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Ground Cracks Lindur Village: दरकते पहाड़, दरार और खतरे में गांव... हिमाचल में बन रहा दूसरा जोशीमठ

उत्तराखंड के जोशीमठ की तरह ही हिमाचल प्रदेश के लिंडूर गांव में दरारें देखी गई हैं. इससे पहले इस गांव में पिछले साल ऐसी ही दरारें आई थीं. तब वैज्ञानिकों ने स्टडी करके कुछ सख्त कदम उठाने के सुझाव प्रशासन को दिए थे. करीब 10 महीने बाद फिर से वही दरारें वापस आई हैं...

हिमाचल प्रदेश के लाहौल-स्पीति में लिंडूर गांव की जमीन में बड़ी-बड़ी दरारें आ गई हैं. हिमाचल प्रदेश के लाहौल-स्पीति में लिंडूर गांव की जमीन में बड़ी-बड़ी दरारें आ गई हैं.
कमलजीत संधू/ऋचीक मिश्रा
  • नई दिल्ली,
  • 08 जुलाई 2024,
  • अपडेटेड 1:18 PM IST

हिमाचल प्रदेश के लाहौल-स्पीति जिले में दूसरा जोशीमठ बन रहा है. इस जिले के लिंडूर गांव की जमीनों में दरारे आ गई हैं. इससे पहले पिछले साल अक्तूबर महीने में भी गांव के 14 में से 7 घरों में दरारें आई थीं. चार घरों को तुरंत असुरक्षित घोषित किया गया था. 

10,800 फीट की ऊंचाई पर बसे इस गांव में पिछले जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (GSI) और आईआईटी मंडी की टीम ने स्टडी भी थी. GSI ने रिपोर्ट सरकार और प्रशासन को सौंपी थी. जिसमें कहा गया था कि इस गांव को तुरंत रीलोकेट करने की जरूरत है. क्योंकि गांव के ठीक ऊपर 5 कुहलों में रिसाव होने से गांव में दरारें आ रही हैं. 

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इस गांव के साथ बहने वाले जाहलमा नाले में लगातार हो रहे भूमि कटाव की वजह से भी जमीन खिसक रही है. असल में लिंडूर गांव में दरारों की कहानी की शुरुआत होती है साल 2000 से. यह बात पिछले साल गांव के प्रतिनिधि हीरालाल ने जीएसआई के अधिकारियों को बताई थी. लेकिन साल 2000 के बाद ये बीच में कभी नहीं दिखे. 

पहले समझिए लिंडूर गांव कहां है? 

इस गूगल मैप में लिंडूर गांव, ग्लेशियर, जाहलमा नाला और भूस्खलन वाले क्षेत्रों को दिखाया गया है. (सभी फोटोः GSI)

लिंडूर गांव केलॉन्ग कस्बे से 31 किलोमीटर दूर स्टेट हाइवे 26 के पास है. लिंडूर गांव जाहलमा नाला के बाएं किनारे पर 10,800 फीट की ऊंचाई पर मौजूद है. यह नाला चंद्रभागा नदी की शाखा है. पिछली बार जीएसआई ने जो स्टडी की उसमें ज्यादातर दरारें नाला के आसपास पाई गईं. यहां लगातार  भूस्खलन के निशान दिख रहे थे. मिट्टी खिसकने के निशान थे. दरारें 11030 फीट की ऊंचाई पर भी थीं. 

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यह गांव जिस जगह पर बसा है, वह असल में एक प्राचीन मिट्टी और डेबरी का ढेर है.  लिंडूर गांव ग्रेट हिमालय रेंज के बीच में है. यहां पर 10,826 फीट से लेकर 14,763 फीट ऊंचे पहाड़ हैं. गांव उत्तर-पूर्व में ऊंचाई पर ग्लेशियर का मुंह है. जिसका पानी पिघल-पिघल कर गांव तक अलग-अलग नालों से आता है.

ग्रामीणों ने यह भी बताया था कि यही ग्लेशियर इकलौता पानी का सोर्स है. यहां पर मौजूद पत्थर वाइक्रिता समूह के पत्थर हैं. जिनमें क्वार्टटाइज, फिलाइट का मिश्रण है. जहां पर कम ढलान है, वहां पर ग्रामीण खेतीबाड़ी करते हैं. पिछले साल की स्टडी में पता चला था कि यह इलाका कभी भी बड़े भूस्खलन की चपेट में आ सकता है.  

कहां पर आई हैं दरारें...

कृषि भूमि और ढलानों पर यह दरारें ज्यादा देखी जा रही है. ये चौड़ाई, गहराई और लंबाई में हैं. पिछले साल तो कई घरों में भी दरारें आई थीं. लिंडूर गांव के पास दो ऐसी जगहों की खोज की गई, जहां से अक्सर और अप्रत्याशित तरीके से भूस्खलन होता है. इनकी दूरी गांव से मात्र 250 से 300 मीटर है. 

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गांव में पानी की सप्लाई के लिए नालियां बनाई गई हैं, जिनसे ग्लेशियर का पानी बहता है. लिंडूर गांव और उसके आसपास की मिट्टी नरम है. क्ले से मिली हुई है. यानी ज्यादा बारिश हुई तो पानी के बहाव की वजह से दरारें बढ़ सकती हैं. बड़े स्तर का खतरनाक भूस्खलन हो सकता है. जाहलमा नाले के दोनों तरफ भूस्खलन होता रहता है. 

कुछ दरारें ग्लेशियर की तरफ भी

कुछ दरारें ग्लेशियर की तरफ से गांव की तरफ आई हैं. ये दरारें जहां पर वहां स्लाइड जोन है. यानी यहां से भूस्खलन और पत्थर खिसकने की आशंका हमेशा बनी रहती है. गांव में 14 मकान, एक मॉनेस्ट्री, एक प्राइमरी स्कूल और दो सामुदायिक केंद्र थे. ज्यादातर इमारतों को स्थानीय पत्थरों और मिट्टी से बनाया गया है. 

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इन इमारतों का बेस भी 2 मीटर गहरा है.  कुछ मिट्टी के मकान 80 साल पुराने थे. जिनके गिरने का डर है. लिंडूर गांव में पिछली साल जब दरारें आई थीं, तब गांव वालों को सतर्क रहने को कहा गया था. क्योंकि दरारें कुछ सेंटीमीटर से लेकर 1.5 मीटर चौड़ाई तक के थे. इन दरारों के बनने से पेड़ों की जड़ें तक टूट गई थीं. 

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दरारों की वजह क्या भूकंप हैं... 

1900 से नवंबर 2023 तक इस इलाके में कई छोटे भूकंपों को दर्ज किया गया है. लेकिन 7 तीव्रता का एक, 5 तीव्रता के दो और 3-4 तीव्रता के 33 भूकंप आए हैं. यह गांव बेहद कमजोर मिट्टी पर बसा है. इसकी वजह से दो चीजें होती हैं. पानी के बहाव का रास्ता अंदर-अंदर बनता है. दूसरा इससे भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है. 

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जीएसआई ने अपनी स्टडी के आधार पर कहा था कि यह गांव अस्थाई ढलान पर बसा है. अगर ग्लेशियर ज्यादा पिघला, बादल फटा या तेज भूकंप के झटके आए तो यह गांव पूरी तरह से खत्म हो जाएगा. यह जिस पहाड़ पर बसा है, वह धंस कर जाहलमा नाले में जा सकता है. भविष्य में और दरारें आ सकती हैं. 

पानी का सीपेज इस इलाके को और कमजोर बना रहा है. ग्लेशियर के पिघलने पर लगातार नजर रखनी होगी. सिंचाई की सही व्यवस्था करनी होगी. अगर खतरा ज्यादा बढ़ता है तो इस गांव को रीलोकेट करना होगा. क्योंकि जब-जब ज्यादा बारिश होगी. दरारों की दिक्कत बढ़ती जाएगी. इससे गांव के धंसने का खतरा बना रहेगा. 

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