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Greenland अब सफेद नहीं बचा, Green होता जा रहा है... पूरी दुनिया के लिए बड़ा खतरा

Greenland अब सफेद नहीं बच रहा. वह Green होता जा रहा है. यह पूरी दुनिया के लिए खतरनाक है. वहां की सारी बर्फ पिघल गई तो दुनिया के कई तटीय शहर, द्वीप और देश समंदर में डूब जाएंगे. ग्रीनलैंड में लगातार हरियाली बढ़ती जा रही है, जो कि खतरे की घंटी बजा रही है.

ग्रीनलैंड में बढ़ते तापमान की वजह से बर्फ पिघलती जा रही है, हरियाली बढ़ती जा रही है... जो कि दुनिया के लिए खतरा है. ग्रीनलैंड में बढ़ते तापमान की वजह से बर्फ पिघलती जा रही है, हरियाली बढ़ती जा रही है... जो कि दुनिया के लिए खतरा है.
आजतक साइंस डेस्क
  • लंदन,
  • 14 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 2:46 PM IST

पिछले 30 साल में ग्रीनलैंड के 28,707 वर्ग किलोमीटर इलाके में फैली बर्फ पिघल चुकी है. दिक्कत ये है कि जहां कभी पहले बर्फ, पत्थर, वेटलैंड और कुछ झाड़ियां मिल जाती थीं. वहां अब हरियाली बढ़ रही है. सबसे ज्यादा वेटलैंड वेजिटेशन यानी पेड़-पौधे और घास जैसी चीजें दक्षिण-पश्चिम में कांगरलुसैक और उत्तर-पूर्व के सुदूर इलाकों में फैल रहा है. 

ज्यादा गर्मी की वजह से बर्फ पिघल रही है. बर्फ के बड़े शीट पिघल कर सिकुड़ रही हैं. 1970 से ग्रीनलैंड की बर्फ पिघलने की दर दुनिया के औसत से दोगुना ज्यादा है. 1979 से 2000 तक हवा का औसत तापमान 2007 से 2012 की तुलना में 3 डिग्री सेल्सियस कम था. बर्फ पिघलने से तापमान ऐसा हो रहा है, जिससे पेड़-पौधे उग रहे हैं. 

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लीड्स यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने ग्रीनलैंड के बदलते आइसशीट की स्टडी की. इसमें हवा के तापमान को भी शामिल किया गया. क्योंकि हवा के तापमान बढ़ने से बर्फ पिघलती है. इससे जमीन बर्फ से बाहर निकलती है. उसकी सतह गर्म होती है. फिर ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है. इससे इस प्राकृतिक जगह का संतुलन बिगड़ रहा है. 

कहीं ऐसा न हो कि कुछ सालों में सफेद बर्फ से ढका ग्रीनलैंड पूरी तरह पेड़-पौधों से ग्रीन हो जाए. लीड्स यूनिवर्सिटी के जोनाथन कैरिविक ने कहा कि हमने यह देखा है कि ग्रीनलैंड में बर्फ तेजी से पिघल रही है. हरियाली बढ़ती जा रही है. ग्रीनलैंड का ज्यादा ग्रीन होना नुकसानदेह है. यह जो जमीन बर्फ के पिघलने के बाद बाहर निकलती है, उस पर तुंड्रा और झाड़ियां उग रही हैं. 

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इस स्टडी के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. माइकल्स ग्रिम्स ने कहा कि पिघलते बर्फ से बहता पानी मिट्टी और सिल्ट लेकर आगे बढ़ता है. इससे वेटलैंड्स और फेनलैंड्स को सपोर्ट करता है. अगर इसी तरह से जमीन बढ़ती रही. बर्फ पिघलती रही तो मिट्टी पर घास-फूस उगती रहेगी. बर्फ पिघलने से समंदर का जलस्तर बढ़ता रहेगा. इससे तटीय शहरों को नुकसान है. 

ग्रीनलैंड में रहने वाले लोग वहां के नाजुक इकोसिस्टम को समझते हैं. वो वहां शिकार करके जीवन चलाते हैं. इससे उनके लिए भी दिक्कत होगी. क्योंकि वहां की जमीन अब पूरी तरह से पर्माफ्रॉस्ट हो चुकी है. वह सदियों से जमी हुई है. ऐसी जमीन पर जब हरियाली बढ़ती है, तो उससे नए और प्राचीन वायरस और बैक्टीरिया के पनपने की आशंका रहती है. 

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यह स्टडी साइंटिफिक रिपोर्ट्स नाम के जर्नल में प्रकाशित हुई है. ग्रीनलैंड आर्कटिक इलाके में आता है. यह दुनिया का सबसे बड़ा द्वीप (Island) है. इसका क्षेत्रफल 21 लाख वर्ग किलोमीटर है. ज्यादातर हिस्सा बर्फ से ढंका है. यहां पर करीब 57 हजार लोग रहते हैं. 1970 से जब ग्लोबल वॉर्मिंग शुरू हुई तो यहां दोगुना दुष्प्रभाव पड़ा. आशंका है कि यहां भविष्य में बर्फ खत्म हो जाएगी. जिससे दुनिया के कई देश और तटीय शहर डूब जाएंगे. क्योंकि समंदर का जलस्तर बढ़ेगा. 

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