
कार्बन डाईऑक्साइड (Carbon Dioxide) को जकड़ कर उसे पत्थर बनाने में प्रकृति को हजारों-लाखों साल लग जाते हैं. लेकिन आइसलैंड (Iceland) की साइंटिफिक स्टार्टअप कंपनी कार्बफिक्स (Carbfix) ये काम सिर्फ दो सालों में कर दे रही है. उसने 2012 से अब तक 90 हजार टन कार्बन डाईऑक्साइड गैस को पत्थर में बदला है.
कार्बफिक्स कंपनी ने हेलशीडी जियोथर्मल पावर प्लांट के पास अपने जियोडेसिक गुंबद बना रखे हैं. इन गुबंदों के अंदर मशीनें लगी हैं. जहां कार्बन डाईऑक्साइड को स्टोर करके उन्हें पत्थर बनाया जाता है. अब पूरी दुनिया का ध्यान इस तरफ जा रहा है कि आखिर ये काम किस तरह से हो रहा है? इससे किस तरह का फायदा हो सकता है?
कार्बफिक्स कंपनी जियोथर्मल पावर प्लांट से निकलने वाले कार्बन डाईऑक्साइड को पाइप के जरिए जमा करती है. उन्हें जमीन के ऊपर पानी मिलाती है. उसके बाद उसे बसाल्ट पत्थरों में इंजेक्ट करती है. यानी पानी से मिले CO2 गैस को बसाल्ट पत्थरों के अंदर डालती है. दो साल के अंदर बसाल्ट का पत्थर कार्बन डाईऑक्साइड के पत्थर में बदल जाता है.
पत्थर का 95% हिस्सा कार्बन डाईऑक्साइड
कार्बफिक्स की कम्यूनिकेशन डायरेक्टर ओलाफुर तीतुर गुओनासन ने कहा कि पत्थर का 95 फीसदी हिस्सा CO2 होता है. पानी की वजह से कार्बन डाईऑक्साइड की बायोन्सी खत्म हो जाती है. जैसे ही CO2 बसाल्ट के संपर्क में आता है, वह खनिज बनना शुरू कर देता है. यानी पत्थर में बदलने लगता है.
ओलाफुर कहती हैं कि जो काम प्रकृति हजारों-लाखों सालों में करती है, वो काम हम सिर्फ दो साल में कर रहे हैं. इसका फायदा ये है कि पर्यावरण में कार्बन डाईऑक्साइड फैलकर ग्लोबल वॉर्मिंग नहीं बढ़ाती. साथ ही तेल और गैस उद्योग से जुड़े इसके विवादित मामले सामने नहीं आते.
पूरी दुनिया इस तकनीक को समझने में जुटी
इस साल कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुड्यू, पेरिस की मेयर एनी हिडाल्गो और अमेरिकी सीनेटर्स जैसे 120 अंतरराष्ट्रीय डेलिगेट्स इस कंपनी की साइट को देख कर गए हैं. इन सबने एक समझौते पर हस्ताक्षर किया है कि ये लोग मिलकर कार्बन डाईऑक्साइड को जकड़ने की व्यवस्था करेंगे. ताकि लंबे समय तक पृथ्वी को इसके नुकसान से बचा सकें.
अमेरिका में जो कार्बन कैप्टर एंड स्टोरेज (CCS) की सुविधा है, उसमें CO2 को तेल और गैस के समुद्री फील्ड्स में वापस भेज दिया जाता है. ताकि ये वापस जाकर ज्यादा से ज्यादा जीवाश्म ईंधन बना सके. फिर वहां से ये अधिक तेल निकाल सकें. ओलफुर ने कहा कि हमारा तरीका एकदम गलत है. इससे कोई नुकसान या विवाद नहीं होता.
इन गुंबदों में लगी पाइप्स को कार्बन डाईऑक्साइड स्विस स्टार्टअप कंपनी क्लाइमवर्क्स देती है. क्लाइमवर्क्स इससे पहले गैस को पावर प्लांट से कलेक्ट करती है. यहीं पर दुनिया का पहला DAC प्लांट है. जो 2021 में खुला. यह 4000 मीट्रिक टन कार्बन डाईऑक्साइड हर साल कैप्चर कर लेता है. अगला प्लांट भी पास में ही बनने वाला है. कार्बफिक्स और क्लाइमवर्क्स आपस में पुराने पार्टनर हैं.