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Omicron का एक साल पूरा, तेज संक्रमण का डर अब भी बाकी

26 नवंबर 2021 की तारीख. WHO ने कोरोनावायरस के सबसे घातक वैरिएंट की घोषणा की. इसे ओमिक्रॉन (Omicron) नाम दिया गया था. दक्षिण अफ्रीका में खोजा गया था. एक साल हो चुके हैं लेकिन वैज्ञानिक ये पता नहीं कर पाए कि आखिर यह वैरिएंट इतनी तेजी से फैला कैसे? सबसे खतरनाक वैरिएंट कैसे बन गया?

कोरोनावायरस संक्रमण के दौरान पूरी दुनिया ने मास्क लगाना सीखा. बचने के कई सही तरीके भी. (फोटोः एपी) कोरोनावायरस संक्रमण के दौरान पूरी दुनिया ने मास्क लगाना सीखा. बचने के कई सही तरीके भी. (फोटोः एपी)
aajtak.in
  • न्यूयॉर्क,
  • 29 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 6:27 PM IST

ओमिक्रॉन (Omicron). दुनिया के किसी फेमस शब्द से ज्यादा जाना-पहचाना. डर का दूसरा नाम. कोरोनावायरस का सबसे घातक वैरिएंट. इसे दुनिया में साल भर हो चुका है. अब तक यह नहीं पता चला कि इतनी तेजी से ये फैला कैसे? यह लगातार म्यूटेट कर रहा था. एक अकेली वंशावली (Lineage) पर चलने के बजाय इस वायरस ने खुद सैकड़ों वंशों में बांट दिया. 

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ओमिक्रॉन के वैरिएंट्स इतने ज्यादा हो गए कि हमारा इम्यून सिस्टम भी नहीं समझ पाया. संक्रमण बढ़ता चला गया. इनके कई नाम भी दिए गए, जैसे- XBB, BQ.1.1 और CH.1. सिएटल स्थित फ्रेड हचिंसन कैंसर सेंटर की वायरोलॉजिस्ट जेसी ब्लूम कहती हैं, इतने वैरिएंट्स हो गए थे समझ नहीं आ रहा था कि कौन सा क्या है? मुश्किल से पहचान होती थी. जब तक एक वैरिएंट की स्टडी करें, तब तक ये दूसरा वैरिएंट बना देता था. 

पिछले साल नवंबर में जब ओमिक्रॉन के बारे में पता चला. यह दुनिया में आया. तो इसने खुद ही 50 से ज्यादा म्यूटेशन कर रखे थे. यह कोरोनावायरस के अन्य वैरिएंट्स से एकदम अलग था. कई शोधकर्ताओं का कहना है कि यह किसी एक इंसान के शरीर में विकसित हुआ था. उस इंसान का इम्यून सिस्टम बेहद कमजोर था. उस व्यक्ति को कोविड संक्रमण कई महीनों तक रहा होगा. इसलिए ओमिक्रॉन बेहद ताकतवर बनकर सामने आया. 

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कुछ ही हफ्तों में पूरी दुनिया आई थी इसकी चपेट में

हालांकि, पिछले महीने यानी अक्टूबर 2022 में मिनिसोटा यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने बताया कि कोरोनावायरस के शुरुआती वैरिएंट्स ने चूहे को संक्रमित किया था. यानी ओमिक्रॉन क्या चूहे में पनपा. वहां से फिर इंसानों में आया. खैर ये वैरिएंट कहीं से भी आया हो, सिर्फ कुछ हफ्तों में ही इसने पूरी दुनिया में अपना जाल बिछा लिया. म्यूटेशन करता चला गया. कुछ म्यूटेशन तो ऐसे थे जो आसानी से कोशिकाओं तक चले जाते थे. वह भी बिना इम्यूनिटी से लड़े. 

लगातार हो रहे म्यूटेशन दे रहे थे इम्यूनिटी को धोखा

वैक्सीन से मिलने वाली एंटीबॉडी को भी ओमिक्रॉन के म्यूटेशन धोखा दे रहे थे. आमतौर पर एंटीबॉडीज कोरोना वायस के स्पाइक यानी बाहरी कंटीले परत से चिपकर उसे कोशिका में जाने से रोकते हैं. लेकिन ओमिक्रॉन ने म्यूटेशन करके स्पाइक प्रोटीन में ही बदलाव कर दिया था. जिससे एंटीबॉडी उससे चिपक नहीं पा रहे थे. लोग ज्यादा संक्रमित हो रहे थे. इसके बाद ओमिक्रॉन तेजी से फैलता चला गया. लगातार म्यूटेशन करता रहा. नए-नए वैरिएंट्स आते रहे. 

Omicron पर एक्सपेरीमेंट कर हैरान थे साइंटिस्ट

पहला वर्जन आया BA.1, फिर BA.2 ... इसके बाद BA.5. ये तीनों ही ओमिक्रॉन के ऐसे म्यूटेशन थे, जो कई एंटीबॉडीज को धोखा दे देते थे. अभी इस साल फरवरी में न्यूयॉर्क स्थित रॉकफेलर यूनिवर्सिटी के वायरोलॉजिस्ट थियोडोरा हाट्जीओनू और उनकी टीम ने कहा कि ओमिक्रॉन इवोल्यूशनरी विस्फोट के लिए ही आया है. थियोडोरा और उनकी टीम ने ओमिक्रॉन को 40 अलग-अलग एंटीबॉडीज से मिलाया. उसके बाद जो हुआ वो हैरान करने वाला था.

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नहीं हो रहा था किसी भी एंटीबॉडी का सही असर

थियोडोरा और उनकी टीम ने देखा कि इसके बाद ओमिक्रॉन ने खुद में इतने म्यूटेशन किए कि वह इन चालीसों एंटीबॉडीज को धोखा देने की क्षमता विकसित कर ली. इनके ऊपर प्राकृतिक या वैक्सीन से पैदा एंटीबॉडीज का असर हो ही नहीं रहा था. थियोडोरा ने कहा कि हमने जो देखा उससे डर गए थे. वह चिंताजनक था. कई महीनों तक ओमिक्रॉन पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय बना हुआ था. 

ओमिक्रॉन के पास सिवाय म्यूटेशन के चारा नहीं था

फिलाडेल्फिया स्थित टेंपल यूनिवर्सिटी के वायरोलॉजिस्ट सर्गेई पॉन्ड ने कहा कि कोरोना काल के पहले साल दुनिया के ज्यादातर लोगों में कोरोनावायरस के खिलाफ एंटीबॉडीज नहीं थे. लेकिन ओमिक्रॉन के समय कई लोगों की इम्यूनिटी बन चुकी थी. एंटीबॉडीज बन चुके थे. ओमिक्रॉन के पास सिवाय म्यूटेशन के कोई चारा नहीं था. इसलिए यह लगातार तेजी से अपना स्वरूप बदल रहा था. लोग ज्यादा संक्रमित हो रहे थे. 

180 सब-वैरिएंट्स बन गए थे ओमिक्रॉन के

पूरी दुनिया में ओमिक्रॉन (Omicron) के 180 सब-वैरिएंट्स बने थे. इन सभी सब-वैरिएंट्स में अपने-अपने म्यूटेशन हुए थे. ये वायरस उसी प्रक्रिया से गुजर रहे हैं, जिसे 160 साल पहले चार्ल्स डार्विन ने समझाया था. उन्होंने इसे कन्वर्जेंस (Convergence) नाम दिया था. यानी एक वैरिएंट दूसरे के साथ म्यूटेट करके नया सब-वैरिएंट बना रहा था. इस समय सब-वैरिएंट्स के बीच संक्रमण फैलाने और म्यूटेशन की प्रतियोगिता चल रही है. 

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अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग वैरिएंट्स का असर

अमेरिका में BA.5 सिर्फ 19 फीसदी रहा, जबकि, BQ.1 28 फीसदी और BQ.1.1 बढ़कर 29 फीसदी फैला. बाकी में ओमिक्रॉन के 13 और वैरिएंट फैल रहे हैं. सिंगापुर में XBB तेजी से फैला. यह BA.2 के दो सब-वैरिएंट का हाइब्रिड है. लेकिन यह वैरिएंट दुनिया के अन्य हिस्सों में नहीं फैल पाया. इन वैरिएंट्स ने कोरोनावायरस के खिलाफ बने मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज के लिए खतरा पैदा कर दिया. 

भविष्य पर भी संकट के बादल...

कई एंटीबॉडीज की स्टडी करने के बाद वैज्ञानिकों ने Evusheld नाम का फॉर्मूलेशन तैयार किया. जो ओमिक्रॉन के सब-वैरिएंट्स से लोगों को बचा रहा है. लेकिन जिस गति से सब-वैरिएंट्स फैल रहे हैं. यह इलाज का तरीका भी ज्यादा दिन तक नहीं चल पाएगा. खुशी की बात ये है कि ओमिक्रॉन के सब-वैरिएंट्स उतने खतरनाक साबित नहीं हो रहे हैं, जितना की वो खुद था. 

ओमिक्रॉन के सब-वैरिएंट्स किसी भी वैक्सीन को पूरी तरह से धोखा नहीं दे सकते. न ही उसके सब-वैरिएंट्स. वो कमजोर होते हैं. लेकिन ओमिक्रॉन के कन्वर्जेंस पर लगातार स्टडी जारी है. ताकि इस वायरस के इवोल्यूशन की कहानी को समझा जा सके. 

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