
देश की समुद्री सुरक्षा को लेकर एक नया सिपहसालार मिल गया.. कोलकाता स्थित गार्डेन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (GRSE) ने एक ऑटोनॉमस अंडरवाटर व्हीकल (Autonomous Underwater Vehicle - AUV) बनाया है. यह पानी के अंदर खुद से चलने वाली रोबोटिक पनडुब्बी है. इसकी लंबाई 2.1 मीटर और वजन 50 किलोग्राम है. यह लगातार तीन घंटे तक समुद्र में गोते लगा सकता है. यह 3 नॉट है यानी 5.56 किलोमीटर प्रतिघंटा की गति से समुद्र में गोते लगाता है. इसमें लगे जीपीएस सिस्टम के जरिए इससे संपर्क में रहा जा सकता है. साथ ही यह उसके सहारे समुद्र में रास्ता खोजता है.
जीआरएसई ने अपने ट्विटर हैंडल पर बताया कि पूरी तरह से स्वदेशी AUV को बंगाल की खाड़ी में उतारा गया. इसमें कई अत्याधुनिक तकनीकें लगाई गई हैं. ताकि समुद्र में दुश्मन किसी भी तरह की साजिश रचे तो पता चल जाए. अगर यह समुद्र में निगरानी करने उतरती है तो दुश्मन की नापाक चाल से पहले ही सूचना मिल जाएगी. साथ ही साइंटिफिक रिसर्च के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं.
इसकी वजह से समुद्री निगरानी रीयल टाइम में की जा सकेगी. समुद्री निगरानी को मैरीटाइम सर्विलांस (Maritime Surveillance) कहते हैं. अब इस काम में यह AUV या ड्रोन्स मदद करते हैं. जब किसी देश की समुद्री सीमा इतनी बड़ी हो तो सिर्फ लहरों के ऊपर से निगरानी करने से काम नहीं चलता. अंदर से भी करना होता है.
भारत में बना AUV बेहद किफायती है. साथ ही यह बेहद अत्याधुनिक है, यह समुद्र के अंदर लंबे समय तक खुद-ब-खुद निगरानी करता है. इससे बड़े जहाजों, तकनीकों, यंत्रों और जवानों को लगाने का खर्च बच जाएगा. यह रीयल टाइम मॉनिटरिंग के लिए फायदेमंद है. इसके अंदर एडवांस सेंसर्स लगे हैं. कटिंग एज कैमरा लगे हैं. रडार हैं. साथ ही इंफ्रारेड टेक्नोलॉजी लगी है. जो इसे हर तरह की निगरानी और जासूसी के लिए उपयुक्त बनाता है.
अभी समुद्र की निगरानी या तो जहाजों से होती है या फिर विमानों से होती है. ऑटोनॉमस अंडरवाटर व्हीकल के लॉन्च होने के बाद नौसेना, कोस्टगार्ड इन सबको निगरानी और जासूसी करने में आसानी होगी. इसमें सोनार तकनीक लगी है, ताकि समुद्री सुरंगों की खोज कर सके.