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Human composting: अमेरिका के पांच राज्यों में मुर्दा इंसानों से खाद बनाने की परंपरा शुरू, जानिए क्या है ह्यूमन कंपोस्टिंग

अमेरिका के कुछ राज्यों की तरह अब न्यू यॉर्क में भी अंतिम संस्कार के ईको फ्रेंडली (Eco-friendly) तरीके को मंजूरी दी जा रही है. इस तरीके में मानव शव को 'नेचुरल ऑरगेनिक रिडक्शन' की प्रक्रिया से गुज़ारा जाता है. जिससे शव खाद में बदल जाता. इस प्रक्रिया में केवल 30 दिन का समय लगता है. 

शरीर से खाद बनने में लगते हैं 30 दिन (Photo: Recompose-Facebook) शरीर से खाद बनने में लगते हैं 30 दिन (Photo: Recompose-Facebook)
aajtak.in
  • न्यू यॉर्क,
  • 05 जनवरी 2023,
  • अपडेटेड 9:32 AM IST

मानव शव से खाद बनाने की प्रक्रिया को ह्यूमन कंपोस्टिंग (Human composting) कहा जाता है. अंतिम संस्कार का यह तरीका काफी जोर पकड़ रहा है. अमेरिका के कुछ राज्यों की तरह अब न्यू यॉर्क में भी मृतकों के अंतिम संस्कार के ईको फ्रेंडली (Eco-friendly) तरीके को मंजूरी दी जा रही है. इस तरीके में मानव शव को 'नेचुरल ऑरगेनिक रिडक्शन' (Natural organic reduction) की प्रक्रिया से गुज़ारा जाता है. इससे शव के सॉफ़्ट टिश्यू (Soft tissues) यानी नरम ऊतक, खाद जैसे पदार्थ में बदल जाते हैं. 

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इस प्रक्रिया में कोकून (Cocoon) बनाने के लिए वुड चिप्स (Wood chips) यानी लकड़ी के चिप्स, अल्फाल्फा (Alfalfa) और पुआल (Straw) के मिश्रण का इस्तेमाल किया जाता है. शव को जैविक मिश्रण (Organic blend) के साथ जमीन से कुछ ऊपर बने एक चेंबर में रखा जाता है. और इस मिश्रण में मौजूद रोगाणु (Microbes), करीब 30 दिनों में शव को उपजाऊ मिट्टी (Nourishing soil) में बदल देते हैं.  

इस तरह की प्रोसेसिंग में रोगजनक नष्ट हो जाते हैं (Photo: Recompose-Facebook)

मानव शव से उपजाऊ मिट्टी बनाने के इस तरीके को सुरक्षित माना जाता है. जानकारों का कहना है कि इस तरह की प्रोसेसिंग में अधिकांश पैथोजन्स (pathogens) यानी रोगजनक नष्ट हो जाते हैं. हालांकि कुछ ऐसी बीमारियां हैं जिनसे मौत होने के बाद शव को मिट्टी बनाने की प्रक्रिया नहीं की जा सकती. इसकी वजह प्रियान (प्रोटिन का तत्व जिसे कई घातक बीमारियों की वजह माना जाता है) जैसे तत्व हैं जिनकी वजह से क्रियूट्ज़फेल्ट-जैकोब रोग (Creutzfeldt-Jakob disease) जैसी बीमारियां होती है. विशेषज्ञों का कहना है कि मिट्टी बनाने के लिए की जाने वाली करीब 30 दिनों प्रक्रिया के बाद भी, संक्रमण फैलने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता. 

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वाशिंगटन साल 2019 में ह्यूमन कंपोस्टिंग को मंज़ूरी देने वाला पहला अमेरिकी राज्य बना था. इसके बाद कैलिफोर्निया, कोलोराडो, ओरेगन, वर्मोंट और न्यूयॉर्क इस सूची में शामिल हो चुके हैं. जानकारों का मानना है कि पर्यावरण के अनुकूल विकल्प के तौर पर ह्यूमन कंपोस्टिंग को काफ़ी लोकप्रियता मिल रही है. 

पारंपरिक प्रथाओं के मुकाबले ये ईको फ्रेंडली तरीका ज़्यादा पॉपुलर है.(Photo: Getty)

एक अनुमान के मुताबिक, अमेरिका में लगभग 10 लाख एकड़ यानी 404,685 हेक्टेयर ज़मीन श्मशान घाट (Burial) के लिए सुरक्षित है. यानी इस ज़मीन पर न तो पेड़ पौधे और जंगल उगाए जा सकते हैं, बल्कि इस पर वन्य जीवों को भी नहीं रखा जा सकता. इसके अलावा हर साल करीब 40 लाख एकड़ जंगल, ताबूत और शव को रखने वाले संदूक (coffins and caskets) बनाने में नष्ट हो जाता है. 

शव पर लेप लगाने (Embalming) की प्रक्रिया में भी लगभग 800,000 गैलन लेप में इस्तेमाल होने वाला द्रव्य जमीन में जाता है. इस द्रव्य को दूषित पदार्थ माना जाता है यानी इसे ज़मीन के लिए अच्छा नहीं समझा जाता. जानकारों का मानना है कि इन्हीं वजहों से अंत्येष्टि की पारंपरिक प्रथाओं के मुकाबले ये ईको फ्रेंडली तरीका ज़्यादा लोकप्रिय हो रहा है.

अंत्येष्टि का एक अन्य तरीका 'एक्वामेशन' (Aquamation), नोबल पुरस्कार (Noble Prize) विजेता डेसमंड टूटू (Desmond Tutu) के निधन के बाद चर्चा में आया. उनकी इच्छा के मुताबिक, उन्हें एक्वामेशन के ज़रिए विदाई दी गई. एक्वामेशन में शव को गलाने के लिए अल्कलाईन या क्षारीय हाइड्रोलिसिस (alkaline hydrolysis) का इस्तेमाल किया जाता है. इसी तरह, तिब्बत और मंगोलिया की कुछ प्रजातियां काफी पहले से अंत्योष्टि के एक अन्य इको फ्रेंडली तरीके का इस्तेमाल कर रही हैं. इन प्रजातियों में, शवों को मांसाहारी पक्षियों के भोजन के लिए रखने की प्रथा है. 

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कुछ लोगों ने यह भी सुझाव दिया है कि स्काय बरियल्स (Sky burials) यानी आसमान में दफनाने से कैलिफोर्निया के कंडोर्स की दुर्दशा (plight of California condors) की समस्या का समाधान भी हो सकता है, जो वर्तमान में सीसा प्रदूषण (lead contamination) के खतरे से जूझ रहे हैं. हालांकि जानकारों का मानना है कि अमेरिका के राज्यों में लोकप्रिय हो रहे अंत्येष्टि के इको फ्रेंडली तरीके से पर्यावरण प्रेमियों में नई उम्मीदें जगी हैं.

 

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