
समुद्र तल से 2740 मीटर यानी करीब 8990 फीट ऊपर मौजूद रामबाड़ा कस्बा केदारनाथ आपदा में पूरी तरह से गायब हो गया था. यहां पर 250 से ज्यादा दुकानें, इमारतें और घर थे. हादसे के चश्मदीद बताते हैं कि बाढ़ के बाद सिर्फ दो दुकानें ही बची थीं. वो भी अस्थाई. यह कस्बा जो केदारनाथ यात्रा के मिडवे है. यानी यहां से मंदिर की दूरी आधी बचती है. वो केदारनाथ बाढ़ के बाद मंदाकिनी घाटी के नक्शे से गायब हो गया.
बाढ़ के साथ जो मलबा आया उसका बहाव बहुत तेज था. यहां प्रति किलोमीटर 235 मीटर मलबा बहकर आया था. जिसमें बड़े-बड़े कई फीट ऊंचे पत्थर थे. यहां पर नदी की तलहटी की ऊंचाई 16 से 65 फीट ऊपर हो गई थी. रामबाड़ा असल में मंदाकिनी नदी की तलहटी से करीब 30 से 35 फीट ऊपर बसा था. ज्यादा बारिश की वजह से मंदाकिनी नदी का बहाव बढ़ता गया. चौड़ाई भी. नदी का बहाव 164 फीट ऊपर तक था.
कैसे उजड़ गया रामबाड़ा कस्बा... देखिए एक्सक्लूसिव वीडियो
रामबाड़ा के आसपास 2 वर्ग KM का इलाका साफ
रामबाड़ा के आसपास 2 वर्ग किलोमीटर का पूरा इलाका गायब हो गया था. वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. डीपी डोभाल बताते हैं कि चोराबारी लेक के ऊपर इतनी तेज एवलांच आया कि उससे झील 10 मीटर नीचे धंस गई. दीवार टूट गई. सिर्फ 2-3 मिनट में ही तेज बहाव के साथ सारा पानी और मलबा नीचे की ओर चला गया. झील के नीचे केदारनाथ की तरफ 200 मीटर लंबी, 80 मीटर चौड़ी और 60 मीटर गहरी घाटी है. जहां से फ्लैश फ्लड नीचे की ओर एक साथ चला गया.
ज्यादा कंस्ट्रक्शन से होगा नुकसान, नहीं चेत रही सरकार
डॉ. डोभाल ने बताया कि मंदाकिनी का बहाव इतना तेज था कि उसने मंदिर के ठीक पीछे एक पहाड़ को छील कर नया रास्ता बना लिया था. वहां से पानी सरस्वती नदी में जाकर मिल गया. जिससे उसका बहाव भी तेज हो गया. रामबाड़ा पूरी तरह से साफ हो गया था. लगातार केदारनाथ घाटी में नया विकास हो रहा है. बहुत कुछ हो रहा है. डेवलपमेंट होता रहा. हमने और अन्य वैज्ञानिकों ने बताया था कि इस इलाके में ज्यादा कंस्ट्रक्शन न करो. चार-पांच साल इस इलाके को ऐसे ही छोड़ देना चाहिए. बोल्डर्स को हिलाओ मत लेकिन आज बोल्डर्स दिखते ही नहीं.
सिर्फ मंदिर के आसपास की चीजें ठीक की जाए. उधर के लोगों को ही काम पर लगाया जाए. सीमित मात्रा में लोग यात्रा पर जाए. लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं. जबकि सिफारिश की थी. वहां पत्थर तोड़े जा रहे हैं. मैंने खुद कई बार बड़े मंत्रियों को चेता चुका हूं. उसे डिस्टर्ब मत करो. कॉन्क्रीट का जंगल बना कर असली जंगल खत्म कर रहे हैं. ऊपर से अब ग्लेशियर की वजह से कोई दिक्कत नहीं है. अब लेक खत्म हो चुकी है. इसे बनने में बहुत टाइम लगता है.
केदारनाथ हादसे ने बदल दिया पूरे इलाके का नक्शा
जलवायु परिवर्तन की बात करते हैं, तो ये जान लीजिए कि इस आपदा की वजह से केदारनाथ की टोपोग्राफी और इकोसिस्टम बदल चुका है. अब जो हादसा होगा, वह मानव निर्मित होगा. हम इंसानों की हरकतों की वजह से. ज्यादा कंस्ट्रक्शन की वजह से. केदारनाथ की जमीन बहुत कम है. उसकी बीयरिंग कैपेसिटी बहुत कम है. क्षमता से ज्यादा भार आने से नुकसान ही होगा.
चश्मदीद ने बेटे के साथ दो दिन ठंड में जंगल में बिताई थी रात
रामबाड़ा के पुराने निवासी भगत सिंह से बात हुई. कहा जब प्रलय आया तो वो और उनका बेटा दुकान पर थे. उनके घोड़े दुकान के सामने बंधे थे. अचानक तेज धमाके जैसी आवाज आई. लोग भाग रहे थे. ऊपर की तरफ देखा तो करीब 100 मीटर ऊंची लहर अपने साथ बड़े-बड़े पत्थरों को लेकर आ रही थी. भगत सिंह ने बताया कि उस लहर में मेरे दोनों घोड़े बह गए. मैं और मेरा बेटा भागकर ऊपर जंगल की ओर भागे. दो दिन तक ऊपर ही रहे. बाद में पानी कम होने पर नीचे आए. सिर्फ दो दुकानें बची थीं. बाकी पूरा रामबाड़ा गायब हो चुका था.
सिवाय पत्थरों, कीचड़ और मलबे में दबी लाशों के कुछ नहीं था. हम किसी तरह नीचे गए तो सैनिकों ने हमें चाय दी. फिर हम अपने रिश्तेदारों के यहां चले गए. ये कहानी बताते समय भगत की आंखों में पानी था. गले से लगातार थूक गटक रहे थे. चेहरे पर डर था. पहले बाएं तरह के रास्ते पर उनकी दुकान थी. अब दाहिनी तरफ वाले रास्ते पर चाय-नाश्ते की दुकान है. थोड़ा ज्यादा ऊंचाई पर.