
वॉरविक यूनिवर्सिटी में काम करने वाले भारतवंशी मनोचिकित्सक ने दावा किया है कि बेहोशी से होश में आने के दौरान उसने पूरे ब्रह्मांड को समझ लिया है. मनोचिकित्सक का नाम है प्रोफेसर स्वरण सिंह. उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने पूरे ब्रह्मांड को अपनी संज्ञानात्मक बुद्धि से समझ लिया है. लेकिन यह एक प्रयोग था. और इसे समझा पाना बेहद मुश्किल है. यह प्रयोग जर्नल ऑफ नर्वस एंड मेंटल डिजीस में प्रकाशित हुई है.
प्रो. स्वरण सिंह ने बताया कि ये मामला 38 साल पुराना है. बात है 4 अप्रैल 1984 की, जब उनके साथ एक सड़क हादसा हुआ था. सर्जरी करानी पड़ी. जब वो बेहोशी से होश में आ रहे थे, इस दौरान उन्हें पूरे ब्रह्मांड की समझ हो गई. उन्हें वास्तविकता और कल्पना के बीच का संबंध समझ में आ गया. हालांकि सिंह यह बताते हैं कि इस अनुभूति को समझाना बेहद मुश्किल था. इसलिए इतने सालों से वो इसे समझाने के तरीके और उदाहरण खोज रहे थे. अब जाकर इसकी रिपोर्ट एक साइंटिफिक जर्नल में प्रकाशित हुई है.
प्रो. स्वरण सिंह ने बताया कि जो उनके साथ हुआ है, उसे विज्ञान की भाषा में नोएसिस (Noesis) कहते हैं. यानी किसी भी चीज को तार्किक तरीके समझना. नोएसिस उसी को होता है जिसे किसी चीज की पूरी तार्किक जानकारी या ज्ञान प्राप्त हो जाए. उन्होंने बताया कि बेहोशी से होश में आते समय करीब 10 से 12 मिनट तक उन्हें सारी चीजें बेहतरीन तरीके से समझ में आ रही थीं. ऐसे लग रहा था कि वो ब्रह्मांड के सारे राज़ समझने लगे हैं. ऐसा उनके साथ पहले कभी नहीं हुआ.
प्रो. सिंह ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि उन्हें नहीं पता कि ये चीजें उन्हें कैसे पता है? लेकिन उन्हें पता है. उन्होंने दावा किया है कि वो स्पेस, टाइम, एनर्जी, मैटर और लाइफ को पूरी तरह से समझ चुके हैं. वो दावा करते हैं कि जीवन लगातार बदलता रहता है लेकिन जीवन को चलाने वाली सतत ऊर्जा एक समान रहती है. उसमें किसी तरह का कोई बदलाव नहीं आता. अगर जीवन का एक रूप बड़ा होता है तो वह निश्चित तौर पर किसी अन्य छोटे जीवन को बल पर बनता है. एक जीवन खत्म होता है तो दूसरा शुरु हो जाता है. लेकिन ऊर्जा वैसी की वैसी ही रहती है.
प्रो. सिंह ने बताया कि दिमाग को अगर ये चीजें समझ में आ रही हैं, तो इसके लिए कहीं न कहीं कोई न कोई प्रक्रिया होती होगी. वो समझने के लिए प्रयोग करना जरूरी था. क्योंकि जब बात आती है दिमाग की गहराइयों में जाने की तो सबसे पहले ख्याल आता है दिमाग के हिस्सों का. ये हिस्से यानी इंसुला, प्रीमोटर कॉर्टेक्स और इंफीरियर पैरिएयल लोब ध्यान यानी मेडिटेशन जैसी चीजों से ऐसा अनुभव करा सकते हैं. या फिर किसी तरह के साइकेडेलिक दवा के असर से.
प्रोफेसर कहते हैं कि उनके दिमाग में इस तरह के हरकतों के पीछे दवाओं की वजह से पैदा होने वाला स्टेट था. लेकिन उस दौरान जो ज्ञान हासिल हुआ वो पुष्ट है. क्योंकि इन दवाओं के असर से दिमाग के वो हिस्से भी सक्रिय हो जाते हैं, जो अक्सर किसी बड़े योगी या ध्यान करने वाले के होते हैं. दिमाग में मैकेनिज्म होते हैं, उनके स्टेट को परिभाषित करना आसान नहीं होता.