
वो दिन कब आएगा जब धरती की मौत (Death of Earth) आएगी. यानी उसे सूरज निगल लेगा. ये जब होगा. तब होगा. पर उससे बहुत पहले हमारे इस सुंदर ग्रह से जीवन खत्म हो चुका होगा. करीब 1.3 बिलियन साल यानी 130 करोड़ साल बाद धरती ज्यादातर जीवों के रहने लायक नहीं बचेगी. वजह बनेगा सूरज. क्योंकि उसका लगातार इवोल्यूशन हो रहा है.
धरती पर मौजूद सबसे समझदार जीव इंसान है. लेकिन वह भी इस आपदा से खुद को बचा नहीं पाएगा. वह अपनी पूरी प्रजाति को खुद की हरकतों से खत्म कर लेगा. यह काम तो वह अगली कुछ सदियों में करने वाला है. जिस तरह से इंसानों की वजह से जलवायु परिवर्तन (Climate Change) हो रहा है, न सांस लेने लायक हवा बचेगी. न पीने लायक पानी.
या फिर इंसान किसी परमाणु युद्ध (Nuclear War) में मारा जाएगा. लेकिन इन सबसे पहले ये जानना जरूरी है कि पृथ्वी की मौत से पहले कौन मरेगा... क्या वो सूरज है? या सूरज मरते-मरते अपने साथ पूरे सौर मंडल को खत्म कर देगा.
सूरज की मौत कैसे होगी?
जिस तरह धरती का सतत विकास (Evolution) हुआ. जीवों का हुआ. वैसे ही सूरज का हो रहा है. हमारा सौर मंडल सूरज के इवोल्यूशन से ही बना है. सूरज की ग्रैविटी और ऊर्जा की वजह से सारे ग्रह एक लयबद्ध तरीके से उसके चारों तरफ घूम रहे हैं. लेकिन जीवन सिर्फ धरती पर ही है.
NASA के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर के प्लैनेटरी साइंटिस्ट रवि कोप्परपु ने बताया कि धरती की मौत आज से करीब 450 करोड़ साल बाद होगी. उस समय सूरज एक विशालकाय रेड जायंट बन चुका होगा. वह धरती को खींचकर निगल जाएगा. रेड जायंट तब बनता है जब किसी तारे की मौत होने वाली होती है. यानी सूरज का ईंधन (Fuel of Sun) मतलब हाइड्रोजन खत्म हो जाएगा. सूरज पर न्यूक्लियर फ्यूजन (Nuclear Fusion) खत्म हो जाएगा.
सूरज के केंद्र से होगा अंत
जैसे-जैसे सूरज का ईंधन यानी हाइड्रोजन खत्म होगा. उसका फ्यूजन रिएक्शन भी खत्म होने लगेगा. ऐसे में सूरज के केंद्र में चल रही गर्म भट्टी फैलनी शुरू करेगी. इससे सूरज रेड जायंट में बदलता चला जाएगा. फिर वह मरने से पहले अपने आसपास के कई ग्रहों को खाएगा ताकि ऊर्जा मिल सके. इसमें हमारी धरती भी उसका निवाला बन जाएगा.
जैसे ही फ्यूजन बंद होगा. ग्रैविटी की डिमांड बढ़ जाएगी. सूरज के अंदर का हीलियम कोर ग्रैविटी के दबाव में छोटा होता जाएगा. सिकुड़ता चला जाएगा. इसके साथ ही तापमान बढ़ता चला जाएगा. इस गर्मी की वजह से सूरज के बाहर की प्लाज्मा परत फैलने लगेगी. सूरज फैलकर धरती की कक्षा तक चला आएगा. और धरती उसके पेट में चली जाएगी.
क्या धरती तब तक बची रहेगी?
रवि कोप्परपु कहते हैं कि हम जैसी धरती अभी देख रहे हैं. वो 450 करोड़ साल बाद नहीं रहेगी. आप सूरज के फैलकर रेड जायंट बनने का इंतजार मत करिए. सूरज इससे पहले की रेड जायंट बने. उससे कई करोड़ साल पहले ही इतनी गर्मी आएगी सूरज पर कि यहां के सारे समंदर भाप बन जाएंगे. वायुमंडल गायब हो जाएगा. इसके बाद धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति खत्म होने लगेगी. सूरज की ग्रैविटी धरती को चीरने लगेगी. खींचने लगेगी.
अब से करीब 130 करोड़ साल बाद ये घटनाएं शुरू हो जाएंगी. इंसान तो क्या कोई भी जीव इस धरती पर जीवित नहीं बचेगा. इतनी गर्मी और उमस कोई बर्दाश्त नहीं कर पाएगा. 200 करोड़ साल में धरती के सारे समंदर भाप बन जाएंगे. तब सूरज की चमक अभी से 20 फीसदी और ज्यादा होगी. सोचिए अभी उसकी तरफ देखना मुश्किल तब क्या होगा?
3.3 डिग्री सेल्सियस बुखार में मर जाता है इंसान
कुछ जीव ये गर्मी बर्दाश्त कर सकते हैं. जैसे- एक्स्ट्रीमोफाइल्स (Extremophiles). ये समंदर के अंदर हाइड्रोथर्मल सुरंगों या नलियों में रहते हैं. ये कुछ समय तक जीवित रह सकते हैं. लेकिन बाकी कोई जीव नहीं. यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन में डॉक्टोरल शोधार्थी रोडोल्फो गार्सिया कहते हैं कि इंसान भयानक लालची है. उसकी सरंचना जटिल है.
रोडोल्फो ने बताया कि इंसानों को जब 3.3 डिग्री सेल्सियस का बुखार चढ़ता है तो वो मर जाते हैं. सूरज की गर्मी कहां बर्दाश्त कर पाएंगे. सूरज जब रेड जायंट बनना शुरू करेगा, तब वेट-बल्ब टेंपरेचर (Wet-Bulb Temperature) बनेगा. यानी अधिक तापमान, उमस, तेज हवा, सूरज के कोण और बादलों के घेरे का अजीबो-गरीब प्राकृतिक घटना. इस स्थिति में इंसान के शरीर से निकलने वाला पसीना भी उसे राहत नहीं दे पाएगा.
वेट-बल्ब तापमान ही ले लेगा इंसानों की जान
पहले माना जाता था कि वेट-बल्ब तापमान की स्थिति में इंसान 35 डिग्री सेल्सियस तक बर्दाशत कर लेगा. लेकिन नई स्टडी के मुताबिक अब इंसान सिर्फ 30 डिग्री सेल्सियस ही बर्दाश्त कर पाएगा. इतने में ही मौत हो जाएगी. लेकिन स्थिति वेट-बल्ब वाली होनी चाहिए. धरती पर कुछ जगहों में पर तो यह स्थिति अभी से बनने लगी है. यानी तापमान 32 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच चुका है. इस सदी के अंत तक मिडिल ईस्ट में वेट-बल्ब तापमान की स्थिति बन चुकी होगी.
इतनी और ऐसी गंदी गर्मी होगी कि इंसान का पसीना भी नहीं बचेगा. वैसे ही ग्रीनहाउस गैसों से हम अपनी धरती और प्रजाति को खत्म करने में जुट गए हैं. इंसान तो सूरज के रेड जायंट बनने और धरती के भाप बनने से करोड़ों साल पहले अपनी ही हरकतों से खत्म हो जाएगा.