बिजली जरूरी नहीं, इस प्राकृतिक तरीके से भी चलते हैं फव्वारे...जानिए इसका विज्ञान

वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग मिलने के दावे पर बहस चल रही है. इसे फव्वारा भी कहा जा रहा है. दिक्कत ये है कि फव्वारा क्या बिना बिजली के चलता था. आइए समझते हैं कि फव्वारे बिना बिजली के कैसे चलते हैं.

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प्राचीन फव्वारे बिजली के बिना चलते थे (Photo: Unsplash) प्राचीन फव्वारे बिजली के बिना चलते थे (Photo: Unsplash)

पारुल चंद्रा

  • नई दिल्ली,
  • 18 मई 2022,
  • अपडेटेड 9:40 PM IST
  • फव्वारा गुरुत्वाकर्षण से चलता है
  • हवा का दबाव भी होता है अहम

वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग मिलने के दावे पर बहस चल रही है. कोई इसे शिवलिंग कह रहा है तो कोई फव्वारा. बातें यह भी हो रही हैं कि यह फव्वारा नहीं हो सकता क्योंकि पहले बिजली ही नहीं हुआ करती थी. बड़ा सच यह भी है कि फव्वारे बिना बिजली के भी चलते हैं. दुनिया भर में कई जगहों पर ऐसे प्राकृतिक फव्वारे हैं जो गुरुत्वाकर्षण शक्ति, हवा के दबाव और कैपिलरी एक्शन की वजह से खूबसूरत दिखाई देते हैं. इनमें कोई बिजली वाला पंप तो नहीं लगा है.

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प्राचीन रोम में फव्वारा बनाने वाले डिजाइनर गुरुत्वाकर्षण पर भरोसा करते थे, दबाव उत्पन्न करने के लिए एक बंद सिस्टम में ऊंचे स्रोत से पानी को चैनलाइज़ किया करते थे. रोम के जलसेतु (aqueducts) पहाड़ों से ऊंचे कुंडों तक पीने और सजाने दोनों कामों के लिए पाइपों के जरिए पानी ले जाते थे. एक फव्वारे के संतोषजनक उछाल के लिए बस कुछ फीट की ऊंचाई पर्याप्त पानी का दबाव बना सकती है. शोध से पता चलता है कि आदिम युग और माया सभ्यता में भी ऐसे फव्वारों का आनंद लिया गया होगा. 

रोम में एक चौराहे पर लगे फव्वारे की तस्वीर. (Photo: Unsplash)

रोम के वर्साय में किंग लुइस सोलहवें के बनवाए गए फव्वारे में 14 विशाल पहियों के एक जटिल और महंगे सिस्टम का इस्तेमाल किया गया था. प्रत्येक का व्यास 30 फीट से ज्यादा था, जो सीन नदी की एक शाखा की धारा से चलते थे. पहिए 200 से ज्यादा पानी के पंप के लिए पिस्टन चलाते थे. पंप द्वारा दो ऊंचे रिज़रवॉयर भी भरे गए थे, जिनमें चमड़े के सीलिंग गास्केट लगे थे. वर्साय प्रणाली को मशीन ऑफ मार्ले (Machine of Marly) कहा जाता था. इस बिना बिजली वाली मशीन ने एक सदी से भी ज्यादा समय तक काम किया.

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ये फव्वारा भी यूरोपीय कलाकृति का बेहतरीन नमूना है. (Photo: Unsplash)

वैज्ञानिक दृष्टि से समझें तो फव्वारे के पीछे केशिका क्रिया या केपिलरी एक्शन (Capillary Action) काम करता है. तो पहले समझ लेते हैं कि ये होता क्या है. केपलरी एक्शन को एक संकीर्ण ट्यूब या पोरस सामग्री में तरल के सहज प्रवाह के रूप में परिभाषित किया गया है. इसके होने के लिए गुरुत्वाकर्षण बल की जरूरत होती है. वास्तव में यह गुरुत्वाकर्षण के विरोध में काम करता है. 

कैपिलरी एक्शन, कोहेसिव फोर्स और एडहेसिव फोर्स के कॉम्बिनेशन की वजह से होता है. कोहेसिव फोर्स यानी वो बल जो लिक्विड मॉलीक्यूल्स के बीच में लगता है और एडहेसिव फोर्स जो लिक्विड मॉलीक्यूल्स और ट्यूब मॉलीक्यूल्स के बीच में लगता है. कोहेसिव और एडहेसिव फोर्स इंटरमॉलीक्यूलर फोर्स होते हैं. ये बल पानी को ट्यूब में खींचने का काम करते हैं. इसके लिए कैपिलरी ट्यूब का महीन होना ज़रूरी होता है.

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