बनाएगा, जबकि अमेरिका ने हाल ही में ऐसे एक सैटेलाइट का प्रयोग किया है. क्वांटम राडार, सेल्फ ईंटिंग रॉकेट, खुद से खत्म होने वाले सैटेलाइट, खुद से ठीक होने वाली वस्तुएं, ह्यूमेनॉयड रोबोट, अंतरिक्ष आधारित सोलर पावर, इंटेलिजेंट सैटेलाइट, स्पेस व्हीकल्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित स्पेस एप्लीकेशन आदि. 

ISRO के चंद्रयान-2 का विक्रम लैंडर की चांद पर हुई थी हार्ड लैंडिंग. तब से अब तक न उसका कोई पता, न कोई संदेश. (फोटोः ISRO)

भारत के पास अभी तक रीयूजेबल रॉकेट ही नहीं, खुद को खाने वाले रॉकेट में वक्त लगेगा

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इसरो बात करता है स्पेस व्हीकल्स का जो नासा, रूसी स्पेस एजेंसी और चीन के पास पहले से ही हैं. ह्यूमेनॉयड रोबोट को गगनयान (Gaganyaan) में भेजने की योजना है, अमेरिका ये काम पहले ही कर चुका है. बात रही सेल्फि ईंटिंग रॉकेट की तो ये इतनी जल्दी संभव ही नहीं है, क्योंकि इससे पहले रीयूजेबल रॉकेट (Reusable Rocket) की तकनीक तो पहले भारत में आए. ये बात सच है कि अंतरिक्ष में रॉकेट और सैटेलाइट के विस्फोट से कचरा बनता है जिससे दुनियाभर के सैटेलाइट्स को दिक्कत होती है. साथ ही अंतरिक्ष स्टेशन को खतरा पैदा हो जाता है. रूस की एक सैटेलाइट को फोड़ने के बाद हाल ही में यह खतरा सामने आया था. 

लेजर से संदेश भेजने का परीक्षण हुआ था सफल, सैटेलाइट बनाने में लगेगा समय

ISRO अंतरिक्ष के कचरे को कम करने के लिए काम कर रही है. वो ऐसी तकनीक पर काम कर रही है कि जिसमें बेकार सैटेलाइट काम खत्म होने के बाद खुद को भाप बना दें. रॉकेट बूस्टर्स वापस धरती पर आ जाएं. बात रही क्वांटम संचार प्रणाली की तो इसरो ने इस साल 300 मीटर की दूरी तक लेजर लाइट के जरिए संदेश भेजने का सफल परीक्षण किया था. इसके बाद इस तकनीक को सैटेलाइट में फिट किया जाएगा. इतना ताकतवर लेजर लाइट यंत्र बनाया जाएगा जो धरती की कक्षा से जमीन तक लेजर फेंक सके. इसमें काफी समय लगने वाला है. चीन के पास पहले से ही मिसियस (Micius) नाम का सैटेलाइट है, जो इस तकनीक पर काम करता है. उसने लैब में 404 किलोमीटर तक संदेश भेजने में सफलता पाई थी. 

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ISRO चीफ सिवन दावा करते हैं कि जिन तकनीकों की बात की जा रही है, उनपर अंतरिक्ष विभाग और इसरो के विभिन्न सेंटर्स पर काम चल रहा है. अगर सभी सेंटर्स सामंजस्य के साथ काम करते रहेंगे तो बहुत जल्द हम इन तकनीकों को प्रयोगशालाओं से बाहर निकालकर सामान्य उपयोग में ला सकेंगे. अगर इस काम में सरकारी-निजी और अंतरराष्ट्रीय समझौतो हो तो ये काम ज्यादा आसानी से और जल्दी हो सकते हैं. 

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