
इंसानों के बच्चे पूंछ के साथ पैदा होते हैं. दुर्लभ है मामला, पर होता है. कई बार तो ये पूंछ 18 सेंटीमीटर लंबी होती है. यानी 7 इंच के आसपास. पूंछ यानी रीढ़ की हड्डी के अंत में पुट्ठे के ठीक ऊपर एक पूंछ, जिसमें न हड्डी होती है, न कोई कड़क लिगामेंट. सिर्फ नरम मांस से बनी उंगली जैसी आकृति. जिसे आसानी से सर्जरी से हटाया जा सकता है.
अगर मेडिकल हिस्ट्री की बात करें तो आधिकारिक तौर पर अब तक 40 ऐसे बच्चे पैदा हुए हैं, जिनके सच में पूंछ थी. पूंछ वाले बच्चों पर डॉक्टर और वैज्ञानिक स्टडी भी करते हैं. क्योंकि ये उन्हें ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को हैरत में डाल देती हैं. ये पूंछ किसी काम की नहीं होतीं. बस हमारे पूर्वजों के शरीर के एक हिस्से का अवशेष मात्र हैं.
हैरान करने वाली पूंछ बच्चों के लिए कभी सुखद नहीं होते. ऐसे बच्चों पर खासतौर से मेडिकली ध्यान देने की जरुरत होती है. इन पूंछों को 'True' या 'Vestigial' टेल्स कहते हैं. ये आमतौर पर जीवों में पाई जाने वाली पूंछ से अलग होती है. निष्क्रिय होती हैं. इनका किसी तरह का कोई इस्तेमाल नहीं होता. इनका संबंध न किसी हड्डी से होता है. न कार्टिलेज या रीढ़ की हड्डी से होता है. बस शरीर से लटकता एक मांस का लोथड़ा, जो किसी काम का नहीं होता.
पूंछ वाले बच्चों को भी होती है दिक्कत
लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि इन पूंछों के बच्चों को कोई दिक्कत नहीं होती. एक सदी पहले चार्ल्स डार्विन ने कहा था कि इंसानों के वेस्टिजियल अंग एक तरह का इवोल्यूशनरी एक्सीडेंट है. जो हमारे पूर्वज यानी बंदरों से हमारे पास गलती से रह गए. कभी-कभी किसी इंसानी बच्चे में ये दिख जाते हैं. लेकिन ऐसा नहीं है. दूसरी थ्योरी आई.
1980 में नई थ्योरी आई. वैज्ञानिकों ने कहा कि यह एक प्रकार का जेनेटिक म्यूटेशन है. जिसके जरिए इंसान अपने पूंछ को खत्म कर सकता है. लेकिन कई बार यह निकल आते हैं. 1985 में एक स्टडी आई, जिसमें कहा गया कि इंसानों के बच्चों में दो तरह के पूंछ हो सकते हैं. पहले वो जिनके बारे में ऊपर चर्चा की गई है. यानी ट्रू टेल्स या वेस्टिजियल टेल्स.
दो तरह की पूंछ, दूसरी खतरनाक होती है
दूसरे प्रकार की पूंछ खतरनाक होती है. क्योंकि ये रीढ़ की हड्डी से निकलती है. इसमें हड्डी का कुछ हिस्सा भी होता है. इन्हें स्यूडोटेल (Pseudotail) कहते हैं. ऐतिहासिक तौर पर देखें तो स्यूडोटेल जन्म से पैदा होने वाली एक खामी है. यानी डिफेक्ट है. इसे वेस्टिजियल यानी व्यर्थ का अंग नहीं कह सकते. दोनों ही दुर्लभ स्थितियां रीढ़ की हड्डी में होने वाली एक दिक्कत की वजह से होती है. इसे स्पाइनल डाईस्राफिज्म (Spinal Dysraphism) कहते हैं.
यानी भ्रूण का विकास सही से नहीं हो रहा है. भ्रूण के विकसित होने के समय जेनेटिक और पर्यावरणीय फैक्टर्स का संतुलन सही से नहीं बैठा. जब इंसान का भ्रूण पांच हफ्तों तक विकसित हो जाता है, तब उसमें पूंछ जैसी आकृति निकलनी शुरू होती है. यह शुरुआती रीढ़ की हड्डी होती है. आठवें हफ्ते तक यह वापस भ्रूण के शरीर में चली जाती है. जन्म तक यह शरीर के अंदर ही रहती है. इसके बाद यह कभी नहीं बढ़ती.
पूंछ वाले बच्चों को होती है दिमागी दिक्कतें!
जिस इंसानी बच्चे के पूंछ होती है, उसे भविष्य में कई तरह की मानसिक समस्याओं से जूझना पड़ता है. उसे न्यूरोलॉजिकल दिक्कतें हो सकती हैं. ऐसे बच्चों को मेडिकल अटेंशन की जरुरत होती है. लगातार डॉक्टरी जांच से गुजरना पड़ता है. 1995 में डॉक्टरों ने सलाह दी कि दोनों तरह के पूंछ वाले बच्चों को न्यूरोइमेजिंग के साथ-साथ सर्जरी से भी गुजरना पड़ सकता है. क्योंकि ऐसी स्थिति में बच्चे के विकास को ढंग से मॉनीटर करना चाहिए.