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वायुसेना ने की हैवी ड्रॉप सिस्टम की सफल टेस्टिंग, जंग में नहीं होगी हथियारों और रसद की कमी

भारतीय वायुसेना ने हाल ही में कार्गो विमान से स्वदेशी हैवी ड्रॉप सिस्टम का सफल परीक्षण किया. इसे टाइप वी हैवी ड्रॉप सिस्टम नाम दिया गया है. इसकी मदद से जवानों को पैराशूट के जरिए राशन, हथियार और रसद पहुंचाने में मदद मिलेगी.

ये कार्गो को सटीक जगह पर उतारने की स्वदेशी तकनीक है. ये कार्गो को सटीक जगह पर उतारने की स्वदेशी तकनीक है.
मंजीत नेगी
  • नई दिल्ली,
  • 14 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 2:34 PM IST

बहुत जल्द सीमाओं पर तैनात जवानों को पैराशूट से हथियार और रसद मिल जाएगा. सैन्य रसद क्षमताओं को बढ़ावा देने के लिए वायु सेना ने शनिवार को कार्गो विमान से स्वदेशी हैवी ड्रॉप सिस्टम (HDS) की सफल टेस्टिंग की. इसका नाम है टाइप वी हैवी ड्रॉप सिस्टम (Type V Heavy Drop System). इसे आगरा के एरियल डिलीवरी रिसर्च एंड डेवलपमेंट इस्टैब्लिशमेंट (ADRDE) ने डिजाइन और विकसित किया है.

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यह खास टैक्टिकल तकनीक है, जिसका इस्तेमाल विभिन्न सैन्य आपूर्ति, उपकरण और वाहनों की सटीक पैरा-ड्रॉपिंग के लिए किया जाता है. यह पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक है. इस परीक्षण को पूरा करते समय ADRDE के अलावा भारतीय सेना के यूजर्स एंड एयबॉर्निक्स डिफेंस एंड स्पेस प्राइवेट लिमिटेड के अधिकारी भी मौजूद थे. 

ADRDE ने AN-32, IL-76 और C-17 ग्लोबमास्टर जैसे ट्रांसपोर्ट विमानों के लिए हेवी ड्रॉप सिस्टम के विभिन्न वेरिएंट तैयार किए हैं. जैसे 3 टन, 7 टन और 16 टन. तीन और सात टन वाला सिस्टम भारतीय सेना और नौसेना के लिए है. IL-76 विमान के लिए हेवी ड्रॉप सिस्टम-पी7 में एक प्लेटफॉर्म और पैराशूट असेंबली शामिल है. इस पैराशूट प्रणाली में 5 प्राइमरी प्राथमिक कैनोपी, 5 ब्रेक सुइट, 2 सहायक सुइट और एक एक्सट्रैक्टर पैराशूट शामिल हैं. 

यह प्लेटफॉर्म एल्यूमीनियम और स्टील के धातुओं से निर्मित एक मजबूत मेटेलिक आकृति है. इसका वजन करीब 1,110 KG है. यह करीब 500 KG वजनी पैराशूट प्रणाली वाले माल की सुरक्षित डिलिवरी तय करती है. यह सिस्टम 7 हजार किलो रसद लेकर 260-400 km प्रति घंटे की ड्रॉप गति पर काम करता है. 

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हैवी ड्रॉप सिस्टम-16T को आईएल-76 हैवी लिफ्ट विमान के लिए बनाया गया है. यह 16 टन तक वजन वाले सैन्य कार्गो को सुरक्षित और सटीक पैराड्रॉप करने में सक्षम बनाता है. इसमें बीएमपी वाहन, आपूर्ति और गोला-बारूद शामिल हैं. यह मैदानी इलाकों, रेगिस्तानों और ऊंचाई वाले क्षेत्रों में उतर सकता है. यह प्रणाली अधिकतम 15 हजार किलोग्राम का पेलोड रख सकती है.

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