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हिमालय नहीं रहेगा हमारा रक्षक, पिघलते ग्लेशियर बनेंगे प्राकृतिक आपदाओं की वजह... माना सरकार ने

हिमालय को लेकर केंद्र सरकार ने संसद में रखी बेहद डरावनी रिपोर्ट. इसमें बताया गया है कि कितनी तेजी से ग्लेशियर पिघल रहे हैं. साथ ही किस तरह की प्राकृतिक आपदाएं आ सकती हैं. सबसे बड़ा खतरा हिमालयी राज्यों और गंगा के मैदानी इलाकों में है. जानिए क्या लिखा है संसद में पेश की गई रिपोर्ट में...

पूरे हिमालय पर 14 हजार से ज्यादा ग्लेशियर मौजूद है. अधिकतर अपना 40 फीसदी हिस्सा खो चुके हैं. (फोटोः पिक्साबे) पूरे हिमालय पर 14 हजार से ज्यादा ग्लेशियर मौजूद है. अधिकतर अपना 40 फीसदी हिस्सा खो चुके हैं. (फोटोः पिक्साबे)
ऋचीक मिश्रा
  • नई दिल्ली,
  • 30 मार्च 2023,
  • अपडेटेड 10:23 AM IST

केंद्र सरकार ने संसद में एक डरावनी रिपोर्ट पेश की है. इसमें बताया है कि हिमालय के ग्लेशियर अलग-अलग दर से पर तेजी से पिघल रहे हैं. साथ में यह भी माना कि जलवायु परिवर्तन की वजह से हिमालय की नदियां किसी भी समय प्राकृतिक आपदाएं ला सकती हैं. यानी कश्मीर से लेकर उत्तर-पूर्वी राज्यों तक हिमालय से आफत आ सकती है. 

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सरकार की तरफ से दी गई रिपोर्ट पर संसद की स्टैंडिंग कमेटी जांच-पड़ताल कर रही थी. वह यह देख रही है कि देश में ग्लेशियरों का प्रबंधन कैसे हो रहा है. अचानक से बाढ़ लाने वाली ग्लेशियल लेक आउटबर्स्टस को लेकिन क्या तैयारी है. खासतौर से हिमालय के इलाको में. यह रिपोर्ट 29 मार्च 2023 को लोकसभा में पेश किया गया है. 

हिमालय के कई ऊंचे पहाड़ों के आसपास मौजूद ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. (फोटोः गेटी)

जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय ने बताया कि जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (GSI) ग्लेशियरों के पिघलने की स्टडी कर रही है. लगातार ग्लेशियरों पर नजर रखी जा रही है. 9 बड़े ग्लेशियरों का अध्ययन हो रहा है. जबकि 76 ग्लेशियरों के बढ़ने या घटने पर भी नजर रखी जा रही है. अलग-अलग इलाकों में ग्लेशियर तेजी से विभिन्न दरों से पिघल रहे या सिकुड़ रहे हैं ग्लेशियर. 

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नदियों का फ्लो तो कम होगा ही, आपदाएं आएंगी

सरकार ने माना है कि ग्लेशियरों के पिघलने से नदियों के बहाव में अंतर तो आएगा ही. साथ ही कई तरह की आपदाएं आएंगी. जैसे ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF), ग्लेशियर एवलांच, हिमस्खलन आदि. जैसे केदारनाथ और चमोली में हुए हादसे थे. इसकी वजह से नदियां और ग्लेशियर अगर हिमालय से खत्म हो गए. तो पहाड़ों पर पेड़ों की नस्लों और फैलाव पर असर पड़ेगा. साथ ही उन पौधों का व्यवहार बदलेगा जो पानी की कमी से जूझ रहे हैं. 

हिमालय के कई बड़े ग्लेशियर तो अपना 40 फीसदी हिस्सा खो चुके हैं. 

पड़ोसी देशों की स्थिति के बारे में जानकारी की कमी

देश के पास पड़ोसी देशों में मौजूद ग्लेशियरों की कोई जानकारी नहीं है. न तो कोई ऐसा सिस्टम है न ही कभी इसे लेकर संपर्क किया गया है. न पड़ोसी देशों में कोई समझौता है. ताकि ग्लेशियर संबंधी डेटा मिल सके. या फिर बड़े पैमाने पर मॉडलिंग या स्टडी की जाए. ताकि लोगों को ऐसे किसी खतरे से बचाया जा सके. फिलहाल भारत, पाकिस्तान, और चीन को चाहिए कि ग्लेशियरों को लेकर डेटा साझा करें. ताकि 

हिमालय पर लगातार कम हो रहे हैं Cold Days

लगातार हो रहे जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान की वजह से हिमालय पर  Cold Days कैसे घटते जा रहे हैं. रिपोर्ट में बताया गया है कि हिमालय का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है. कोल्ड डेज़ और कोल्ड नाइट्स की गणना के लिए जम्मू और कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में 16 स्टेशन हैं. लगातार गर्म दिन बढ़ रहे हैं. जबकि ठंडे दिन कम होते जा रहे हैं. पिछले 30 वर्षों में ठंडे दिनों में 2 से 6 फीसदी की कमी आई है. 

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गंगा का सोर्स यानी गौमुख ग्लेशियर भी पौने दो किलोमीटर पीछे खिसक चुका है. (फोटोः गेटी)

कुछ दिन पहले ही संयुक्त राष्ट्र ने भी चेताया था

एक हफ्ते पहले भी संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंतोनियो गुटेरेस ने चेतावनी दी है कि हिमालय की प्रमुख नदियां सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र का जलस्तर बहुत तेजी से कम होने वाला है. साल 2050 तक इसकी वजह से 170 से 240 करोड़ शहरी लोगों को पानी मिलना बेहद कम हो जाएगा. इससे हिमालय पर मौजूद ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से पिघल रहे हैं.  

अगर गंगा सूखी तो क्या होगा 40 करोड़ लोगों का

गंगा की लंबाई 2500 KM है. इसके सहारे कई राज्यों में करीब 40 करोड़ जीवित हैं. इसका सोर्स गंगोत्री ग्लेशियर है. लेकिन ये ग्लेशियर भी खतरे में है. पिछले 87 सालों में 30 किलोमीटर लंबे ग्लेशियर से पौने दो किलोमीटर हिस्सा पिघल चुका है. भारतीय हिमालय क्षेत्र में 9575 ग्लेशियर हैं. जिसमें से 968 ग्लेशियर सिर्फ उत्तराखंड में हैं.

गंगोत्री ग्लेशियर के एक मुहाने पर गौमुख है. यहीं से गंगा निकलती है. देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालय जियोलॉजी के साइंटिस्ट डॉ. रॉकेश भाम्बरी ने स्टडी की है. जिसमें उन्होंने बताया है कि 1935 से लेकर 2022 तक गंगोत्री ग्लेशियर के मुहाने वाला हिस्सा 1700 मीटर पिघल चुका है.  

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हिमालय के कई इलाके काफी ज्यादा अनस्टेबल

किसी भी ग्लेशियर के पिघलने के पीछे कई वजहें हो सकती है. जैसे- जलवायु परिवर्तन, कम बर्फबारी, बढ़ता तापमान, लगातार बारिश आदि. गंगोत्री ग्लेशियर के मुहाने का हिस्सा काफी ज्यादा अनस्टेबल है. ग्लेशियर किसी न किसी छोर से तो पिघलेगा ही. अगर लगातार बारिश होती है तो ग्लेशियर पिघलता है. डाउनस्ट्रीम में पानी का बहाव तेज हो गया था. बारिश में हिमालयी इलाकों की स्टेबिलिटी कम रहती है. ग्लेशियर पिघलने की दर बढ़ जाती है. 

फिलहाल दो दर्जन ग्लेशियरों पर वैज्ञानिक नजर रख पा रहे हैं. इनमें गंगोत्री, चोराबारी, दुनागिरी, डोकरियानी और पिंडारी मुख्य है. यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स के वैज्ञानिकों ने हिमालय के 14,798 ग्लेशियरों की स्टडी की. उन्होंने बताया कि छोटे हिमयुग यानी 400 से 700 साल पहले हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने की दर बहुत कम थी. पिछले कुछ दशकों में ये 10 गुना ज्यादा गति से पिघले हैं.  

स्टडी में बताया गया है कि हिमालय के इन ग्लेशियरों ने अपना 40% हिस्सा खो दिया है. ये 28 हजार वर्ग KM से घटकर 19,600 वर्ग KM पर आ गए हैं. इस दौरान इन ग्लेशियरों ने 390 क्यूबिक KM से 590 क्यूबिक KM बर्फ खोया है. इनके पिघलने से जो पानी निकला, उससे समुद्री जलस्तर में 0.92 से 1.38 मिलीमीटर की बढ़ोतरी हुई है.

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