
इंटरनेशनल स्तर पर परमाणु हथियारों पर नजर रखने वाली संस्था स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक दुनियाभर में परमाणु हथियारों की कुल संख्या लगभग पौने 4 हजार है. इनमें से सबसे ज्यादा हथियार रूस के पास हैं. उसके बाद अमेरिका का नंबर आता है, और फिर भारत, चीन, फ्रांस, ब्रिटेन, पाकिस्तान, इजरायल और उत्तर कोरिया आते हैं. इस तरह से कुल 9 देश हैं जो परमाणु ताकत रखते हैं. अगर इनमें से एक भी आक्रामक होकर इस ताकत का इस्तेमाल करने पर आ गया तो बाकी देश भी शामिल हो जाएंगे और फिर जो होगा, उसे जानने के लिए कोई बाकी नहीं रहेगा.
क्या हुआ था हिरोशिमा में
परमाणु विस्फोट कितना भयानक होता है, ये पहले हम हिरोशिमा-नागासाकी के उदाहरण से समझते चलें. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अगस्त 1945 को अमेरिका ने जापान के दो शहरों, हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए. पहला विस्फोट 6 अगस्त को हिरोशिमा में हुआ, जिससे तापमान तुरंत के तुरंत 10 लाख सेंटीग्रेट तक चला गया. ज्वालामुखी से भी ज्यादा गर्मी में दो तिहाई शहर तुरंत खाक हो गया. इमारतें, इंसान, पशु और पेड़-पौधे तक.
तेज गर्मी और रेडिएशन से हुई मौतें
9 अगस्त को नागासाकी पर बम गिराया गया. इसमें भी वही हाल हुआ. आग और बेतहाशा गर्मी से लोग पटापट मरने लगे. जो बाकी रहे, वे खतरनाक विकिरणों से मरे. बम के सेंटर से लेकर एक किलोमीटर से ज्यादा की जगह में जली हुई जमीन के अलावा कुछ बाकी नहीं था. कई लेखकों और पत्रकारों ने इस मंजर का अपनी किताबों में डरा देने वाला वर्णन किया है, हालांकि वे ये मानते हैं कि उनके लिखने में कुछ कमी रह गई. असल हाल इससे कहीं ज्यादा डरावना रहा.
क्या होता है विस्फोट के बाद
न्यूक्लियर ब्लास्ट के बाद 10वें सेकंड से भी कम समय में, जिस इलाके पर ये गिरेगा, वहां की जमीन आग की तरह धधकने लगती है. इसमें इतनी गर्मी होती है, जिसकी तुलना किसी भी चीज से नहीं की जा सकती. चारों ओर सफेद तेज चमक पैदा हो सकती है. विस्फोट के तीन बड़े असर होते हैं. पहला ज्वालामुखी की आग से भी ज्यादा तेज गर्मी में झुलसकर मौतें.
दूसरा और बेहद खतरनाक असर होता है रेडिएशन का, जिसे आयोनाइजिंग रेडिएशन कहते हैं. इसमें गामा किरणें निकलती हैं जो एक्सरे से कई गुना खतरनाक होती हैं. ये जिस भी हिस्से पर पड़ें, शरीर का वो हिस्सा बदल जाता है. डीएनए तक चेंज हो जाता है. इसके बाद चलती है शॉक वेव, ये ग्राउंड जीरो से होती हुई कई किलोमीटर के दायरे में आने वाली हर चीज को तबाह करते चलती है.
कितने बम दुनिया मिटाने को काफी हैं
साल 1945 में मची तबाही के बाद से ही लगातार स्टडी हो रही है कि कुल कितने न्यूक्स का विस्फोट दुनिया में कयामत ला सकता है. अमेरिका के लॉस अलमॉस नेशनल लैब ने एक स्टडी के बाद दावा किया था कि लगभग 100 परमाणु विस्फोट ही दुनिया को खत्म करने के लिए काफी हैं. इसमें बहुत से लोग तो तुरंत ही भाप बनकर खत्म हो जाएंगे. बाकी बचे लोग परमाणु रेडिएशन से दम तोड़ेंगे या फिर ओजोन लेयर खत्म होने के कारण हुए रेडिएशन से. जमीन, पानी सबमें जहर घुल जाएगा और बचे-खुचे लोग भूख से मर जाएंगे. इसके बाद भी कोई बाकी रहा तो कैंसर और जेनेटिक बीमारियों से जूझते हुए दम तोड़ देगा.
अगर दुनिया के सारे न्यूक्लियर बम एक साथ फट जाएं तो क्या होगा?
इसका आकलन वैज्ञानिक भी नहीं कर सके हैं, लेकिन जाहिर है कि इसके बाद कुछ सोचने को बचेगा नहीं. इसके बाद न्यूक्लियर विंटर आएगा. इसमें राख और धूल की परत इतनी मोटी होगी कि सूरज की रोशनी धरती तक नहीं पहुंच सकेगी और चारों ओर अंधेरा हो जाएगा. तापमान अचानक गिर जाएगा और हो सकता है कि इसके बाद धरती नाम के ग्रह पर जीवन की कोई संभावना तक न बचे. हां, ओजोन लेयर भी लगभग पूरी तरह खत्म हो चुकी होगी, जो हमें कई खतरनाक बीमारियों से बचाती है.
क्या होता है न्यूक्लियर विंटर में
कुछ समय पहले रटगर्स यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो बोल्डर और नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फियरिक रिसर्च के शोधकर्ताओं ने एक मॉडल तैयार किया था. इसमें यह जानने की कोशिश की गई है कि अगर सिर्फ अमेरिका और रूस के बीच परमाणु युद्ध हो तो धरती को किस तरह का नुकसान होगा. स्टडी में पता चला कि पूरी दुनिया में 10 साल के लिए न्यूक्लियर विंटर में चली जाएगी. इसमें धरती का तापमान लगभग 9 डिग्री सेल्सियस तक गिरेगा और इसके बाद गिरता ही चला जाएगा.