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24 दिन के लिए गहरी नींद में चला गया शख्स, बिना कुछ खाए-पिए कैसे रहा जिंदा, हैरान कर देगी ये कहानी

क्या हो जब कोई इंसान 1, 2, 5, या 10 दिन नहीं, बल्कि 24 दिन तक गहरी नींद में सोता रहे. वो भी बिना कुछ खाए-पीए. यकीकन उसका बचना मुश्किल है. लेकिन आज हम आपको ऐसे शख्स की कहानी बताने जा रहे हैं, जो कि 24 दिन तक बिना खाए-पीए गहरी नींद में रहा और वो भी जिंदा. वो कैसे जिंदा रहा, इसकी वजह जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे. चलिए जानते हैं इस दिलचस्प कहानी के बारे में...

मित्सुटाका उचीकोशी (Photo- Facebook/Jacqui Taylor) मित्सुटाका उचीकोशी (Photo- Facebook/Jacqui Taylor)
तन्वी गुप्ता
  • नई दिल्ली,
  • 31 अक्टूबर 2022,
  • अपडेटेड 7:14 PM IST

हमारी आधुनिक दुनिया ने लगभग हर क्षेत्र में तेज गति से उन्नति की है. इतनी कि जितना कभी इंसान ने सोचा भी नहीं था. बावजूद इसके आज भी काफी चीजें ऐसी भी हैं जिसके बारे में हम नहीं जानते. आज की कहानी भी कुछ ऐसी ही घटना के बारे में है जो कि आज भी डॉक्टर्स और वैज्ञानिकों की समझ से भी परे है.

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यह कहानी है जापान के सिविल सर्वेंट मित्सुटाका उचीकोशी (Mitsutaka Uchikoshi) की. उनके साथ साल 2006 में कुछ ऐसी घटना हुई जो कि साइंस की दुनिया में एक अजूबे से कम नहीं है. 7 अक्टूबर 2006 के दिन 35 साल के मित्सुटाका अपने कुछ दोस्तों के साथ जापान के प्रसिद्ध ट्रैक माउंट रोको (Mount Rocco) की यात्रा पर निकले.

ट्रैक से पैदल लौटने का किया फैसला
माउंट रोको के अद्भुद नजारे का लुत्फ उठाने के बाद सभी दोस्त वापस ट्रैक से लौटने लगे. बता दें, माउंट रोको तक जाने के लिए केबल कार से भी लोग जाते हैं. लेकिन ट्रैकिंग करने के शौकीन लोग इस यात्रा को पैदल ही करना पसंद करते हैं. मित्सुटाका भी ट्रैकिंग करने के शौकीन थे. इसलिए उन्होंने दोस्तों के साथ केबल कार से नहीं, बल्कि पैदल वहां से लौटने का फैसला किया.

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चलते-चलते भटक गए रास्ता
लेकिन मित्सुटाका को नहीं पता था कि उनका यह फैसला उनकी जिंदगी पर एक गहरा असर छोड़कर जाने वाला है. वह दोस्तों को अलविदा कहकर ट्रैक से नीचे उतरने लगे. वह चलते गए और थोड़ी ही देर बाद उन्हें अहसास हुआ कि वह रास्ता भटक चुके हैं. आमतौर पर जब भी जंगल में कोई रास्ता भटक जाता है तो ऐसी स्थिति से बाहर निकलने का सबसे सही तरीका यही होता है कि वह किसी नदी को ढूंढे. फिर उसके बहाव की दिशा में आगे बढ़े. इससे आगे किसी बड़ी नदी या बस्ती मिलने की संभावना काफी ज्यादा होती है.

पैर फिसलने से टूटी कूल्हे की हड्डी
मित्सुटाका के दिमाग में भी यही आईडिया आया और उन्होंने नदी की तलाश करना शुरू कर दिया. उन्होंने जल्द ही नदी ढूंढ निकाली और उसके बहाव की दिशा में बढ़ने लगे. लेकिन कुछ ही दूरी तय करने के बाद उनका पांव फिसला और वह पत्थर से टकरा गए. इस कारण उनके कूल्हे की हड्डी टूट गई. मित्सुटाका ने तब भी हार नहीं मानी. रात हो चुकी थी और ठंड भी काफी बढ़ रही थी. बावजूद इसके वह आगे बढ़ते गए. उनके पास बस थोड़ा सा पानी और एक सॉस का पैकेट था.

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Photo- Getty Images

24 दिन बाद खुली नींद
इस थोड़े से सामान के साथ ही मित्सुटाका ने अपनी यात्रा को जारी रखा. अगला दिन आ गया. तब भी मित्सुटाका धीरे-धीरे आगे बढ़ते गए. लेकिन जैसे ही धूप थोड़ी बढ़ी तो उन्हें नींद आने लगी. उन्होंने सोचा कि क्यों न यहां थोड़ा आराम कर लिया जाए. वह एक खुले मैदान में जाकर वह वहीं गिर पड़े और सो गए. उनकी ये नींद इतनी गहरी थी कि वह 1, 2, 5 और 10 नहीं बल्कि पूरे 24 दिन तक सोए रहे. जब उनकी नींद खुली तो उन्होंने खुद को एक अस्पताल में पाया. 8 अक्टूबर 2006 के दिन मित्सुटाका सोए थे और जब उनकी आंख खुली तो वह दिन था 1 नवंबर 2006.

22 डिग्री सेल्सियस तक गिर चुका था शरीर का तापमान
दरअसल, 31 अक्टूबर 2006 के दिन एक हाइकर की नजर मित्सुटाका पर पड़ी. उनका शरीर मृत हालत में लग रहा था. लेकिन धड़कनें चल रही थीं. हाइकर ने बाकी लोगों की मदद से उन्हें कोबे सिटी अस्पताल पहुंचाया. उनके शरीर का तापमान 22 डिग्री सेल्सियस तक गिर चुका था और उनके अंदरूनी अंग लगभग काम करना बंद कर चुके थे. लेकिन इसके बावजूद मित्सुटाका जिंदा था. यह देखकर अस्पताल के डॉक्टर भी बेहद हैरान थे.

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हाइबरनेशन में चले गए थे मित्सुटाका
वह पिछले 24 दिनों से घायल अवस्था में बिना कुछ खाए-पीए, बरसात, तेज धूप और सर्द रातों के बीच निद्रा की अवस्था में थे. बावजूद इसके उनकी सांसें और धड़कनें चल रही थीं. इस घटना को लेकर डॉक्टर्स ने बताया कि मित्सुटाका की चेतना खोने के बाद भी उनकी सर्वाइवल इंस्टिंक्ट (survival instinct) जाग रही थी, जो कि उनके शरीर को मरने से बचा रही थी. मतलब मित्सुटाका का शरीर हाइबरनेशन (Hibernation) की स्थिति में चला गया था. हाइबरनेशन एक ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर का मेटाबॉलिज्म (Metabolism) बहुत धीमा हो जाता है और शरीर को जीवित रखने के लिए बेहद कम एनर्जी की जरूरत पड़ती है.

2 महीनों तक चला ट्रीटमेंट
ऐसा अक्सर पोलर बीयर (Polar Bear) और हेजहॉग्स यानी कांटेदार जंगली चूहे (Hedgehog) करते हैं. जब उनके अनुकूल मौसम नहीं होता तो वे हाइबरनेशन में चले जाते हैं. फिर एक लंबी नींद के बाद जागते हैं. लेकिन इंसानों में ऐसा पहली बार देखा गया था. मित्सुटाका का हाइबरनेशन में चले जाना वाकई एक अनोखी बात थी. इसी हाबरनेशन की स्थिति में होने की वजह से वह बिना खाए-पीए 24 दिनों तक जिंदा रहे. लगभग 2 महीने डॉक्टर्स की देखरेख में रहने के बाद मित्सुटाका फिर से एक आम जिंदगी जीने लगे.

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मेडिकल साइंस की टीम कर रही खोज
लेकिन इस केस को स्टडी करने वाले डॉक्टर्स आज भी कंफ्यूज हैं कि आखिर ऐसा कैसे हुआ. वहीं, मेडिकल साइंस की एक बड़ी टीम आज भी उस तरीके की खोज कर रही है, जिसकी मदद से मनुष्य के शरीर को हाइबरनेशन की स्थिति में डाला जा सके. अगर कभी वैज्ञानिक इसमें सफल हुए तो ये आधुनिक मेडिकल साइंस के लिए बहुत बड़ा मील का पत्थर साबित हो सकता है. क्योंकि इससे इंसानों को स्पेस में भेजना और भी ज्यादा आसान हो जाएगा.

मनुष्य के लिए कारगर साबित होगी खोज
एलियन्स, पैसेंजर और  2001- अ स्पेस ओडेसी जैसी कई फिल्मों में आपने देखा होगा कि स्पेस में यात्रा करने वाले लोगों को एक विशेष कैप्सूल के अंदर लंबे वक्त के लिए सुला दिया जाता है और एक तय समय पर उन्हें उठा दिया जाता है. लेकिन यदि सच में हम हाइबरनेशन में जाना सीख जाएंगे तो फिल्मों की यह परिकल्पना भी सच हो जाएगी. फिर स्पेस में जाने वालों को अपने साथ सालों का खाना ले जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. साथ ही यह मरीजों के उपचार में भी काम आ सकेगी. मान लीजिए किसी मरीज को किडनी ट्रांसप्लांट करवाने के लिए कोई डोनर नहीं मिल रहा है, तो इस केस में डॉक्टर्स मरीज को हाइबरनेशन में डाल सकेंगे, वो भी तब तक के लिए जब तक कि उसे कोई डोनर नहीं मिल जाता.

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मित्सुटाका ने शेयर किया एक्सपीरियंस
'द गार्जियन' की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मित्सुटाका उचीकोशी ने उनसे अपने एक्सपीरियंस को शेयर किया. मित्सुटाका ने बताया, ''रास्ता भटकने के बाद मैं एक पूरा दिन और रात चलता रहा. फिर दूसरे दिन, मैं काफी थक चुका था. धूप निकलते ही मुझे नींद आने लगी और मैं एक खुले मैदान में जाकर सो गया. वो मेरी अंतिम याद थी. इसके बाद क्या हुआ, मुझे कुछ भी याद नहीं. 1 नवंबर 2006 को जब मेरी नींद खुली तो मैं कोबे सिटी अस्पताल में था.''

 

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